अमेरिका में पुरुषों को पहली बार हार्ट अटैक आने की औसत उम्र 65 साल है और इसी वजह से कोरोनरी आर्टरी डिजीज को सीनियर सिटिजन की बीमारी के रूप में भी देखा जाता है। उम्र बढ़ने के साथ शरीर में जो बदलाव आते हैं खासकर धमनियों की दीवार में जो फैट जमने लगता है, वह भी व्यक्ति के हृदय रोग के खतरे को बढ़ाता है। हालांकि इन दिनों 35-40 साल के युवाओं में भी हार्ट अटैक और हृदय रोग की समस्याएं बहुत ज्यादा दिख रही हैं। बावजूद इसके ज्यादातर लोगों का यही मानना है कि हृदय रोग की समस्या बुजुर्गों में ज्यादा नजर आती है। तो आखिर इसका कारण क्या है? बुजुर्गों को हृदय रोग का खतरा अधिक क्यों होता है?

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Sesn2 प्रोटीन हृदय को रखता है सुरक्षित 
इस सवाल का जवाब खोजा है अमेरिका के साउथ फ्लोरिडा डिपार्टमेंट ऑफ सर्जरी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने। इन लोगों ने एक महत्वपूर्ण खोज की है जिसमें उस कारण के बारे में स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि आखिर उम्र बढ़ने पर हृदय रोग का खतरा क्यों बढ़ने लगता है। दरअसल, इंसान का शरीर खासतौर पर हमारा हृदय, माइटोकॉन्ड्रिया पर निर्भर रहता है। माइटोकॉन्ड्रिया, कोशिका का वह हिस्सा है जिस पर ऊर्जा का निर्माण करने की जिम्मेदारी होती है ताकि शरीर के सभी अंगों का कार्य सही तरीके से हो सके। Sesn2 नाम का प्रोटीन माइटोकॉन्ड्रिया के अंदर स्थित होता है और हृदय को तनाव से सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाता है।

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उम्र बढ़ने पर Sesn2 प्रोटीन में कमी आने लगती है
इस स्टडी के ऑथर और सर्जरी एंड मॉलिक्यूलर फार्माकोलॉजी और फिजियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ जी ली और उनके साथियों ने पाया कि उम्र बढ़ने के साथ इस Sesn2 प्रोटीन के लेवल में कमी आने लगती है। ऐसा होने पर हृदय कमजोर होने लगता है और उसकी कार्य क्षमता में भी कमी आने लगती है। डॉ ली के ग्रुप द्वारा की गई इस स्टडी को रेडॉक्स बायोलॉजी नाम के जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस स्टडी में बताया गया है कि Sesn2 का अपर्याप्त स्तर ही वह कारण है जिससे बुजुर्गों को हार्ट अटैक और हृदय से संबंधित अन्य बीमारियों और जटिलताओं का अधिक खतरा होता है। इससे यह बात भी पता चलती है कि अगर इस प्रोटीन को स्थिर या मजबूत कर दिया जाए तो हृदय को स्वस्थ बनाए रखने में मदद मिल सकती है।

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स्टेंट और दवाइयों का साइड इफेक्ट भी होता है
जिन लोगों को कार्डियक अरेस्ट होता है उनकी रक्त वाहिका में सामान्यतः स्टेंट डाला जाता है ताकि रक्त वाहिका में होने वाली रुकावट को रोका जा सके या फिर उन्हें ऐसी दवाइयां प्रिस्क्राइब की जाती हैं जो खून का थक्का बनने से रोकने के लिए बनी होती हैं। इस तरह की दवाइयां या स्टेंट आदि भले ही कुछ समय के लिए मरीज को आराम दे लेकिन इलाज के इन तरीकों की वजह से आगे चलकर हृदय को और चोट लग सकती है और नुकसान भी हो सकता है। इन संभावित साइड इफेक्ट्स को रोकने के लिए फिलहाल इलाज का कोई तरीका मौजूद नहीं है। इस दौरान डॉ ली और उनकी टीम जिसमें यूनिवर्सिटी ऑफ लुईसविले भी शामिल ने पाया कि अगर Sesn2 प्रोटीन पर ध्यान केंद्रित किया जाए तो इससे माइटोकॉन्ड्रिया और बेहतर तरीके से कार्य करने लगता है और इस तरह की जटिलताएं और साइड इफेक्ट्स (जिनका जिक्र ऊपर किया गया है) भी दूर हो सकते हैं।   

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Sesn2 के लेवल को मेनटेन करने से उम्र से संबंधित हृदय रोग का खतरा कम
डॉ ली कहते हैं, उम्र से संबंधित Sesn2 माइटोकॉन्ड्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कार्डियक Sesn2 के स्तर को बनाए रखने से हृदय ऊर्जावान रहता है और उम्र से संबंधित हृदय रोग के खिलाफ भी सुरक्षा मिलती है। Sesn2 का महत्व उजागर होने से चिकित्सा से जुड़े इलाज के नए तरीके विकसित करने में मदद मिलेगी। ली कहते हैं कि इलाज का तरीका संभवतः परिचित ही होगा। बढ़ती उम्र में हृदय की मजबूती के लिए कार्डियक Sesn2 को मेनटेन करना जरूरी है और इसके लिए जीन थेरेपी या औषधीय दृष्टिकोण पर विचार किया जा सकता है।

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