कोविड-19 संक्रमण के बढ़ते स्तर को देखते हुए इसे रोकने के लिए वैक्सीन की इस वक्त बहुत आवश्यकता है। वैज्ञानिक इस दिशा में लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई निश्चित सफलता हाथ नहीं लगी है। वैक्सीन से लाखों लोगों को काल के गाल में समाने से बचाया जा सकता है। हालांकि, अभी इसमें कितना वक्त लगता है यह देखने वाली बात होगी।

यहां गौर करने वाली बात यह है कि किसी भी वैक्सीन को बनाने के लिए सबसे पहले यह जान लेना आवश्यक होता है कि संक्रमण किस प्रकार से फैल रहा है और यह किन कोशिकाओं के माध्यम से शरीर को नुकसान पहुंचा रहा है। सार्स-सीओवी-2 वायरस के मौजूदा अध्ययनों के आधार पर 40 से अधिक वैक्सीनों पर पहले से ही प्री-क्लिनिकल (लैब या पशु अध्ययन) परीक्षण चल रहा है, जबकि 2 वैक्सीन अभी क्लीनिकल (मानव परीक्षण) चरण में हैं। ये वैक्सीन सार्स-सीओवी-2 वायरस के विभिन्न भागों को लक्षित करते हुए तैयार किए जा रहे हैं, ताकि प्रतिरक्षा प्रणाली को वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित करने में मदद मिल सके।

हालांकि, माना जा रहा है कि जनता तक उपलब्ध कराने में अभी भी इन वैक्सीनों को एक साल से अधिक का वक्त लग सकता है।

  1. कोविड-19 वैक्सीन के लिए लक्षित एंटीजन
  2. कोविड-19 के अलग-अलग वैक्सीन जिन पर चल रहा है शोध
  3. डब्ल्यूएचओं के दिशानिर्देशों के अनुसार कोविड-19 का वैक्सीन कैसा होना चाहिए?
कोविड-19 वैक्सीन : लक्ष्य और वैक्सीन के प्रकार के डॉक्टर

रोगाणुओं की सतह पर मौजूद प्रोटीन को एंटीजन कहा जाता है, हमारा शरीर इसी एंटीजन के खिलाफ एंटीबॉडी का निर्माण करता है। इसके बाद शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली रोग के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए उस एंटीजन को नष्ट कर देती है।

वैक्सीन बनाते वक्त एंटीजन का चयन पहला कदम है। कोविड-19 के लिए वैक्सीन बनाने के लिए कई प्रकार के एंटीजनों को ध्यान में रखा जा रहा है। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।

होल-सेल एंटीजन

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस वैक्सीन में पूरे वायरस यानी न्यूक्लिक एसिड (डीएनए / आरएनए), प्रोटीन, लिपिड और अन्य घटकों को ध्यान में रखा जाता है। होल-सेल दो प्रकार के हो सकते हैं।

  • लाइव अटेन्यूटेड वैक्सीन - इसमें मूल वायरस के कमजोर संस्करण का उपयोग किया जाता है।
  • किल्ड वायरस वैक्सीन - इसमें मृत वायरसों का उपयोग किया जाता है।

आमतौर पर लाइव अटेन्यूटेड वैक्सीन अधिक प्रभावी होते हैं। इतना ही नहीं वैक्सीन की एक या दो खुराक शरीर को आजीवन प्रतिरक्षा दे सकती हैं। दूसरी ओर, किल्ड वायरस वैक्सीन के मामले में किसी व्यक्ति में रोगजनकों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए बूस्टर की जरूरत होती है।

संरचनात्मक प्रोटीन

संरचनात्मक प्रोटीन वैक्सीन के सबसे आम लक्ष्यों में से एक हैं। वायरस को पूर्ण बनाने के लिए इन प्रोटीनों की आवश्यकता होती है। सार्स-सीओवी-2 वायरस में निम्नलिखित प्रकार के ​प्रोटीन मौजूद होते हैं।

  • स्पाइक (एस) प्रोटीन
  • न्यूक्लियोकैप्सिड (एन) प्रोटीन
  • मेम्ब्रेन (एम) प्रोटीन
  • इन्वेलप्स (ई) प्रोटीन

