आयरलैंड स्थित ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी नई जीन थेरेपी विकसित की है, जिससे आंखों की बीमारी का इलाज किया जा सकता है। यह बीमारी है डॉमिनेंट ऑप्टिक अट्रोफी (डीओए), जो मरीज के देखने की क्षमता खोने की वजह बन सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि उनके द्वारा विकसित नई जीन थेरेपी इस वजह को दूर करने का एक विकल्प हो सकती है, जिसके चलते दुनियाभर में हजारों लोगों की देखने की क्षमता प्रभावित हुई है। बता दें कि इस थेरेपी से जुड़े अध्ययन को चर्चित मेडिकल पत्रिका फ्रंटियर्स इन न्यूरोसाइंस ने प्रकाशित किया है।
डॉमिनेंट ऑप्टिस अट्रोफी को ऑप्टिक नर्व्ज (विजुअल इन्फॉर्मेशन को रेटिना से दिमाग में पहुंचाने वाली नसें) को कमजोर करने वाली कंडीशन के रूप में जाना जाता है। यह बीमारी आमतौर पर मरीज की वयस्क आयु वाले सालों में अपने लक्षण दिखाती है। इसमें सामान्य रूप से नजर कमजोर होना या कुछ कलर विजन डिफेक्ट (रंग नहीं दिखना) जैसे लक्षण शामिल हैं। हालांकि इनका बढ़ना समय के साथ बीमारी को गंभीर बना सकता है, जिसके चलते कुछ मरीज पूरी तरह अंधे भी हो सकते हैं। फिलहाल डीओए की रोकथाम का कोई उपाय नहीं है.
जानकार बताते हैं कि ओपीए1 नाम का एक वंशाणु एक विशेष प्रोटीन बनाने का निर्देश शरीर को देता है। यह प्रोटीन पूरे शरीर की कोशिकाओं और ऊतकों में पाया जाता है जोकि माइटोकॉन्ड्रिया (झिल्ली से घिरा एक सेल ऑर्गेनल) के लिए बुनियादी रूप से जरूरी है। कोशिकाओं में ये ऊर्जा निर्माता ऑर्गेनल एनर्जी पैदा करने का काम करते हैं। ओपीए1 प्रोटीन के बिना माइटोकॉन्ड्रिया सब-ऑप्टिमल हो जाता है और स्वस्थ कोशिकाओं में उसका अच्छे से इंटरकनेक्टिड नेटवर्क काफी ज्यादा प्रभावित होता है। जो लोग डीओए से ग्रस्त होते हैं, उनमें ओपीए1 में हुए म्यूटेशन और ठीक से काम नहीं कर रहे माइटोकॉन्ड्रिया इस डिसऑर्डर के बढ़ने के लिए प्रमुख तौर पर जिम्मेदार होते हैं।
इस समस्या के समाधान के लिए ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन के स्कूल ऑफ जेनेटिक्स एंड माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर और वैज्ञानिक डॉ. डैनियल मैलनी ने अपनी टीम के साथ मिलकर नई जीन थेरेपी विकसित की है, जिसने चूहों को सफलतापूर्वक एक केमिकल से सुरक्षा देने का काम किया है। यह केमिकल माइटोकॉन्ड्रिया को टार्गेट करने का काम करता है, जिसके चलते यह ऑर्गेनल ठीक से काम करना बंद कर देता है। शोधकर्ताओं को पता चला है कि उनकी जीन थेरेपी से उन मानव कोशिकाओं के माइटोकॉन्ड्रियल फंक्शन और परफॉर्मेंस में सुधार हुआ है, जिनके ओपीए1 जीन में म्यूटेशन होते हैं। इससे डीओए से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए नई उम्मीद पैदा हुई है।
शोधकर्ताओं ने यह काम कैसे किया, इस पर बात करते हुए डॉ. डैनियल ने कहा, 'हमने एक विशेष लैब तकनीक का इस्तेमाल किया, जिसकी मदद से वैज्ञानिक कोशिकाओं के लिए एक विशिष्ट जीन प्राप्त करने में कामयाब रहे। इससे हमें उन कोशिकाओं के माइटोकॉन्ड्रिया के संचालन को प्रत्यक्ष रूप से ऑल्टर करने का मौका मिला, जिनका इलाज किया जा रहा था। हम उनकी ऊर्जा पैदा करने की क्षमता को बढ़ा पाए, जिससे उन्हें सेल डैमेज से बचने में मदद मिली। हम उत्साह के साथ कहना चाहेंगे कि हमारे परिणामों से पता चलता है कि इस ओपीए1 आधारित जीन थेरेपी से डीओए जैसी बीमारियों के इलाज में लाभ मिल सकता है, जो ओपीए1 म्यूटेशंस के कारण पैदा होती हैं।'