दुनियाभर के मानसिक रोग विशेषज्ञ और शोधकर्ता डिप्रेशन को वैश्विक स्वास्थ्य संकट के रूप में देखते हैं, जो बहुत तेजी से लोगों को अपना शिकार बना रहा है, विशेषकर युवाओं को। इस समस्या के इलाज के साथ-साथ इसके कारणों का पता करने के लिए वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं। इन प्रयासों से अक्सर नई-नई जानकारियां सामने आती रहती हैं।

ऐसी ही एक जानकारी मनोविज्ञान से जुड़ी पत्रिका जर्नल ऑफ दि अमेरिका एकेडमी ऑफ चाइल्ड एंड ऐडलेसंट साइकायट्री में प्रकाशित हुई है। इसके मुताबिक, जिन लड़कियों का जन्म गर्भावस्था के खत्म होने के समय से काफी पहले होता है, यानी जिन लड़कियों का जन्म अत्यधिक प्रीमैच्योर होता है, उनमें आगे चलकर डिप्रेशन होने का खतरा ज्यादा होता है। वे बचपन से लेकर अपने पूरे युवा जीवन में इस मानसिक समस्या से पीड़ित रह सकती हैं।

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अमेरिकी अखबार दि न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, अध्ययन में शामिल वैज्ञानिकों ने फिनलैंड में जन्म और स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों के आधार पर 37 हजार 682 लोगों के हल्के, मध्यम और गंभीर अवसाद का अध्ययन किया है। डिप्रेशन के इन स्तरों की एक अन्य कंट्रोल ग्रुप के सामान्य स्वास्थ्य वाले एक लाख 48 हजार 795 लोगों से तुलना की गई है। इस विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने जाना है कि प्रीमैच्योर बर्थ का डिप्रेशन से संबंध है।

अध्ययन में 1987 से 2007 के बीच पैदा हुए बच्चों के आंकड़े शामिल किए गए थे, जिनकी विश्लेषण के समय औसत आयु 16 वर्ष थी। उनके माता-पिता की आयु, डिप्रेशन, सब्सटेंस अब्यूस, स्मोकिंग, सामाजिक-आर्थिक स्तर और अन्य फैक्टर्स से जुड़े आंकड़ों को एडजस्ट करने के बाद यह पाया गया कि लड़कियों में यंगर जेस्टेशनल एज का उनके बचपन, युवावस्था और युवा वयस्कता के दौरान डिप्रेशन से डायग्नॉस होने से स्पष्ट और मजबूत संबंध था।

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अध्ययन कहता है कि गर्भावस्था के 28वें हफ्ते के आसपास पैदा हुई बच्चियों में गर्भ काल के पूरा होने पर जन्मी लड़कियों की तुलना में डिप्रेशन से ग्रस्त होने का खतरा लगभग तीन गुना था। 28वें हफ्ते के बाद यह संबंध पूरी तरह गैर-मायने हो गया था। अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं ने कहा है कि इसमें डिप्रेशन में पाई गई लड़कियों की उम्र के पांच से 25 वर्ष के बीच सीमित होने का मतलब है कि उनकी यह समस्या मुख्य रूप से अर्ली ऑनसेट डिप्रेशन थी। इससे लड़कों में डिप्रेशन की समस्या का गलत आंकलन होने का अंदेशा है, जो सामान्यतः ज्यादा उम्र में डिप्रेशन का शिकार होते हैं।

बहरहाल, अध्ययन और इसके परिणामों को लेकर शोधकर्ता और लेखक आश्वस्त नजर आते हैं। इनमें से डॉ. आंद्रे साउरेंडर का कहना है, 'स्टडी का सैंपल काफी बड़ा है और हमने माता और पिता दोनों के मामले में कई प्रकार के परिवर्तन किए थे। डिप्रेशन होने में योगदान देने वाले कई फैक्टर्स पर विचार करने के बाद भी ये परिणाम सार्थक बने रहे।'

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