एस प्रोटीन : कोविड-19 के विभिन्न वैक्सीनों को एस प्रोटीन को लक्षित करते हुए तैयार किया जा रहा है। यह वही प्रोटीन है जो मानव शरीर की सतह पर एसीई-2 रिसेप्टर्स के साथ सार्स-सीओवी-2 वायरस को जोड़ने में मदद करता है। एस प्रोटीन में दो उप भाग होते हैं, एस1 और एस2।

एस1 उपभाग के दो डोमेन होते हैं। एन-टर्मिनल डोमेन (एनटीडी) और सी-टर्मिनल डोमेन (सीटीडी)। रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन नामक एक भाग सीटीडी में मौजूद है, यह वह हिस्सा है जो एसीई-2 रिसेप्टर्स से जुड़ा होता है।

एस2 उपभाग में वह सब मौजूद होता है जो स्वस्थ कोशिकाओं की बाहरी झिल्ली के साथ वायरस को मिलाने में आवश्यक होता है।वायरस इंट्रासेल्युलर परजीवी होते हैं। सबसे पहले वह स्वस्थ कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं और बाद में शरीर की अन्य कोशिकाओं का उपयोग करते हुए संक्रमण को फैलाते हैं। एस प्रोटीन से ही विभिन्न एंटीजनों का पता लगाया जाता है। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।

फुल लेंथ एस प्रोटीन

इस एंटीजन में अपने सभी उपभागों के साथ एस प्रोटीन मौजूद होता है। चूंकि एक पूर्ण रूप के प्रोटीन में कई तरह की साइटें होती हैं जिन्हें हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली पहचान सकती है।

फुल लेंथ एस प्रोटीन को समझने के लिए एक डीएनए वैक्सीन ने जानवरों पर किए गए परीक्षण में आशाजनक परिणाम प्रस्तुत किए। इससे न केवल सभी लक्षणों को कम करने में सफलता मिली साथ ही प्रतिरक्षा प्रणाली ने उच्च स्तरीय एंटीबॉडी का निर्माण भी किया।

कोविड-19 संक्रमण के खिलाफ वैक्सीन बनाने के​ लिए ब्रिटेन की फार्मास्यूटिकल कंपनी जीएसके (ग्लैक्सो स्मिथ क्लाइन) और चीन की फर्म क्लोवर बायोफार्मास्युटिकल्स मिलकर काम कर रही हैं।

आरबीडी

सार्स-सीओवी-2 वायरस को एसीई-2 रिसेप्टर्स से जोड़ने में रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन आरबीडी मदद करता है। ऐसे में वैक्सीन बनाने वाली सभी कंपनियां इसी को लक्षित कर रही हैं।

किसी भी व्यक्ति में प्रोटीन या न्यूक्लिक एसिड कोडिंग वाले इंजेक्शन से इसके खिलाफ एंटीबॉडी का उत्पादन होना शुरू हो सकता है। यदि वह व्यक्ति संक्रमित है तो एंटीबॉडी सबयूनिट को पहचान कर इसे एसीई-2 रिसेप्टर्स से जुड़ने से रोकते हैं। इससे व्यक्ति में संक्रमण और बीमारी का खतरा कम हो जाता है।

एस1 उपभाग

चूंकि एस1 उपभाग में आरबीडी सम्‍मिलित होता है, ऐसे में इस पूरे उपभाग को कोविड-19 के लिए लक्षित किया जाता है। मर्स वायरस के लिए पशुओं पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि एस1 उपभाग मर्स-सीओवी संक्रमण से पूरी तरह सुरक्षा प्रदान करता है। एस1 उपभाग में एनटीडी डोमेन भी होता है। मर्स वायरस को लेकर प्रयोगशालाओं में किए गए परीक्षण में इसके कुछ इम्युनोजेनसिटी (प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्राप्त करने की क्षमता) दिखाई दिए। हालांकि, यह कोविड-19 वायरस के वैक्सीन में कितना असरकारक होगा, इसके कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं क्योंकि सार्स-सीओवी-2 में एनटीडी किस प्रकार से कार्य करता है इसे लेकर अब तक कोई खास जानकारी मौजूद नहीं है।

अमेरिका का बेयोर कॉलेज ऑफ मेडिसिन एस1 या आरबीडी प्रोटीन के साथ एक वैक्सीन तैयार करने को लेकर काम कर रहा है। वहीं सार्स-सीओवी-2 वायरस के आरबीडी प्रोटीन का पता करने वाला एक आरएनए वैक्सीन चीन में विकसित किया जा रहा है।

