सधगुरु एक प्रबुद्ध भारतीय योगी और गुरु हैं जिन्होने अपनी आध्यात्मिक योग कार्यक्रमों के माध्यम से करोड़ों के जीवन को छुआ है। उन्होंने ईशा फाउंडेशन, एक गैर-लाभकारी संगठन, की स्थापना की है जो दुनिया भर में योग कार्यक्रम प्रदान करती है। ईशा फाउंडेशन भारत, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, लेबनान, सिंगापुर, कनाडा, मलेशिया, युगांडा, चीन, नेपाल, और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों में प्रचलित है। इस वीडियो में सधगुरु बता रहें हैं की खुश कैसे रहा जाए। हिन्दी अनुवाद वीडियो के नीचे दिया गया है।

 

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[प्रश्नकर्ता] गुड ईवनिंग, सर।
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मैंने आपका एक लेक्चर सुना है, जिसमें आपने आनंद और खुशी के बारे में बात की है।
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आपने बताया कि आनंद अपने ऊपर निर्भर करता है जबकि खुशी दूसरों पर निर्भर करती है।
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मैंने इसका अभ्यास करना चाहा
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लेकिन मैंने पाया कि मैं आनंद के उन क्षणों को बरकरार नहीं रख पा रहा थी।
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जब मैं अपने काम में पूरी तरह से मग्न हो जाती हूँ तो आनंद के उन क्षणों का अनुभव कर पाती हूँ,
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लेकिन जैसे ही कोई बाहरी व्यक्ति मेरे काम को पहचान या मान्यता देता है,
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मेरा वह आनंद कहीं गायब हो जाता है।
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खुशी के मोह में न पड़ते हुए, आनंद के उन क्षणों को हम अपने भीतर बरकरार कैसे रख सकते हैं?
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साथ ही, अगर आप हम सभी को आनंद और खुशी का अंतर समझा सकें तो बहुत अच्छा होगा।
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[सद्गुरु] देखिए, अगर अभी मैं आपसे कहूं... या, मैं नहीं...
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मान लेते हैं कि आपके कॉलेज के डीन आपसे कहते हैं
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कि कल से आप सभी को एक ख़ास तरह के कपड़े पहने होंगे,
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तो तुरंत ही कॉलेज में इसका विरोध होने लगेगा।
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इसके बाद अगर डीन कहें, “सारे लोग सुबह नाश्ते में केवल चार इडली ही खा सकते हैं।”
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अगर आपके डीन आपसे कहते हैं, “सबको सुबह पाँच बजे सो कर उठना होगा।”
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मान लेते हैं कि वे इस तरह के दस नियम बना देते हैं,
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कुछ चीज़ें जो आपको करनी होंगी,
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तो आपको लगेगा कि वे आपको गुलाम बनाने की कोशिश कर रहे हैं
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और आप अपनी आज़ादी के लिए चीख़-पुकार मचाने लगेंगे, है न?
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पर ज़रा अपने-आपको तो देखिए।
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अगर अभी कोई और यह तय करता है
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कि आपके आसपास क्या होना चाहिए, तो आप एक गुलाम की तरह महसूस करते हैं।
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लेकिन अभी कोई दूसरा यह तय कर रहा है कि आपके भीतर क्या होना चाहिए।
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क्या यह गुलामी नहीं है?
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कोई और यह तय कर सकता है कि आप खुश हैं या दुखी,
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क्या यह गुलामी नहीं है?
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कोई और तय कर सकता है कि आप एक खुशदिल इंसान बनेंगे या दुखी और उदास रहेंगे,
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क्या यह गुलामी नहीं है?
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आपके भीतर क्या हो रहा है, यह कोई दूसरा तय करता है -
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यह तो गुलामी का सबसे बुरा रूप है, है न?
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ऐसा है कि नहीं?
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दरअसल सारे लोग ऐसे ही हैं, इसलिए यह सामान्य लगता है,
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जबकि ऐसा है नहीं।
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यह सामान्य नहीं है।
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सिर्फ़ इसलिए क्योंकि सारे लोग ऐसे ही हैं, यह बात सामान्य नहीं हो जाती।
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यह इंसान...
