दुनियाभर में कोविड-19 महामारी के मामले कम होने का नाम नहीं ले रहे। अब तक 7 करोड़ 38 लाख से ज्यादा लोग (16 दिसंबर 2020 के आंकड़े) इस बीमारी से संक्रमित हो चुके हैं। लेकिन अच्छी और राहत की बात ये है कि दुनिया के अधिकतर देशों में इस बीमारी से होने वाली मृत्यु दर कम ही रही है। इस बीमारी से जुड़ी एक दूसरी समस्या जो अब भी चिंता का सबब बनी हुई है वो ये है कि कोविड-19 से रिकवर होने के बाद भी मरीजों में बीमारी से जुड़ी कई जटिलताएं देखने को मिल रही हैं, फिर चाहे मरीज में बीमारी के हल्के लक्षण ही क्यों न दिखे हों। 

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मरीजों में लॉन्ग कोविड की समस्या बढ़ रही है
लॉन्ग कोविड (रिकवर होने वाले मरीजों में भी लंबे समय तक कोविड-19 के लक्षण दिखना) की अवधारणा भी तेजी से मरीजों में देखने को मिल रही है। इसका कारण ये है कि बहुत से मरीजों में लगातार 2 कोविड-19 टेस्ट रिजल्ट नेगेटिव आने के बाद भी लंबे समय तक बने रहने वाले लक्षण देखने को मिल रहे हैं। साथ ही ऐसे मरीजों में पोस्ट-कोविड जटिलताएं भी देखने को मिल रही हैं जिसकी वजह से उनके दोबारा अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु का खतरा भी बढ़ जाता है। 

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मेडिकल जर्नल जामा में प्रकाशित हुई स्टडी
मेडिकल जर्नल जेएएमए (जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन) में प्रकाशित एक नई स्टडी में यह सुझाव दिया गया है कि कोविड-19 के मरीजों की सेहत को सबसे अधिक खतरा अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर आने के 10 दिन बाद तक रहता है। यही वजह है कि रिकवरी के इन शुरुआती दिनों में मरीज की सही देखभाल करना और उनकी स्वास्थ्य की स्थिति की निगरानी करना बेहद जरूरी है।

कोविड के बाद अस्वस्थता और मृत्यु दर का जोखिम कब सबसे अधिक होता है?
इस स्टडी को अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन और वेटरन अफेयर्स ऐन आर्बर हेल्थकेयर सिस्टम पर आधारित शोधकर्ताओं ने किया। अनुसंधानकर्ताओं ने यह भी देखा कि अस्पताल में भर्ती होने के बाद मरीजों से जुड़े प्रारंभिक परिणामों पर आंकड़े बेहद सीमित थे। इसलिए शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के मरीजों के द्वारा दोबारा अस्पताल में भर्ती होने की दर, दोबारा अस्पताल में भर्ती होने का कारण और हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद मरीजों की मृत्यु की दर कितनी है इसका पता लगाना शुरू किया।

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इसके लिए अनुसंधानकर्ताओं ने 2 अलग-अलग दृष्टिकोण या पद्धतियों का इस्तेमाल किया:

पहला- उन्होंने कोविड-19 की वजह से 132 वेटरन अफेयर्स (वीए) अस्पतालों में भर्ती होने वाले बुजुर्गों और वृद्ध मरीजों के आंकड़ों को इक्ट्ठा किया। इस स्टडी में मार्च से जून 2020 के बीच अस्पताल में भर्ती हुए मरीजों और मार्च से जुलाई 2020 के बीच अस्पताल से डिस्चार्ज हुए मरीजों को शामिल किया गया था। 

दूसरा- अनुसंधानकर्ताओं ने इसी समय के दौरान नॉन-कोविड से जुड़े निमोनिया और हार्ट फेलियर के कितने बुजुर्ग अस्पताल में भर्ती हुए इसकी भी पहचान की गई। इस दौरान शोधकर्ताओं ने इन आंकड़ों पर फोकस किया- कितने दिन तक मरीज अस्पताल में भर्ती रहे, आईसीयू के इस्तेमाल की जरूरत पड़ी या नहीं, आक्रामक मेकैनिकल वेंटिलेशन पर निर्भरता और वैसोप्रेसर्स (बहुत अधिक लो ब्लड प्रेशर के इलाज में यूज होने वाली दवा) का इस्तेमाल।

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इसके बाद उन्होंने कोविड-19 के बचे हुए मरीजों में अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद 60 दिनों तक दोबारा अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु का जोखिम कितना था इसकी पहचान की। साथ ही डिस्चार्ज होने के बाद 10 दिन, 20 दिन, 20 से 40 दिन और 40 से 60 दिन के बीच दोबारा अस्पताल में भर्ती होने का जोखिम कितना अधिक था इसे भी कैलकुलेट किया गया।

