सार्स-सीओवी-2 वायरस की रोकथाम और बचाव को लेकर टीबी की बीसीजी वैक्सीन से जुड़ी एक अच्छी खबर सामने आई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक और भारतीय रिसर्च में पता चला है कि बीसीजी वैक्सीन कोविड-19 संक्रमण को फैलने से रोकने में सहायक हो सकती है। यह अध्ययन पुणे के हैफकीन रिसर्च इंस्टीट्यूट एंड बीजे मेडिकल कॉलेज के शोधकर्ताओं ने किया है। इसमें पता चला है कि बीसीजी का एक शॉट कोविड-19 के मरीजों की सांस की तकलीफ को कम कर सकता है। इतना ही नहीं, बीसीजी वैक्सीन की मदद से मध्यम स्तर के मरीजों में कोविड की गंभीरता को रोकने में भी मदद मिल सकती है। टीबी के खिलाफ बच्चों को दिए जाने वाली इस वैक्सीन के उपयोग के आकलन से जुड़ा यह संभावित रूप से पहला अध्ययन है, क्योंकि यह रिसर्च कोविड-19 के उपचार में उन परीक्षणों के विपरीत है, जिनमें संक्रमण की रोकथाम को लेकर बीसीजी की भूमिका का अध्ययन किया है।

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कैसे की गई रिसर्च?
रिपोर्ट के मुताबिक यह रिसर्च कुल 60 मरीजों पर की गई थी जिन्हें सांस लेने में तकलीफ और निमोनिया के लक्षणों के साथ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। रिसर्च में बताया गया है कि आधे रोगियों को बीसीजी वैक्सीन की खुराक दी गई थी। शोधकर्ताओं का दावा है कि इसके तीसरे या चौथे दिन इन मरीजों में ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत कम हो गई। वहीं, 7 से 15 दिनों के बीच एक्सरे और सीटी स्केन के जरिए इन मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार देखने को मिला। इसके अलावा इनमें से किसी भी रोगी की मृत्यु नहीं हुई। लेकिन सामान्य देखभाल वाले समूह के (जिन मरीजों को बीसीजी की वैक्सीन नहीं दी गई थी) दो मरीजों की मौत हो गई। चूंकि, इस अध्ययन की अभी अन्य वैज्ञानिकों द्वारा समीक्षा करना बाकी है, लिहाजा इसे किसी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं किया गया है। बल्कि इस अध्ययन से जुड़े निष्कर्ष को प्री-प्रिंट सर्वर पर पब्लिश किया गया है। इस शोध के माध्यम से अध्ययनकर्ताओं ने यह भी पाया कि वैक्सीनेशन के बाद मरीजों में कोविड एंटीबॉडी का स्तर अधिक था, जिसकी मदद से उनमें गंभीर संक्रमण का जोखिम कम हो गया। 

बीसीजी वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी - रिसर्च
शोधकर्ताओं की मानें तो बीसीजी एक सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन है, जिससे कम लागत में बेहतर उपचार मिलता है। इस वैक्सीन को कोविड-19 के मध्यम गंभीरता वाले रोगियों की देखभाल के रूप में पेश किया जा सकता है। हैफकीन रिसर्च इंस्टीट्यूट की प्रमुख शोधकर्ता डॉ. उषा पद्मनाभन का कहना है, "हमारे अध्ययन में पता चला है कि टीबी की वैक्सीन की मदद से 3-4 दिनों के भीतर ऑक्सीजन सेचुरेशन की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार हुआ। साथ ही वैक्सीनेशन वाले ग्रुप के मरीजों में निमोनिया तेजी से ठीक हो गया। इससे संकेत मिलता है कि यह फेफड़े में सुधार और प्राकृतिक प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए प्रभावी है।" हालांकि, वो कहती हैं कि इसमें कौन सा तंत्र काम करता है इसके लिए अभी आगे और अध्ययन की जरूरत होगी। डॉ. उषा के मुताबिक "बीसीजी के गैर-विशिष्ट प्रभाव जो टीबी के अलावा अन्य बीमारियों के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं, उन्हें नियमित रूप से नवजात टीकाकरण के तुरंत बाद देखा गया है।"