एस2 सबयूनिट का एफपी डोमेन

एफपी डोमेन एस2 सबयूनिट का हिस्सा है। यह स्वस्थ कोशिकाओं की झिल्ली के साथ सार्स-सीआवी-2 वायरस को मिलाने में मदद करता है। चीन का तियानजिन विश्वविद्यालय एक आरबीडी-एफपी फ्यूजन प्रोटीन वैक्सीन पर काम कर रहा है। पशुओं पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने में यह वैक्सीन अत्यधिक प्रभावी हो सकता है।

न्यूक्लियोकैप्सिड (एन) प्रोटीन

एन प्रोटीन, सभी कोरोना वायरसों में पाया जाने वाला एक प्रकार का प्रोटीन है। इसमें बहुत अधिक बदलाव नहीं आता है और लगभग सभी कोरोना वायरसों में इसका रूप एक समान ही रहता है। अध्ययनों से पता चलता है कि सार्स वाले लगभग 89 प्रतिशत रोगियों में इस प्रोटीन से लड़ने वाले एंटीबॉडी मौजूद होते हैं। एन-प्रोटीन कोविड-19 में विभिन्न प्रकार से कार्य करता है। इसमें वायरस के बाहरी कोट को तैयार करना, वायरल आरएनए की प्रतिकृति बनाने और संक्रमित सेल से नए वायरस को बढ़ाने जैसा कार्य शामिल है। इसके बाद नया वायरस आसपास की कोशिकाओं को संक्रमित करते हुए रोगी के शरीर में बीमारी फैलाता है।

हालांकि, वैक्सीन के लिए इस प्रोटीन के उपयोग को लेकर कई विवाद हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार कोविड-19 वैक्सीन को ले​कर बनाए गए मापदंडों में अब तक किसी भी संस्थान ने विशेष रूप से एन प्रोटीन के उपयोग का उल्लेख नहीं किया है।

मेम्ब्रेन (एम) प्रोटीन और इन्वेलप्स (ई) प्रोटीन

एन प्रोटीन की तरह ही एम प्रोटीन भी कोरोना वायरस में मौजूद होता है और यह कोविड-19 के वैक्सीन के लिए एक संभावित माध्यम हो सकता है। एम प्रोटीन संक्रमित कोशिकाओं में वायरस के संयोजन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

दूसरी ओर चूंकि, ई-प्रोटीन कोई मजबूत इम्युनोजेन नहीं है, फिर भी संक्रमित कोशिकाओं में सार्स-सीओवी-2 वायरस के संयोजन के लिए जिम्मेदार होता है। अध्ययनों से पता चलता है कि ई प्रोटीन को वायरस से हटा दिया जाए तो कोरोना वायरस की संक्रामक क्षमता को कम किया जा सकता है।

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लाइव अटेन्यूटेड वैक्सीन

जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया है, ये वैक्सीन लाइव वायरस के कम शक्तिशाली रूप हैं, लेकिन वे एक मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बनाते हैं। आमतौर पर कंप्यूटर प्रोग्राम का उपयोग करके लाइव अटेन्यूटेड वैक्सीन बनाई जाती है, जो वायरस के आनुवंशिक कोड में बदलाव को ढूंढती है, जिसे इसे कमजोर करने की आवश्यकता होगी। एकल प्रोग्राम का उपयोग करके ऐसे कई परिवर्तनों का पता लगाया जा सकता है जो वैक्सीन बनाने के विकल्प के रूप में काम कर सकते हैं।

अमेरिका की बायोटेक्नोलॉजी कंपनी कोडाजेनिक्स आइएनसी, जोकि वायरस के जीनोम के आधार पर वायरल वैक्सीन बनाने में मशहूर है। इसके साथ मिलकर सीरम इस्टीट्यूट आफ इंडिया कोविड-19 के लिए एक वैक्सीन बनाने पर काम कर रही है।

सब यूनिट वैक्सीन : ये वैक्सीन वायरस में विभिन्न सब-यूनिटों का उपयोग करते हैं जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाने की क्षमता रखते हैं। सभी एस सबयूनिट वैक्सीन, सबयूनिट वैक्सीन का एक उदाहरण हैं।

