चीन के वुहान शहर से शुरू हुई कोविड-19 महामारी को लगभग एक साल होने को है, लेकिन नए कोरोना वायरस को लेकर ऐसे कई सवाल हैं, जिनका जवाब अब तक तलाशा जा रहा है। बीमारी के इलाज में कई संभावित वैक्सीन कैंडिडेट ह्मयून ट्रायल के आखिरी चरण में हैं और उम्मीद है कि अगले साल की शुरुआत में कोरोना वायरस के खिलाफ एक प्रभावी वैक्सीन उपलब्ध होगी। लेकिन क्या एक वैक्सीन की मदद से कोविड-19 महामारी को खत्म किया जा सकता है यह अब भी एक बड़ा सवाल है। डॉक्टर और शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन के जरिए इस नई संक्रामक बीमारी के बारे में लगभग हर दिन दिलचस्प तथ्य सामने आ रहे हैं। एक नई रिसर्च के जरिए कर्नाटक के डॉक्टरों ने एक बड़ा दावा किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि कोविड-19 से संक्रमित रोगी की मौत के बाद डेडबॉडी में 18 घंटे बाद तक वायरस एक्टिव रहता है। 
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स्किन में नहीं, गले और नाक में वायरस की मौजूदगी
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बेंगलुरू में शोधकर्ताओं को एक शव के पोस्टमॉर्टम के वक्त इससे जुड़े प्रमाण मिले हैं। दरअसल बेंगलुरू में एक 62 वर्षीय व्यक्ति नए कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया था, लेकिन इसके बाद संक्रमण के चलते उसकी मौत हो गई। वहीं, मृत्यु के लगभग 18 घंटे बाद शरीर की जांच करने पर शोधकर्ताओं ने पाया कि शव के नाक और गले के सैंपल में कोरोना वायरस एक्टिव था। हालांकि, स्किन से लिए गए सैंपल में वायरस की मौजूदगी नहीं दिखी। गौरतलब है कि बीते 10 अक्टूबर को शव का पोस्टमार्टम किया गया था जो कि एक घंटे 10 मिनट में पूरा हुआ।

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संक्रमित रोगी के शव से भी फैल सकता है वायरस- रिसर्च
कर्नाटक के ऑक्सफोर्ड मेडिकल कॉलेज में फॉरेंसिक मेडिसिन विभाव के प्रमुख और ऑटाप्सी (शव परीक्षा) का नेतृत्व करने वाले डॉ. दिनेश राव का कहना है कि इस घटना के बाद पता चलता है कि सार्स-सीओवी-2  वायरस रोगियों के शव से भी फैल सकता है जिसकी पूरी आशंका है। इसके अलावा, उन्होंने पाया कि कोविड-19 संक्रमण के कारण रोगी के फेफड़े लेदर बॉल (चमड़े की गेंद) की तरह सख्त हो गए। आमतौर पर, फेफड़ों में स्पॉन्जी (दलदल) की मौजूदगी होती है। लेकिन कोविड-19 से संक्रमित रोगी के फेफड़े में ऐसी कोई वृद्धि नहीं हुई थी। डॉ. राव का कहना है कि फेफड़े में मौजूद हवा की थैलियां यानी वायुकोष फट गई थीं और रक्त वाहिकाओं में कुछ थक्के जमा थे। यही वजह थी कि फेफड़ों में गलन पैदा होने लगी थी।

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