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रिपोर्ट के अनुसार यह रिसर्च अस्पताल में भर्ती उन मरीजों पर की गई थी, जिनका ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल 94% से कम था। साथ ही इन मरीजों में रेडियोलॉजिकली निमोनिया की पुष्टि भी हुई थी। इस दौरान चार रोगी ऐसे थे, जिन्हें बीजीसी का टीका नहीं लगाया था और इन्हें रेमडेसिविर दवा दी गई। दूसरी ओर बीसीजी वैक्सीनेशन वाले ग्रुप में शामिल एक रोगी को भी ये दवा दी गई थी। बीजे मेडिकल कॉलेज के डिप्टी डीन और सह-लेखकों में से एक डॉ. समीर जोशी का कहना है कि अस्पताल में भर्ती जिन मरीजों को बीसीजी की वैक्सीन दी गई थी, उन्हें औसतन सात दिन बाद छुट्टी दे दी गई, जबकि इसके उलट बाकी लोगों (नॉन वैक्सीनेटेड) को ठीक होने में ज्यादा दिन का वक्त लगा। हालांकि, शोधकर्ता समीर इस बात को लेकर चिंता हैं कि क्या बीसीजी वैक्सीन खुद रोगियों में इस रिकवरी को ट्रिगर करेगा। वो कहते हैं कि यह वयस्कों में किसी भी प्रतिकूल प्रतिक्रिया को ट्रिगर नहीं करता है।

इस पर अभी और शोध की जरूरत- विशेषज्ञ
पूर्व चिकित्सा शिक्षा सचिव डॉ. संजय मुखर्जी, जो कि रिसर्च के एक सह-लेखक भी हैं उनका कहना है "जिन लोगों को बचपन में बीसीजी की वैक्सीन नहीं दी गई थी, वो भी वैक्सीनेशन के बाद तेजी से ठीक हो गए। इससे पता चलता है कि बीसीजी बुजुर्गों के लिए भी सुरक्षित है।" वो कहते हैं कि बीसीजी वैक्सीन को लेकर इससे पहले किसी भी अध्ययन के तहत ऑक्सीजन सेचुरेशन में 3-4 दिनों में सुधार नहीं देखा गया है। हालांकि, कुछ डॉक्टरों ने इस रिसर्च को अभी अधूरा या अनिर्णायक बताया है। स्टेट टास्क फोर्स के सदस्य डॉ. शशांक जोशी ने कहा है "यह एक एक्सप्लोरेट्री पायलट स्टडी (शुरुआती अध्ययन) है, जिससे उन संभावनाओं का संकेत मिलता है, जिनके बल पर इसे आगे बड़े स्तर पर किया जा सकता है।"

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दूसरी ओर संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ डॉ. ओम श्रीवास्तव ने अध्ययन को मजबूत और उत्साहजनक बताया, लेकिन उन्होंने निष्कर्षों को प्रमाणित करने के लिए अन्य वैज्ञानिकों द्वारा इसकी समीक्षा करने की आवश्यकता की बात कही। वो आगे कहते हैं "जब एंटीबॉडी बनाने के लिए वैक्सीन को 2-4 सप्ताह लगते हैं, तो हमें यह समझने की जरूरत है कि वायरल लोड और साइटोकाइन मार्कर कैसे कम हो गए थे।" उन्होंने कहा कि 3, 6 और 12 महीने के अंत से जुड़े प्रभाव का अध्ययन भी होना चाहिए। गौरतलब है कि अभी हाल ही में आईसीएमआर के राष्ट्रीय क्षयरोग अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पाया था कि बीसीजी बुजुर्गों में प्राकृतिक और एडेप्टिव इम्यूनिटी को बढ़ा सकती है।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: कोरोना की रोकथाम में सहायक है बीसीजी वैक्सीन, टीके से मरीजों में सांस की तकलीफ हुई कम- रिसर्च है

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