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आपके आसपास का जीवन सौ प्रतिशत वैसा नहीं होगा... वैसी कभी नहीं होगा जैसा आप चाहते हैं।
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और ऐसा होना भी नहीं चाहिए;
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क्योंकि अगर सब कुछ आपके ही तरीके़ से होने लगे, तो मैं कहाँ जाऊँगा?
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मुझे खु़शी है कि सब कुछ आपके अनुसार नहीं हो रहा।
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और, आप अभी भी स्टूडेन्ट हैं? अभी जब आप एक स्टूडेन्ट हैं...
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तो मेरे खयाल से इस समय साठ-सत्तर प्रतिशत आपकी मर्जी के अनुसार हो रहा है।
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जब आपकी शादी हो जाएगी, तो ये प्रतिशत बिल्कुल उलट जाएगा।
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हमें पता नहीं, हमें पता नहीं कि यह किस दिशा में जाएगा।
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तो आपके आसपास का जीवन पूरे सौ प्रतिशत आपकी मर्जी से नहीं होता
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और इसे होना भी नहीं चाहिए।
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हाँ, अगर आप मशीनों के साथ जी रहे हों तो ऐसा हो सकता है,
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पर वे भी एक दिन धोखा दे देंगी, है न?
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क्या हर दिन मशीनें आपको कोई न कोई मुसीबत नहीं देतीं? देती हैं।
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तो बाहरी परिस्थितियां सौ प्रतिशत आपके मन के मुताबिक कभी नहीं होने वालीं
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और अगर आपकी खुशी या आनंद, या इतने सारे शब्दों का इस्तेमाल करने के बजाय,
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मूल रूप से यह आपके अंदर का सुखद अनुभव या दुखद अनुभव है।
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सुखद अवस्था के हमारे पास कई नाम हैं,
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हम इसे शांति, खुशी, आनंद, परमानंद कहते हैं।
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दुखद अवस्था के हमारे पास कई नाम हैं, तनाव, उत्कंठा, डर, घबराहट,
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और बाकी चीज़ें, पागलपन, वगैरह।
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सुखद बनाम दुखद अवस्था -
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अगर आपकी सुखद अवस्था आपके आसपास की घटनाओं पर निर्भर है,
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तो आपके लिए हमेशा सुखद रहने की संभावना बहुत कम है, है ना?
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चीज़ों की प्रकृति ही ऐसी है कि ऐसा नहीं हो सकता।
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अगर आप इसके और उसके बीच दूरी पैदा कर सकें, तो ऐसा हो सकता है। कहने का अर्थ यह है कि...
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जब भी लोगों के जीवन में कुछ अच्छा नहीं होता तो लोगों की आदत
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ऊपरवाले की ओर देखने की होती है।
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ह्म्म? है न? पूरी दुनिया ऊपर की ओर देख रही है।
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ऊपर की ओर देखना... आप तो जानते हैं कि यह ग्रह गोल है?
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पता है आपको? ठीक है।
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यह ग्रह गोल है और आप उत्तरी ध्रुव पर नहीं बैठे,
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आप चेन्नई में हैं, ट्रॉपिकल जलवायु के बीच मौजूद हैं
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और यह ग्रह गोल घूम रहा है।
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तो अगर आप ऊपर की ओर देखते हैं, तो आप हमेशा ग़लत दिशा में ही देख रहे हैं।
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ऐसा ही है न?
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आप हमेशा ग़लत दिशा में ही देख रहे हैं, है न?
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हो सकता है कि किसी ग्रीनविच मीन टाइम या ज़ीरो ऑवर के दौरान,
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जब आपने ऊपर की ओर देखा तो शायद निशाना ठीक स्वर्ग की ओर लगा;
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बाकी समय तो ग़लत दिशा में ही देख रहे हैं।
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है कि नहीं?
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इस अनंत ब्रह्माण्ड में, क्या किसी को पता है कि ऊपर कहां और नीचे कहां?
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क्या किसी को पता है? हम्म?
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क्या कहीं ’This side up’ का कोई संकेत है?
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किसी को नहीं मालूम की ऊपर क्या है और नीचे क्या है, इन चीज़ों की बस हमनें कल्पना कर रखी है, है ना?
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क्या आप वास्तव में जानते हैं कि उत्तर कहां है और दक्षिण कहां?
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सही मायनों में, क्या आपको आपको मालूम है कि उत्तर और दक्षिण क्या है?