वेक्टर वैक्सीन

आमतौर पर यह वैक्सीन भी लाइव अटेयून्टेड वैक्सीन की तरह ही होती हैं। हालांकि, लाइव अटेयून्टेड वैक्सीन के विपरीत, वेक्टर वैक्सीन उन दूसरे वायरसों का उपयोग करती है जो किसी बीमारी का कारण बन सकते हैं। वेक्टर वैक्सीन बनाने के लिए एडेनोवायरस सबसे आम वायरसों में से एक है। ये वायरस कम प्रतिरोधी क्षमता वाले लोगों में सामान्य रोगों को जन्म दे सकते हैं। लक्षित सबयूनिट के लिए कोड को फिर वेक्टर के न्यूक्लिक एसिड में जोड़ा जाता है। एडेनोवायरस विभिन्न प्रकार के शरीर की कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं और ऊतक में बड़ी संख्या में विकसित हो सकते हैं, जो उन्हें टीकों के बड़े पैमाने पर विकास के लिए एक उत्कृष्ट वेक्टर बनाता है।

अमेरिका के फर्म ग्रीफेक्स ने कोविड-19 के लिए एक एडेनोवायरस-आधारित वैक्सीन तैयार किया है। यह व्यक्ति के शरीर में वायरस की प्रतियों यानी वायरसों को बढ़ने नहीं देता है। कई रूप बनाने वाले एडिनोवायरस की तुलना में इन वायरसों को प्रतिरक्षा के लिए उच्च खुराक की आवश्यकता होती है। नॉन- रिपलेक्टिंग एडेनोवायरस वैक्सीन को लेकर पहले चरण के क्लीनिकल परीक्षण प्रारंभ हो चुके हैं। वैक्सीन को चीन में विकसित किया जा रहा है।

सार्स-सीओवी-2 के एस प्रोटीन के लिए हॉर्सपॉक्स वायरस कोड का उपयोग करके एक और वेक्टर वैक्सीन विकसित की जा रही है। यह चेचक और काउपॉक्स वायरसों की प्रजाति का एक हिस्सा है।

आरएनए/ डीएनए वैक्सीन

न्यूक्लिक एसिड वैक्सीन एक नवीनतम तकनीक है जिसे पारंपरिक लाइव अटेन्यूटेड से कहीं अधिक विश्वसनीयता के साथ देखा जा रहा है। हालांकि, अभी तक किसी भी आरएनए या डीएनए आधारित वैक्सीन को मानव उपयोग की अनुमति नहीं मिली है लेकिन शोधकर्ता लगातार तकनीक पर काम कर रहे हैं।

डीएनए के माध्यम से शरीर की कोशिका में सूचनाओं का प्रवाह होता है। यह मानव शरीर के विकास के लिए आवश्यक विभिन्न अणुओं को कोड करता है। हालांकि, डीएनए कोशिका के अंदर रहता है। वहीं आरएनए, विशेष रूप से एमआरएनए जिसे मैसेंजर आरएनए भी कहा जाता है जो डीएनए के संदेश को कोशिकाओं में ले जाता है और वहां प्रोटीन का उत्पादन करने में मदद करता है।

डीएनए/ आरएनए वैक्सीन में एंटीजन के लिए कोड होता है जो शरीर की कोशिका में पहुंचकर सेड प्रोटीन / एंटीजन का उत्पादन करता है। आरएनए वैक्सीन की तुलना डीएनए वैक्सीन, बनाने और शरीर में पहुंचाने में अपेक्षाकृत सरल होता है। हालांकि, इसमें जोखिम होता है कि नया डीएनए जीनोम में एकीकृत हो जाता है और उत्परिवर्तन का कारण बनता है। दूसरी ओर आरएनए वैक्सीनों में ऐसा कोई जोखिम नहीं है। चूंकि, प्रोटीन / एंटीजन के उत्पादन के बाद आरएनए जल्दी खराब हो जाता है, इसलिए यह कोई जोखिम पैदा नहीं करता है।

सिंथेटिक पेप्टाइड वैक्सीन

यह वैक्सीन सामान्य रूप से सबयूनिट वैक्सीन जैसे होती हैं। हालांकि, पूरे सबयूनिट/ प्रोटीन को शामिल करने की बजाय, इन टीकों में विशिष्ट एपिटोप्स, एंटीजन का वह भाग, जिसमें एंटीबॉडी संलग्न होते हैं। चूंकि इन वैक्सीनों का आणविक भार कम होता है इसलिए उन्हें अपने कार्य में सुधार करने के वास्ते सहायता के लिए गुणवर्धकों की आवश्यकता होती है। कनाडा की जेनरेक्स बायोटेक्नोलॉजीफर्म कोविड-19 के लिए एक सिंथेटिक पेप्टाइड वैक्सीन विकसित करने पर काम कर रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में एक दिशा-निर्देश जारी किया है, जिसमें बताया गया है कि कोविड-19 वैक्सीन किस प्रकार का होना चाहिए।

