कोविड-19 महामारी की वजह बने कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 ने जब वैश्विक स्तर पर फैलना शुरू किया तो इस वायरस को लेकर अनेक प्रकार की गलत जानकारियां इंटरनेट पर फैल गई थीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने तब सोशल मीडिया और अन्य इंटरनेट प्लेटफॉर्मों पर शेयर हो रही इन जानकारियों को 'इन्फोडेमिक' यानी फेक न्यूज या गलत जानकारी फैलाने वाली महामारी करार दिया था। अब डब्ल्यूएचओ को इस 'महामारी' के फिर फैलने का खतरा महसूस होने लगा है। इसकी वजह है कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए वैक्सीन बनने की संभावनाओं का मजबूत होना। हाल में कई वैक्सीन निर्माताओं ने अपनी-अपनी कोरोना वैक्सीन को कोविड-19 के खिलाफ कम से कम 90 प्रतिशत सक्षम बताया है। ऐसे में डब्ल्यूएचओ और अन्य मेडिकल विशेषज्ञों को डर है कि सोशल मीडिया और तकनीक का इस्तेमाल इन वैक्सीनों की गलत जानकारी फैलाने में इस्तेमाल न होने लगे।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, डब्ल्यूएचओ और अन्य संगठनों व एक्सपर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा है कि जिस तरह कोविड-19 महामारी की शुरुआत में कोरोना वायरस को लेकर कई प्रकार की फेक न्यूज और भ्रामक जानकारी फैलाई गईं, ठीक उसी तरह अब इसके इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम को भी प्रभावित करने की कोशिश की जा सकती है। डब्ल्यूएचओ ने कहा है, 'कोरोना वायरस इतिहास की ऐसी पहली महामारी है, जिसमें सोशल मीडिया और तकनीक का बहुत बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि लोगों को सुरक्षित, सूचित, उपयोगी और संबद्ध रखा जा सके। लेकिन इसके साथ ही, जिस तकनीक पर हम निर्भर हैं, उससे सूचना महामारी को बढ़ाने का काम भी लगातार किया जा रहा है ताकि कोविड-19 महामारी को नियंत्रित करने के प्रयासों को कमजोर किया जाए।'

जानकारों का कहना है कि दुनियाभर की सरकारों को वैक्सीन को लेकर पैदा हुए संदेहों को दूर करने का काम रिकॉर्ड समय में करना होगा, क्योंकि सोशल मीडिया के जरिये वायरस से जुड़ी कोई जानकारी और उसके बारे में झूठी बातें एक साथ लोगों तक पहुंच जाती हैं। इसी कारण डब्ल्यूएचो ने सूचना महामारी या इन्फोडेमिक की परिभाषा जानकारी या सूचना के एक ऐसे ढेर के रूप में दी है, जिसमें गलत जानकारी को जानबूझकर लोगों में फैलाने के प्रयास किए जाते हैं। इस सिलसिले में अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कोविड-19 महामारी के बारे में गलत जानकारी फैलने का सबसे बड़ा कारण बताया गया था। यह सभी जानते हैं कि ट्रंप महामारी के प्रारंभ से ही इसे लेकर लगातार झूठ बोल रहे थे।

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ऐसे में डब्ल्यूएचओ का मानना है कि मजबूत विश्वास और सही जानकारी के बिना डायग्नॉस्टिक टेस्ट का इस्तेमाल व्यर्थ हो जाएगा, इम्यूनाइजेशन कैंपेन अपने लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाएंगे और वायरस पहले की तरह लगातार फैलता रहेगा। जानकारों का कहना है कि डब्ल्यूएचओ के इस रुख का काफी महत्व है, क्योंकि कम से कम तीन चर्चित वैक्सीन निर्माताओं फाइजर-बायोएनटेक, मॉडेर्ना और एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने अपने-अपने शुरुआती ट्रायल परिणाम सामने रख दिए हैं और ये तीनों संभावित कोविड-19 वैक्सीन की दौड़ में सबसे आगे चल रही हैं। कुछ देशों की सरकारों ने अपने यहां वायरस के सबसे ज्यादा खतरे वाले लोगों को ये वैक्सीन लगाने के लिए योजना भी बनाना शुरू कर दिया है। लेकिन दूसरी ओर चर्चित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भ्रामक तथ्य और फेक न्यूज को फैलाने वाले 'मच्छरों' जैसा काम कर रहे हैं। फ्रांस की रेनेस-2 यूनिवर्सिटी में सोशल साइकोलॉजी के प्रोफेसर सेलवेन देलवू ने यह टिप्पणी करते हुए कहा है कि गलत जानकारी अब एक ऐसे स्केल पर पहुंच गई है, जिसकी कोई तुलना नहीं हो सकती।

वहीं, डब्ल्यूएचओ के इम्यूनाइजेशन डिपार्टमेंट की प्रमुख रेचल ओ ब्रायन ने एएफपी से बातचीत में कहा कि एजेंसी सोशल मीडिया पर चलाए गए एंटी-वैक्सीन मूवमेंट से चिंतित है। उन्हें अंदेशा है कि यह वैक्सीन-विरोधी मूवमेंट लोगों को कोरोना वायरस के खिलाफ चलने वाले इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम से अलग कर सकता है। इस बारे में रेचल ने कहा, 'हम इसे लेकर काफी चिंता में हैं। हमारा प्रयास है कि लोगों तक जानकारी विश्वसनीय सूत्रों से पहुंचे। वे इस बात को भी समझें कि बाहर बहुत ज्यादा गलत जानकारी दी जा रही है। चाहे ऐसे जानबूझकर किया जा रहा हो या अनजाने में।'

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 वैक्सीनेशन के लिए सबसे बड़ा खतरा हो सकती है 'सूचना महामारी', डब्ल्यूएचओ ने फेक न्यूज और गलत जानकारी को लेकर दी चेतावनी है

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