वूल्फ-हिर्स्चहॉर्न सिंड्रोम - Wolf Hirschhorn Syndrome in Hindi

Dr. Pradeep JainMD,MBBS,MD - Pediatrics

October 08, 2020

January 30, 2024

वूल्फ-हिर्स्चहॉर्न सिंड्रोम
वूल्फ-हिर्स्चहॉर्न सिंड्रोम

वूल्फ-हिर्स्चहॉर्न सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जो शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित करती है। इस विकार की प्रमुख विशेषताओं में चेहरे की असामान्य बनावट, विकास में देरी, इंट्लेक्चुअल डिसएबिलिटी (जैसे सीखने, प्रॉब्लम को सॉल्व करने या निर्णय लेने में कठिनाई) और दौरे शामिल हैं।

इस विकार से ग्रस्त लगभग हर व्यक्ति में चौड़ी व सपाट नाक और ऊंचा माथा होता है। इस संयोजन को "ग्रीक वॉरियर हेलमेट" के रूप में जाना जाता है। इस स्थिति में आंखें फैली और उभरी हुई हो सकती हैं। चेहरे से जुड़ी अन्य विशेषताओं में नाक और ऊपरी होंठ के बीच जगह कम होना, मुंह नीचे की ओर होना, छोटी ठोड़ी और कान की बनावट खराब होती है, जिसमें एक छोटा छेद होता है।

वूल्फ-हिर्स्चहॉर्न सिंड्रोम के लक्षण - Wolf-Hirschhorn Syndrome Symptoms in Hindi

वूल्फ-हिर्स्चहॉर्न शरीर के कई हिस्सों (शारीरिक और मानसिक दोनों) को प्रभावित करता है। चेहरे से जुड़े सबसे आम लक्षणों में विकास में देरी, इंट्लेक्चुअल डिसएबिलिटी और दौरे पड़ना शामिल हैं। जबकि अन्य समस्याओं में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:

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वूल्फ-हिर्स्चहॉर्न सिंड्रोम का कारण - Wolf-Hirschhorn Syndrome Causes in Hindi

डॉक्टर इसके सटीक कारण के बारे में नहीं जानते हैं, लेकिन इस विषय पर शोध जारी है। इस स्थिति में माता-पिता से बच्चों में टूटे हुए या खराब गुणसूत्र पारित नहीं होते हैं। विलोपन आमतौर पर निषेचन के बाद होता है। डॉक्टरों का मानना है कि यह तब हो सकता है जब गुणसूत्र 4 में से तीन अलग-अलग जीन अनुपस्थित होते हैं और यह सभी जीन शुरुआती विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।

वूल्फ-हिर्स्चहॉर्न के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि कौन से जीन अनुपस्थित हैं। उदाहरण के लिए, इन अनुपस्थित जीन में से ​कोई एक जीन चेहरे के विकास जबकि अन्य जीन दौरे के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।

वूल्फ-हिर्स्चहॉर्न सिंड्रोम का निदान - Wolf-Hirschhorn Syndrome in Hindi

अक्सर आनुवंशिक या दुर्लभ बीमारी का निदान करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। आमतौर पर डॉक्टर मेडिकल हिस्ट्री, बीमारी के लक्षण, शारीरिक परीक्षण और लैब टेस्ट के जरिये निदान करते हैं।

कभी-कभी डॉक्टर गर्भावस्था की पहले तिमाही के दौरान नियमित अल्ट्रासाउंड की मदद से वूल्फ-हिर्स्चहॉर्न सिंड्रोम के संकेत पहचान सकते हैं। लेकिन यदि यह पर्याप्त नहीं है, तो ऐसे में डॉक्टर को कुछ अन्य टेस्ट करने की जरूरत पड़ सकती है।

एफआईएसएच टेस्ट के माध्यम से 95% से अधिक गुणसूत्र विलोपन का पता लगाया जा सकता है। यह टेस्ट बच्चे के जन्म के बाद भी किए जाते हैं, ताकि गुणसूत्र के आंशिक विलोपन (अनुपस्थिति) की पहचान की जा सके।

यदि डॉक्टर वूल्फ-हिर्स्चहॉर्न सिंड्रोम की पुष्टि करते हैं तो वह आपके बच्चे के शरीर के सभी प्रभावित हिस्सों को अच्छे तरह से समझने के लिए कई इमेजिंग टेस्ट के लिए सुझाव दे सकते हैं। यदि आप अपने साथी के साथ मिलकर बच्चे की प्लानिंग करना चाहते हैं तो आपको भी यह टेस्ट करवाने की जरूरत है।

वूल्फ-हिर्स्चहॉर्न सिंड्रोम का इलाज - Wolf-Hirschhorn Syndrome Treatment in Hindi

वूल्फ-हिर्स्चहॉर्न सिंड्रोम का कोई सटीक इलाज नहीं है, इसलिए उपचार का लक्ष्य लक्षणों का प्रबंधन करना है :

  • फिजिकल थेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी (शारीरिक, संवेदी या संज्ञानात्मक समस्याओं में मदद करने वाली चिकित्सा)
  • दोषों को ठीक करने के लिए सर्जरी
  • सामाजिक सेवाओं के माध्यम से सहायता
  • आनुवंशिक परामर्श
  • विशेष शिक्षा
  • दौरे को नियंत्रित करना
  • दवाएं