समंदर का प्रदूषण काफी ज्यादा बढ़ चुका है और अब और ज्यादा चिंताजनक स्तर पर पहुंच रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, महासागरों में फैले विषाक्त पदार्थों के जमीन पर पहुंचने से पृथ्वी के 300 करोड़ लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। अमेरिका के बॉस्टन कॉलेज के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन ने कई अध्ययनों का विश्लेषण करने के बाद यह जानकारी दी है। समंदर में फैल रहे प्रदूषण को दूर करने के लिए शोधकर्ताओं ने कुछ सुझाव भी दिए हैं। इनमें कोयले के उपभोग पर प्रतिबंध, एक बार से ज्यादा इस्तेमाल नहीं होने वाले प्लास्टिक उत्पादन पर रोक, तटवर्ती प्रदूषण पर नियंत्रण और जहाजी इलाकों का विस्तार शामिल है। खबर के मुताबिक, यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है, जिसमें समंदर के प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। इस डॉक्युमेंट को 'मोनाको इंटरनेशनल सिम्पोजियम ऑन ह्यूमन हेल्थ एंड दि ओशियन इन अ चेंजिग वर्ल्ड' के ऑनलाइन संस्करण में प्रकाशित किया गया है।

अध्ययन से जुड़े विषय और पहलुओं पर बात करते हुए बॉस्टन कॉलेज के ग्लोबल पब्लिक हेल्थ एंड दि कॉमन गुड प्रोग्राम के निदेशक प्रोफेसर फिलिप लैंड्रिगन कहते हैं, 'सागरों का प्रदूषण एक बड़ी वैश्विक समस्या है। यह बढ़ रही है और मानव स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करती है। लोगों ने समंदरों में प्लास्टिक पॉल्यूशन के बारे में सुना है, लेकिन यह इसका सिर्फ एक हिस्सा है। शोध से पता चलता है कि समंदर कई प्रकार के विषाक्त पदार्थों के घुलने से अशुद्ध हो रहे हैं। इनमें मर्करी, पेस्टिसाइड, औद्योगिक केमिकल्स, पेट्रोल संबंधी कचरा, खेतों का गंदा पानी और प्लास्टिक में मिले मैन्युफैक्चर्ड केमिकल शामिल होते हैं। समंदर में घुले ये जहरीले मटीरियल मुख्य रूप से सीफूड के उपभोग के जरिये लोगों में पहुंचते हैं।'

प्रोफेसर फिलिप ने कहा कि यह खतरा सभी लोगों पर है, लेकिन तटवर्ती इलाकों में रहने वाले, मछली पकड़ने के पेशे से जुड़े, छोटे द्वीप समूहों, आदिवासी और आर्कटिक पर रहने वाले लोग विशेष रूप से इस खतरे का शिकार हो सकते हैं। फिलिप ने बताया, 'इस आबादी का जीवन समंदरों के स्वास्थ्य पर काफी ज्यादा निर्भर करता है।' अध्ययन कहता है कि धरती का 70 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा घेरे रहने के बाद भी महासागरों पर खतरा मंडरा रहा है। मानवीय गतिविधियां इसके लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं। इससे इन्सानों को किस प्रकार के खतरे हैं, उनका जिक्र इस वैज्ञानिक रिपोर्ट में इस प्रकार किया गया है:

  • प्लास्टिक, विषाक्त धातुओं, मैन्युफैक्चर्ड पेस्टिसाइड, सीवेज और कृषि संबंधी गंदगी के कारण मछलियां मर रही हैं और दूषित हो रही हैं, जिन्हें तीन अरब लोग खाते हैं
  • तटवर्ती इलाकों में फैला प्रदूषण जानलेवा संक्रमणों को फैला रहा है
  • तेल और रासायनिक कचरे के गिरने से समंदर में रहने वाले सूक्ष्म जीवों के लिए खतरा पैदा होता है, जो दुनिया के लिए ऑक्सीजन सप्लाई करने का काम करते हैं

अध्ययन बताता है कि समंदर किस प्रकार के पदार्थों के कारण प्रदूषित हो रहे हैं। इस संबंध में मिले कुछ तथ्य इस प्रकार हैं:

  • मर्करी पॉल्यूशन सागरों में काफी ज्यादा फैल चुका है, जो शिकारी मछलियों में हाई लेवल पर इकट्ठा हो रहा है और फूड चेन के जरिये यह नवजातों, बच्चों और वयस्कों के लिए खतरा बन सकता है
  • पारे से जुड़े प्रदूषण के लिए कोयला एक बड़ा जिम्मेदार सोर्स है, जिसके जलने पर विषाक्त पदार्थ हवा में फैल जाते हैं और अंत में समंदर में जा मिलते हैं
  • औद्योगिक और कृषि संबंधी कचरे, कीटनाशकों और मानव मल के कारण तटवर्ती इलाकों में फैले प्रदूषण से वहां हार्मफुल ऐल्गन ब्लूम की फ्रिक्वेंसी में बढ़ोतरी हुई है; समंदर के ये पेड़-पौधे अनियंत्रित होने पर कई प्रकार के विषैले पदार्थ पैदा कर लेते हैं, जिनसे डिमेंशिया, अमनीशिया, न्यूरोलॉजिकल डैमेज और जल्दी मौत होने का खतरा पैदा हो जाता है
  • हर साल एक करोड़ टन प्लास्टिक कचरा समंदरों में मिल रहा है, जिससे सीबर्ड और मछलियों की मौत हो रही है; इन्हें इन्सान खाते हैं, जिससे उनमें टॉक्सिक माइक्रोस्कोपिक पार्टिकल्स फैल रहे हैं
  • भूमध्य सागर, बाल्टिक सी और एशियाई नदियों का पानी ओशियन पॉल्यूशन से सबसे ज्यादा गंभीर रूप से प्रभावित है 
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