  • वैक्सीन को इस तरह से बनाया जाना चाहिए, जिससे यह प्रकोप के दौरान प्रयोग किए जाने के साथ दीर्घकालीन उपयोगों के लिए भी योग्य हो।
  • वैक्सीन इस तरह से बनना चाहिए, जिसका उपयोग सभी आयु वर्ग के सभी लोगों, गर्भवती और नर्सिंग महिलाओं पर भी किया जा सके। उम्रदराज लोगों को भी इस दौरान ध्यान में रखना चाहिए।
  • उपयोग की दृष्टि से वैक्सीन अत्यधिक सुरक्षित होना चाहिए। कोशिश की जानी चाहिए कि इसका कोई गंभीर साइडिफेक्ट न हो।
  • किसी क्षेत्र में आबादी के आधार पर वैक्सीन की आदर्श रूप से 70% प्रभावकारिता होनी चाहिए। बुर्जुगों में इसके बेहतर परिणाम होने चाहिए।
  • वैक्सीन के परिणाम त्वरित होने चाहिए अर्थात 2 सप्ताह से कम समय में ही इसका असर दिखना चाहिए। इसमें दो से अधिक खुराक की जरूरत नहीं होनी चाहिए। बूस्टर खुराक दिए जा सकते हैं लेकिन इसकी आवृत्ति वार्षिक या उससे अधिक होनी चाहिए। बूस्टर खुराक के मामले में प्राथमिक वैक्सीन एक खुराक वाला होना चाहिए।
  • वैक्सीन की एक खुराक से एक वर्ष या कम से कम 6 महीने तक सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
  • वैक्सीन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने की सीमा को ध्यान में रखते हुए उच्च तापमान क्षमता वाला रखना चाहिए। इसे ऐसे मापन यंत्र में रखा जाना चाहिए जो आदर्श तापमान को इंगित करता हो।
  • वैक्सीन का एक वर्ष का शेल्फ जीवन -60 से -70 डिग्री सेल्सियस और लगभग 2 सप्ताह का 2 से 8 डिग्री सेल्सियस पर होना चाहिए। लंबे समय तक उपयोग के लिए वैक्सीन को -20 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तापमान पर रखा जा सकता हो।
  • लंबी अवधि में उपयोग के लिए वैक्सीन को ऐसे बनाया जाना चाहिए, जैसे पोलियो, खसरा जैसे अन्य दूसरे वैक्सीनों के साथ प्रयोग में लाया जा सके।
  • टीकाकरण अभियानों के लिए अधिक खुराकों ​वाले वैक्सीन की शीशी होनी चाहिए। हालांकि, लंबे समय तक उपयोग के लिए एकल और मल्टीडोज दोनों शीशियों का उपयोग किया जा सकता है। मल्टीडोज शीशियों को शीशी खोलने के 6 घंटे बाद या टीकाकरण सत्र के अंत में ठीक से संभाला जाना चाहिए।
  • वैक्सीन इंजेक्शन में 0.5 एमएल से अधिक वैक्सीन नहीं होनी चाहिए। हालांकि, यह 1 एमएल तक जा सकती है।
  • वैक्सीन इतनी ही कीमत का होनी चाहिए, जिससे प्रकोप की स्थिति में इसका व्यापक वितरण करने में कोई कठिनाई आड़े न आए।
Dr Rahul Gam

Dr Rahul Gam

संक्रामक रोग
8 वर्षों का अनुभव

Dr. Arun R

Dr. Arun R

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5 वर्षों का अनुभव

Dr. Neha Gupta

Dr. Neha Gupta

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Dr. Anupama Kumar

Dr. Anupama Kumar

संक्रामक रोग

कोविड-19 वैक्सीन : लक्ष्य और वैक्सीन के प्रकार से जुड़े सवाल और जवाब

सवाल लगभग 3 साल पहले

क्या वैक्सीन लगवाना अनिवार्य है?