दोबारा अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु के सामान्य कारण क्या हैं?
अनुसंधानकर्ताओं ने कोविड-19 की वजह से अस्पताल में भर्ती होने वाले 2 हजार 179 बुजुर्ग मरीजों के आंकड़ों को इक्ट्ठा किया जिसमें से 678 मरीजों का इलाज आईसीयू में हुआ, 279 को मेकैनिकल वेंटिलेटर का सपोर्ट दिया गया, 307 मरीजों को वैसोप्रेसर्स दिए गए, 1775 मरीज आखिरकार बीमारी से बच गए जिन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। इन बचे हुए मरीजों में से 354 मरीजों (19.9 प्रतिशत) को दोबारा अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा, 162 मरीजों (9.1 प्रतिशत) की मौत हो गई और 479 मरीज (27 प्रतिशत) ऐसे थे जिन्हें डिस्चार्ज होने के 60 दिन के अंदर या तो दोबारा अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा या फिर उनकी मृत्यु हो गई।

रीइंफेक्शन, सेप्सिस, निमोनिया है सबसे सामान्य कारण
मरीजों के दोबारा अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु का सबसे सामान्य कारण था- कोविड-19 रीइंफेक्शन, सेप्सिस, निमोनिया और हार्ट फेलियर। दोबारा अस्पताल में भर्ती होने के दौरान 22.6 प्रतिशत मरीजों का आईसीयू में इलाज हुआ, 7.1 प्रतिशत मरीजों को मेकैनिकल वेंटिलेशन की जरूरत पड़ी और 7.9 प्रतिशत को वैसोप्रेसर्स दिया गया। बुजुर्गों का एक दूसरा ग्रुप जिन्हें नॉन-कोविड की वजह से अस्पताल में भर्ती कराया गया था उनमें से 2 हजार 156 मरीजों को निमोनिया और 4 हजार 269 मरीजों को हार्ट फेलियर हुआ था। इनमें से निमोनिया वाले 97.8 प्रतिशत और हार्ट फेलियर वाले 98.3 प्रतिशत मरीजों की जान बच गई और इलाज के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया। जिन मरीजों की मृत्यु हो गई थी उन्हें छोड़कर निमोनिया वाले 1799 मरीजों और 3505 हार्ट फेलियर वाले मरीजों के सेहत के नतीजों की तुलना कोविड-19 के बचे हुए और डिस्चार्ज किए गए मरीजों से की गई।

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इन दोनों ग्रुप के बचे हुए मरीजों की तुलना करने के बाद अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कोविड-19 के बचे हुए मरीजों में 60 दिन के अंदर दोबारा अस्पताल में भर्ती होने या मृत्यु का खतरा कम था उन मरीजों की तुलना में जिन्हें निमोनिया या हार्ट फेलियर हुआ था। हालांकि अन्य मरीजों की तुलना में कोविड-19 के बचे हुए मरीजों में डिस्चार्ज होने के बाद शुरुआती 10 दिनों में दोबारा अस्पताल में भर्ती होने औऱ मृत्यु का जोखिम काफी अधिक था।

डिस्चार्ज होने के 10 दिन बाद तक क्रिटिकल केयर की जरूरत
वैसे तो डिस्चार्ज होने के बाद अगले 60 दिनों तक कोविड-19 के मरीजों का रोग निदान अन्य जानलेवा कारणों की वजह से अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की तुलना में बेहतर नजर आता है, लेकिन डिस्चार्ज होने के बाद शुरुआती 10 दिनों में दोबारा अस्पताल में भर्ती होने औऱ मृत्यु की दर काफी अधिक नजर आती है। ये नतीजे यह सुझाव देते हैं शुरुआती 10 दिनों में मरीज के लक्षणों में क्लिनिकल गिरावट का जोखिम काफी बढ़ जाता है। ऐसे में अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि भले ही उनकी इस स्टडी की कुछ सीमाएं या बाधाएं हों, बावजूद इसके अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद कोविड-19 के मरीजों के लिए शुरुआती 10 दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।

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लिहाजा बेहद जरूरी है कि हेल्थ केयर सिस्टम और दवाइयां, वैक्सीन आदि के लिए हो रहे क्लिनिकल ट्रायल सिर्फ मृत्यु दर या हॉस्पिटलाइजेशन पर ही फोकस न करें बल्कि डिस्चार्ज होने के बाद वाले समय पर भी ध्यान दें। तभी इस वैश्विक महामारी से लड़ने में मदद मिल पाएगी।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: अस्पताल से घर आने के बाद पहले 10 दिन अहम, दोबारा भर्ती होने और मृत्यु का खतरा अधिक- स्टडी है

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