भारत में स्वास्थ्य से जुड़ी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने वैश्विक मंच से बड़ा दावा किया है। डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि साल 2025 तक भारत में टीबी  उच्च प्राथमिकता के साथ खत्म हो जाएगा। डॉ. हर्षवर्धन ने डब्ल्यूएचओ के प्रमुखों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधियों और मंत्रियों को संबोधित करते हुए ये बात कही। उनके मुताबिक आने वाले 5 सालों में केन्द्र सरकार ने टीबी रोग को समाप्त करने का सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) तैयार किया है।

(और पढ़ें- टीबी मरीजों को कोविड-19 संक्रमण से बचाने के लिए क्या करना चाहिए, जानें)

भारत में क्या है टीबी के मामलों की स्थिति?
भारत में टीबी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है। एक अनुमान के मुताबिक, हमारे देश में टीबी की बीमारी से हर साल 2 लाख 20 हजार लोगों की मौत होती है। साल 2011 में जारी किए गए डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर टीबी से जुड़े 96 लाख मामले सामने आए थे। हैरानी की बात है कि इसमें 22 लाख मामले अकेले भारत में पाए गए थे। वहीं, मार्च 2019 में भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी किए गए आंकड़े भी बेहद चौकाने वाले हैं। ये बताते हैं कि केवल साल 2018 में टीबी के 21 लाख 50 हजार (2.15 मिलियन) नए मामलों का पता चला था।

वैश्विक संक्रामक बीमारी है टीबी- हर्षवर्धन
केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि टीबी प्राचीन काल से अस्तित्व में है और एक प्रमुख वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। पिछले एक दशक में हुई प्रगति और विकास के बावजूद, यह बीमारी विश्वभर में प्रमुख संक्रामक जानलेवा बीमारियों में से एक बनी हुई है। टीबी को समाप्त करने के लिए भारत सरकार की ओर से किए गए प्रयासों की सराहना करते हुए हर्षवर्धन ने कहा, “भारत ने टीबी को समाप्त करने की दिशा में साहसी और प्रगतिशील नीतियों के साथ कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। भारत ने 2016 में लापता या अनुपस्थित टीबी रोगियों की संख्या को एक मिलियन (10 लाख) से कम करके साल 2019 में उसे आधा मिलियन यानी 5 लाख कर दिया।" 

साल 2019 में भारत में टीबी के 24 लाख मामले अधिसूचित हुए थे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें करीब एक तिहाई अधिसूचित मामलों की पुष्टि निजी क्षेत्र से हुई। डॉ. हर्षवर्धन के मुताबिक “देश के हर जिले में बेहतर टेस्टिंग के पैमाने के साथ, हम साल 2019 में 66 हजार से अधिक दवा प्रतिरोधी (ड्रग रेजिस्टेंट) टीबी रोगियों की पहचान करने में कामयाब रहे।”

(और पढ़ें- 2019 में टीबी से करीब 80 हजार लोगों की मौत, कोविड-19 संकट की वजह से हजारों अतिरिक्त मौतों की बन सकता है वजह)

गरीबी बीमारी का सबसे बड़ा नकारात्मक कारक -हर्षवर्धन
डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि गरीबी, टीबी और अल्पपोषण का एक शक्तिशाली निर्धारक है जो टीबी की सक्रिय बीमारी के विकास का एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक भी है। यही वजह है कि भारत सरकार पोषण सहायता के लिए मरीजों को सीधे लाभ देने के मकसद से नकद प्रोत्साहन प्रदान कर रही है। इस क्रम में अप्रैल 2018 से अब तक, 30 लाख से ज्यादा लाभार्थियों को 790 करोड़ रुपये (110 मिलियन अमरीकी डॉलर) वितरित किए गए हैं। भारत सरकार की प्राथमिकता है कि टीबी मरीजों को सस्ती लेकिन गुणवत्तापूर्ण देखभाल दी जा सके।

ऐप पर पढ़ें