Dr. Ayush Pandey MBBS, PG Diploma , सामान्य चिकित्सा

वैक्सीन लगवाना अनिवार्य नहीं है, लेकिन कोरोना माहामारी के प्रकोप को देखते हुए वैक्सीन लगवाने का सुझाव दिया जाता है। एक बार जब आपको वैक्सीन लग जाएगी, तो उसके बाद शरीर कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाना शुरू कर देगा, इसके बाद यदि आप इस वायरस से संक्रमित हो जाते हैं तो आपका शरीर इस संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार हो जाएगा। कोविड-19 वैक्सीन लगवाने के बाद न सिर्फ संक्रमण की जटिलताओं में कमी आती है, बल्कि अस्पताल में भर्ती होने का जोखिम भी कम होता है। साक्ष्य बताते हैं कि यदि आप वैक्सीन लगवाते हैं तो इससे आपके जरिये दूसरों तक वायरस संचारित होने का जोखिम भी कम हो जाता है।

सवाल लगभग 3 साल पहले

भारत में कौन सी वैक्सीन लगाई जा रही है?

Dr. Haleema Yezdani MBBS , सामान्य चिकित्सा

वर्तमान में भारत में तीन अलग-अलग टीके स्वीकृत और उपलब्ध हैं - कोविशील्ड जो कि एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा निर्मित है। कोवैक्सीन जो कि भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड द्वारा तैयार की गई है और हाल ही में लांच हुई स्पूतनिक-वी जो कि गमालिया रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी, मॉस्को (रूस) द्वारा निर्मित है। कौन-सी वैक्सीन सबसे अच्छी है यह इसके प्रभावकारिता पर निर्भर करता है। इनमें से कोविशील्ड को 63% प्रभावी माना गया है, जबकि कोवैक्सीन की प्रभावकारिता दर 81% है। लांसेट के अनुसार, स्पूतनिक-वी कोविड-19 के खिलाफ 91% सुरक्षा देती है। इन तीनों वैक्सीन की प्रभावकारिता में भिन्नता होने के बावजूद, तीनों को सुरक्षित और प्रभावी घोषित किया गया है। इनमें से जो भी आपके आसपास उपलब्ध हो, उसे जल्द प्राप्त करें। आने वाले समय में कुछ अन्य टीके भी भारतीय बाजार में उपलब्ध हो सकते हैं।

सवाल लगभग 3 साल पहले

क्या COVID-19 वैक्सीन में वायरस है?

Dr. B. K. Agrawal MBBS, MD , कार्डियोलॉजी, सामान्य चिकित्सा, आंतरिक चिकित्सा

आमतौर पर, टीकों में वायरस की कुछ मात्रा जरूर होती है, ताकि आपका शरीर उस वायरस के प्रति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कर सके। कोवैक्सीन में मृत वायरस है जबकि कोविशील्ड में वायरस का एक छोटा सा हिस्सा उपयोग किया गया है।

सवाल लगभग 3 साल पहले

कोरोना होने के कितने दिन बाद वैक्सीन लगवानी चाहिए

Dr. Braj Bhushan Ojha BAMS , गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, डर्माटोलॉजी, मनोचिकित्सा, आयुर्वेद, सेक्सोलोजी, मधुमेह चिकित्सक

हाल ही में, एक सरकारी पैनल ने सुझाव दिया है कि जो लोग कोरोना से ग्रस्त हो चुके हैं, उनके ठीक होने के छह महीने बाद टीका लगवाना चाहिए। हालांकि, यह केवल एक सुझाव है, निश्चित रूप से यह जरूरी है कि आप पहले पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएं उसके बाद ही वैक्सीन लगवाएं। अगर आप एसिम्पटोमैटिक (लक्षणों के बिना कोरोना से ग्रस्त होना) थे या आपमें बहुत हल्के लक्षण थे, तो लक्षण नोटिस करने वाले दिन से लेकर अगले 14 दिनों तक इंतजार करना चाहिए। आदर्श रूप से, संक्रमण से उबरने के बाद शरीर में पहले से कुछ एंटीबॉडी बन चुकी होती हैं, इसके बाद आप लगभग 2 महीने तक टीकाकरण को टाल सकते हैं। दुर्भाग्य से, इस बात की कोई निश्चितता नहीं है कि प्रतिरक्षा कितने समय मतबूत बनी रहेगी। अच्छा होगा यदि आप टीकाकरण के संबंध में डॉक्टर से परामर्श लें।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 वैक्सीन : लक्ष्य और वैक्सीन के प्रकार है

संदर्भ

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