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भारत में सेक्स-सिलेक्टिव अबॉर्शन यानी लिंग के आधार पर गर्भपात कराने से आने वाले सालों में लाखों की संख्या में कम लड़कियां पैदा होने का खतरा पैदा हो गया है। हाल में आई एक स्टडी के मुताबिक, आने वाले दस साल यानी 2030 तक लैंगिक आधारित गर्भपात की वजह से देश में करीब 68 लाख कम लड़कियां पैदा होने की आशंका है। सऊदी अरब स्थित किंग अब्दुल्लाह यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नॉलजी और फ्रांस की यूनिवर्सिटी ऑफ पैरिस के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के आधार पर यह अनुमान लगाया है। प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी पीटीआई ने इस रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि लैंगिक गर्भपात के चलते सबसे कम लड़कियां पैदा होने का ट्रेंड उत्तर प्रदेश में देखने को मिल सकता है।

एजेंसी के मुताबिक, दोनों यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में 1970 से जन्म से जुड़ा लैंगिक अनुपात (एसआरबी) असंतुलित रहा है। उन्होंने कहा है कि यहां जन्म से ठीक पहले होने वाले बच्चे के लिंग का पता लगाकर उसका चयन किया जाता है और लड़कों को ज्यादा अहमियत दी जाती है। इन वैज्ञानिकों का मानना है कि जिन देशों में जन्म आधारित लैंगिक अनुपात असंतुलित है, उनमें भारत अपनी क्षेत्रीय विविधता के कारण विशेष रूप से ध्यान खींचता है।

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प्लोज वन नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने भारत की 98.4 प्रतिशत आबादी को कवर करने वाले 29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (यूटी) में एसआरबी का भावी अनुमान लगाया है। अध्ययन के मुताबिक, इनमें से 21 राज्यों या यूटी में उच्च गुणवत्ता वाला बर्थ डेटा उपलब्ध है। इनके विश्लेषण के आधार पर वैज्ञानिकों ने बताया है कि इन राज्यों में से कम से कम 17 के एसआरबी में लड़कों को महत्व दिए जाने के सबूत मिलते हैं। यह भी पता चला है कि सबसे ज्यादा खराब हालात उत्तर-पश्चिमी भारत के राज्यों और यूटी के हैं। नौ राज्यों और यूटी में लड़कों की मांग विशेष रूप से ज्यादा जानने में आई है।

अध्ययन की मानें तो इनमें उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। इस बारे में शोधकर्ताओं ने कहा है, 'हमारा अनुमान है कि मादा नवजातों की सबसे ज्यादा कमी उत्तर प्रदेश में देखने को मिलेगी। यहां 2017 से 2030 के बीच 20 लाख कम बच्चियां पैदा होंगी। पूरे भारत की बात करें तो 29 राज्यों के स्तर पर 2017 से 2030 के बीच 68 लाख कम लड़कियां पैदा होने का अनुमान है।' शोधकर्ताओं के मुताबक, 2017 से 2025 के बीच हर साल औसतन चार लाख 69 हजार लड़कियां लिंग आधारित गर्भपात के कारण जन्म नहीं ले पाएंगी। वहीं, 2026 से 2030 के बीच यह अंतर और बढ़ेगा और हर साल औसतन पांच लाख 19 हजार कम लड़कियां जन्म लेंगी।'

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