शीर्ष उपभोक्ता आयोग ने हरियाणा के एक निजी अस्पताल पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। अस्पताल ने भ्रामक विज्ञापन जारी करके रोगी से एंजियोप्लास्टी और स्टेंट प्रत्यारोपण के लिए अतिरिक्त राशि चार्ज की थी। अस्पताल पर अनुचित व्यापार प्रथाओं का दोष साबित होने के चलते यह जुर्माना लगाया गया।

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने पाया कि ब्रह्म शक्ति संजीवनी अस्पताल ने एंजियोग्राफी प्रक्रिया के लिए 12,500 रुपये और औषधीय हार्ट स्टेंट के साथ एंजियोप्लास्टी के लिए 1,25,000 रुपये के ऑफर के बारे में भ्रामक विज्ञापन दिया था, लेकिन रोगी से अधिक चार्ज किया था।

एस एम कांतिकर और दिनेश सिंह की खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा “भ्रामक विज्ञापन के माध्यम से अस्पताल द्वारा अपनाई गई अनुचित व्यापार प्रथाओं का यह एक स्पष्ट मामला है। इसलिए, हमारे विचार में, अस्पताल पर एक लाख रुपये का जुर्माना न्यायसंगत और उचित है। अस्पताल को भविष्य में इस तरह के भ्रामक विज्ञापन से परहेज करने का निर्देश दिया जाता है।”

आयोग ने कहा कि जुर्माने की राशि से 50,000 रुपये शिकायतकर्ता, हरियाणा के निवासी सूर्य कांत को भुगतान किए जाए और बाकी 50,000 रुपये झज्जर में जिला मंच के उपभोक्ता कानूनी सहायता खाते में जमा किए जाए।

पीठ ने अस्पताल को तत्काल प्रभाव के साथ अपने "भ्रामक" विज्ञापन बंद करने का आदेश दिया।
शिकायत के अनुसार, सूर्य कांत 2015 में छाती में दर्द होने पर बहादुरगढ़ के अस्पताल में भर्ती हुआ था। उसकी एंजियोप्लास्टी की गयी जिसके दौरान एक औषधीय स्टेंट लगाया गया था।

जिला आयोग के समक्ष शिकायत में आरोप लगाया गया था कि अस्पताल ने एंजियोप्लास्टी के लिए 2.30 लाख रुपये चार्ज किए थे। जबकि स्थानीय समाचार पत्र में अस्पताल द्वारा प्रकाशित विज्ञापन के मुताबिक, एक रोगी को एंजियोप्लास्टी के लिए एक औषधीय स्टेंट के साथ केवल 1.25 लाख रुपये का भुगतान करना था। उसने कहा कि उसे 1.05 लाख रुपये अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा। 

निचले फोरम ने अस्पताल को निर्देश दिया था कि वह शिकायतकर्ता को मुकदमे के 5,500 रुपये के साथ उससे ली गयी अतिरिक्त राशि वापस करें। राज्य आयोग के समक्ष अस्पताल ने इस निर्णय को चुनौती दी थी, जिसने निचले फोरम के आदेश को खारिज कर दिया था। इससे असंतुष्ट, कांत ने शीर्ष आयोग में अपील की, जहां उन्होंने आरोप लगाया कि अस्पताल ने "माला फाईड इरादे" के साथ अधिक शुल्क वाले स्टेंट के लिए उसकी पत्नी की सहमति प्राप्त की थी। 

कांत की याचिका पर फैसला करते हुए सर्वोच्च आयोग ने कहा, "पहले अस्पताल ने शिकायतकर्ता (कांत) को अपने विज्ञापन से आकर्षित किया। जब शिकायतकर्ता आपातकालीन परिस्थितियों में कार्डियक समस्या के साथ पूरी तरह से डॉक्टरों और अस्पताल के हाथों में फंस गया तो इलाज के लिए मनमाने ढंग से अपनी शर्तें और अतिरिक्त खर्च लगाया गया है।"

अस्पताल ने बचाव में दलील दी कि लगाया गया स्टेंट हाई क्वालिटी का था और शिकायतकर्ता की पत्नी ने इसके लिए सहमति दी थी। इसने आगे दावा किया कि ऑफर केवल नकद भुगतान के आधार पर उपलब्ध था और आपातकालीन मरीजों के लिए नहीं था बल्कि पूर्वनिर्धारित या नियमित रोगियों के लिए ही था। 

इसके लिए, शीर्ष आयोग ने कहा, "कांत की पत्नी से ली गई तथाकथित 'सहमति' आपातकालीन स्थितियों में थी और मजबूरी में दी गयी थी।"

आयोग ने आगे कहा कि विज्ञापन में कहीं भी यह नहीं कहा गया था कि यह केवल 'नकद भुगतान आधार' के लिए था या यह केवल 'पूर्वनिर्धारित अथवा नियमित रोगियों' के लिए लागू होगा या 'आपातकालीन रोगियों' को बाहर रखा गया है या जिस स्टेंट की कीमत का यह ऑफर है, वह अस्पताल के पास उपलब्ध सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली औषधीय स्टेंट के अलावा अन्य किसी स्टेंट के लिए है।

"उन्होंने (कांत) अस्पताल के पास उपलब्ध सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले औषधीय स्टेंट से एंजियोप्लास्टी का चयन किया, जैसा कि एक कार्डियक समस्या से पीड़ित सामान्य और तर्कशील व्यक्ति आपातकालीन परिस्थितियों में करता है। 

"औषधीय स्टेंट की 'गुणवत्ता' तथा 'ऑफर से बाहर रखी श्रेणियों' से संबंधित लागु होने वाले सभी मुख्य नियम और शर्तों के बारे में विज्ञापन में पहले से ही बताया जाना चाहिए था, जो अस्पताल द्वारा नहीं किया गया था।” आयोग ने कहा कि अस्पताल के कार्य और आचरण अनुचित तथा भ्रामक थे।

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