देश की सर्वोच्च मेडिकल रिसर्च एजेंसी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वाइरोलॉजी (एनआईवी) ने कैट क्यू वायरस (सीक्यूवी) को लेकर नई जानकारी दी है। इन दोनों संस्थानों के वैज्ञानिकों ने कहा है कि कैट क्यू वायरस से भारत में किसी प्रकार के स्वास्थ्य संकट या महामारी जैसी स्थिति पैदा होने की संभावना नहीं है। समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में आईसीएमआर-एनआईवी के वैज्ञानिकों ने कहा कि चीन और वियतनाम के बाद भारत में इस वायरस से जुड़े कुछ मामले सामने आने के बाद मीडिया में संक्रमण से जुड़ी रिपोर्टों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया था। इससे लोगों में चिंता फैल गई थी कि कहीं देश में कोरोना वायरस महामारी जैसा एक और संकट न खड़ा हो जाए। लेकिन अब आईसीएमआर-एनआईवी के विशेषज्ञों ने ऐसी किसी आशंका से इनकार कर दिया है।

समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने बताया कि कैट क्यू वायरस से ज्यादा से ज्यादा ग्रामीण इलाकों में संक्रमण के कुछ मामले देखने को मिल सकते हैं। यह कहते हुए उन्होंने साफ किया कि फिलहाल सीक्यूवी को किसी ऐसे बड़े खतरे के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट खड़ा हो जाए। एनआईवी के निदेशक डीटी मौर्या ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, 'हमारा निष्कर्ष यह है कि इससे (कैट क्यू वायरस) उन ग्रामीण इलाकों में छोटे स्तर पर संक्रमण फैल सकता है, जहां कलोसीन मच्छर अपनी तादाद बढ़ाते हैं। इस वायरस में महामारी फैलानी की क्षमता नहीं है।'

डीटी मौर्या ने यह भी बताया कि सीक्यूवी भारत में नया नहीं है। उनके मुताबिक, 1961 में कर्नाटक के सागर जिले में इस वायरस को पहली बार आइसोलेट किया गया था। मौर्या ने कहा, 'यह बुन्याविरिडाई (विषाणु परिवार) से आता है, जो जानवरों में पाए जाने वाले वायरसों के सबसे बड़े विषाणु परिवारों में से एक है। इसमें कोई 350 वायरस आते हैं। अतीत में इस परिवार के कई वायरसों को आइसोलेट कर उनकी जानकारी देने का काम भारत में किया गया है। इन विषाणुओं में कैसोडी वायरस, उम्ब्रे वायरस, ओया वायरस, चित्तूर वायरस, कैकलुर वायरस, तिमिरी वायरस, सातूपेरी वायरस, गंजम वायरस आदि शामिल हैं। इस प्रकार के कई वायरसों को मच्छरों, इन्सानों, पक्षियों और सुअरों से आइसोलेट किया गया है।'

आईसीएमआर-एनआईवी के वैज्ञानिकों ने बताया है कि कैट क्यू वायरस के पहले मामले 2004 में सामने आए थे, जब वियतनाम और युगांडा में सर्विलेंस के दौरान मच्छरों से वायरस को आइसोलेट किया गया था। हाल में भारत में इस वायरस को लेकर तब हल्ला मचा, जब आईसीएमआर ने बताया कि उसके द्वारा लिए 883 ह्यूमन सिरम सैंपलों में एंटी-सीक्यूवी आईजीजी एंटीबॉडी मिलने की पुष्टि हुई है। ये सभी सैंपल 2014 से 2017 के बीच देश के अलग-अलग राज्यों से लिए गए थे। इनमें से दो के पॉजिटिव निकलने के बाद यह संकेत मिला कि ये दोनों व्यक्ति किसी समय वायरस से संक्रमित हुए थे, जिसके बाद उनके शरीर ने संक्रमण के खिलाफ एंटीबॉडी पैदा किए थे। अध्ययन के हवाले कहा गया था कि भारत में पाई जाने वाली मच्छरों की तीन प्रजातियों - एई एजिप्टाई, सीएक्स क्विनक्यूफैसशिएटस और सीएक्स ट्राइटेनियोराइंकस - में सीक्यूवी हो सकता है। इसके अलावा, सुअरों, पक्षियों (जैसे जंगली मैना) में भी यह वायरस मिल सकता है। 

अध्ययन कहता है कि मच्छर के काटने से व्यक्ति सीक्यूवी से संक्रमित हो सकता है, जिससे इन्सेफेलाइटिस बीमारी जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं। लेकिन यह किसी प्रकार से बड़ा स्वास्थ्य संकट पैदा करने में सक्षम नहीं दिखता। एनआईवी की वैज्ञानिक प्रज्ञा यादव ने कहा, 'भारत में सीक्यूवी संक्रमण के मामले डिटेक्ट किए गए हैं। पिछले सात सालों के दौरान दो लोगों में इसके एंटीबॉडी मिले हैं। इन दो लोगों में भी बीमारी से जुड़े कोई लक्षण नहीं दिखे। इसलिए यह संभावना काफी कम है कि इस विशेष वायरस से होने वाला संक्रमण इन्सानों में फैल सकता है। हमें इसके प्रेवलेंस के लिए और ज्यादा सैंपल इकट्ठा कर उनकी जांच करने की जरूरत है।'

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