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हमने सब कुछ बस अपनी सुविधा के हिसाब से तय कर रखा है, है ना?
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ऐसा है कि नहीं?
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क्या आपको पता है कि पूर्व और पश्चिम क्या है? नहीं।
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क्या आपको पता है कि आगे क्या है और पीछे क्या?
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आपको नहीं पता। इनमें से आपको कुछ भी नहीं पता।
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आपको केवल एक ही बात निश्चित तौर पर जान सकते हैं -
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बाहर क्या है और भीतर क्या है; यह एक बात आपको पक्की पता है, है न?
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यह भीतर है, यह बाहर है – केवल यही बात आप अधिकार के साथ जानते हैं।
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बाहर की ओर क्या है, भीतर की ओर क्या है, आप बस यही जानते हैं।
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अगर किसी दिन आप प्रबुद्ध हो गए तो यह बोध भी चला जाएगा।
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जी, मेरे साथ यही तो हुआ है।
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अब मैं नहीं जानता कि भीतर क्या है, बाहर क्या है,
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मैं क्या हूँ, मैं क्या नहीं हूँ, तभी तो मैं पूरी दुनिया में घूमता फ़िरता हूं,
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क्योंकि मुझे नहीं पता कि यह मैं हूं या वह मैं हूं।
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अब आप कह सकते हैं, ‘मैं जानता हूँ कि भीतर क्या है और बाहर क्या है।’
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चलिए, इसकी थोड़ी और जांच करते हैं।
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क्या अभी आप सभी मुझे देख सकते हैं? क्या आप मुझे देख सकते हैं?
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ज़रा मेरी ओर संकेत कीजिए। अपने हाथों से मेरी ओर संकेत कीजिए।
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क्या आप मुझे देख सकते हैं?
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नहीं, आप का संकेत ग़लत था। आप जानते हैं ना कि मैं एक रहस्यदर्शी हूँ?
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आप मामले को समझ नहीं पा रहे।
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अब मुझ पर यह प्रकाश पड़ रहा है, यह प्रतिबिंबित हो कर,
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आपके लेंस में जा कर, रेटीना पर उल्टा चित्र बना रहा है – आपको ये सब पता है ना?
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अब आप मुझे कहाँ देखते हैं? अपने भीतर।
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आप मुझे कहाँ सुनते हैं? अपने भीतर।
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आपनें सारे संसार को कहाँ देखा है? अपने भीतर।
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क्या आपने खुद के बाहर कभी भी किसी चीज़ का अनुभव किया है?
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आपके साथ जो कुछ भी हुआ है – अंधेरा और प्रकाश आपके भीतर हुए हैं,
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दुख और सुख आपके भीतर हुए हैं, आनंद और पीड़ा आपके भीतर हुए हैं।
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क्या आपने कभी भी अपने बाहर किसी चीज़ को महसूस किया है?
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नहीं।
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तो मैं आपसे पूछ रहा हूँ कि जो कुछ आपके भीतर हो रहा है,
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यह किसे तय करना चाहिए कि वह कैसा हो?
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ह्म्म? जो कुछ आपके भीतर हो रहा है,
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यह किसे तय करना चाहिए कि वह कैसा हो?
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किसी और को?
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निश्चित रूप से आपको ही तय करना चाहिए कि आपके भीतर क्या हो रहा है, है न?
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तो, अगर आप खुद तय करेंगे कि आपके भीतर क्या घटे,
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तो आपके पूरे जीवन का अनुभव आपके अनुसार तय होगा,
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इसे आपके सिवा कोई दूसरा तय नहीं कर सकेगा, है न?
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हो सकता है कि आप अपने आसपास की घटनाओं को खुद न तय कर सकें,
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पर इस ग्रह पर जीवन का आपका अनुभव पूरे सौ प्रतिशत आपके द्वारा ही तय होगा,
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बस आपको इसकी बागडोर अपने हाथ में लेनी होगी।
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अगर आपने इसे ढीला छोड़ दिया तो इसे कोई दूसरा तय करने लगेगा।
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वे भी जान-बूझ कर ऐसा नहीं करेंगे,
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वे अनजाने में ही ऐसा करने लगेंगे क्योंकि वे भी आपकी तरह ही बेहोशी में जी रहे हैं।
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