कुकिंग से जुड़ी एक तकनीक कैरमलाइजेशन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकती है। यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने अपने एक नए शोध के हवाले से बताया है कि अधिक कैरमलाइजेशन से बना खाना खाने से हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है। साथ ही, अगर किसी को पहले से डायबिटीज हो तो उसे इस बीमारी से जुड़ी कई अन्य समस्याएं हो सकती हैं। इन वैज्ञानिकों ने बताया है कि रेड और प्रोसेस्ड मीट खाने से शरीर में एक प्रोटीन कंपाउंड बढ़ता है, जिससे हृदय रोग, स्ट्रोक और डायबिटीज से जुड़ी समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है। यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता डॉ. परमल देव कहते हैं कि उनका शोध उन लोगों के खान-पान को लेकर जरूरी जानकारी देता है, जिन पर इन बीमारियों का खतरा होता है।

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अध्ययन के मुताबिक, रेड मीट को जब ग्रिलिंग, रोस्टिंग या फ्राइंग के तहत उच्च तापमान पर झुलसाया जाता है तो उसमें एडवांस ग्लाइकेशन एंड प्रॉडक्ट्स (एजीई) जैसे कंपाउंड पैदा होते हैं। डॉ. देव ने बतताया है कि इस तरह पकाया गया मीट खाने से एजीई कंपाउंड शरीर में इकट्ठा हो जाते हैं और कोशिकाओं के सामान्य संचालन में बाधा उत्पन्न करते हैं। अधिक एजीई युक्त खाना खाने से शरीर में इन कंपाउंडों की मात्रा 25 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। इससे वाहिकाओं और मांसपेशियों में कठोरता आ जाती है, इनफ्लेमेशन बढ़ती है और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस में भी बढ़ोतरी होती है। ये सभी डीजेनरेटिव डिसीज के लक्षण हैं, जिसमें कोशिकाओं में बदलाव होने लगता है।

विज्ञान व मेडिकल पत्रिका न्यूट्रिएंट्स ने इस अध्ययन की रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें बताया गया है कि शोधकर्ताओं ने दो प्रकार के आहार का परीक्षण किया था। एक में रेड मीट और प्रोसेस्ड ग्रेन्स का काफी इस्तेमाल किया गया था, जिसमें उच्च स्तर की ग्रेन्स डेयरी, नट्स और लेग्यूम (फलियां) भी डाली गई थीं। दूसरे आहार में वाइट मीट को शामिल किया गया था, जिसे स्टीमिंग, बॉइलिंग, स्ट्यूइंग और पोचिंग जैसे कुकिंग मेथड से बनाया गया था। जांच में पता चला कि रेड मीट की हाई डाइट से खून में एजीई का लेवल उल्लेखनीय ढंग से बढ़ गया था। इससे अनुमान लगा कि यह बीमारी को बढ़ाने का काम कर सकती है।

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इस बारे में यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पीटर क्लिफटन ने कहा है, 'हालांकि ऐसे सवाल अभी बने हुए हैं कि डायटरी एजीई का दीर्घकालिक रोग से क्या लिंक है, लेकिन इस अध्ययन से यह जरूर पता चलता है कि रेड मीट खाने से एजीई के लेवल में बदलाव होता है।' प्रोफेसर क्लिफटन ने साफ कहा, 'अध्ययन से मिला संदेश साफ है। अगर हम हृदय रोग के खतरे को कम करना चाहते हैं तो हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम कितना रेड मीट खाते हैं या उसे पकाने के तरीके पर विचार करना होगा। फ्राई या ग्रिल करना या तेज आंच पर पकाना बड़े शेफ्स का तरीका हो सकता है, लेकिन जो अपनी बीमारी के खतरे को कम करने चाहते हैं, उनके लिए इस तरह खाना सही नहीं होगा। अगर अपने एजीई का बढ़ा हुआ लेवल कम करना चाहते हैं तो खाने को मंदी आंच पर पकाएं। यह एक दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिए एक अच्छा ऑप्शन है।'

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