वैज्ञानिकों ने बुजुर्गों और युवा वयस्कों में जोड़ों की अकड़न के कारणों में अंतर होने का दावा किया है। जापान के शिबोरा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एसआईटी) के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि नसों के अकड़ने से बुजुर्गों के टखने (एंकल) का लचीलापन (फ्लेक्सिबिलिटी) प्रभावित होता है, न कि युवा वयस्कों का। यह तो सभी जानते हैं कि उम्र के साथ शरीर के जोड़ों की फ्लेक्सिबिलिटी कम होती जाती है, जिससे शरीर में संतुलन से संबंधित समस्याएं पैदा होती हैं। परिणामस्वरूप, सामान्य जीवन से संबंधित गुणवत्ता कम हो जाती है। हालांकि कभी-कभी बार युवा आयु में भी जोड़ों की अकड़न की समस्या देखने को मिलती है। लेकिन क्या इसका कारण बुजुर्गों में दिखने वाली इसी समस्या से अलग होता है?

एसआईटी के शोधकर्ताओं की मानें तो युवाओं के टखने की मूवमेंट (या रेंज ऑफ मोशन- आरओएम) में होने वाली समस्या नसों की नहीं, बल्कि मांसपेशी की अकड़न से जुड़ी होती है। वहीं, बुजुर्गों में इस समस्या की वजह नर्व स्टिफनेस पाई गई है। दूसरे शब्दों में कहें तो उम्र के साथ जॉइंट फ्लेक्सिबिलिटी के लिए नॉन-मसल टिशू ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

मानव जीवनकाल में युवावस्था में किसी व्यक्ति की शारीरिक स्थिति उम्र के 20वें दशक में कुछ और तथा 50वें दशक में कुछ और होती है। ज्यादा उम्र या बुढ़ापे में लोग खुद को ज्यादा शारीरिक तकलीफ में डाल सकते हैं या उसमें आ सकते हैं, क्योंकि तब तक उनके जॉइंट्स युवावस्था की अपेक्षा कम लचीले रह जाते हैं। ऐसे में उन फैक्टर्स को जानना जरूरी हो जाता है, जिनके चलते हमारे जॉइंट की फ्लेक्सिबिलिटी या रेंज ऑफ मोशन प्रभावित होती है। इस मामले में ताजा अध्ययन कहता है कि युवाओं में आरओएम का संबंध उनके स्केलेटल मसल स्टिफनेस से जुड़ा होता है। लेकिन मसल उम्र के साथ-साथ कम होता जाता है। ज्यादा उम्र या वृद्धावस्था में मसल के अकड़ने की आशंका कम होती है। इस तथ्य के आधार पर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि मांसपेशी की अकड़न बूढ़ों में आरओएम का उतना बड़ा कारण नहीं है, जितना की युवा लोगों में। तो फिर बुजुर्गों में यह कंडीशन किस वजह से पैदा होती है?

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इस सवाल का जवाब जानने के लिए जापान स्थित वैज्ञानिक संस्थान ने 20 साल के आसपास और 70 साल के आसपास की उम्र के लोगों में एंकल आरओएम का विश्लेषण किया। उन्होंने इन लोगों को सबसे पहले नीचे लेटने को कहा। फिर उन्हें अपने टखने को तब तक रोटेट करने के लिए कहा, जब तक कि उन्हें दर्द महसूस न होने। यानी जिस एंगल रोटेशन पर प्रतिभागी बिना दर्द महसूस किए टखने चला रहे थे, वह उसका रेंज ऑफ मोशन है। वैज्ञानिकों ने प्रतिभागियों की टिशू स्टिफनेस का भी पता लगाया। इसके लिए 'शियर वेव स्पीड नाम' के वेरिएबल का इस्तेमाल किया गया, जिसे अल्ट्रासाउंड की मदद से मांपा जाता है। इसमें प्रतिभागियों के काफ मसल्स में भी स्टिफनेस होने का पता चला। परिणामों के आधार पर वैज्ञानिकों ने तीन बड़े अनुमान लगाए। 

  • युवाओं में एंकल आरओएम का सहसंबंध संभवतः मसल स्टिफनेस से है, बुजुर्गों में यह समस्या अन्य कारण से होती है
  • युवा और बुजुर्ग दोनों में नर्व स्टिफनेस और फेशिया स्टिफनेस आरओएम से सहसंबंध है
  • दोनों ही आयु में टिशू स्टिफनेस का लेवल अलग-अलग हो सकता है

अध्ययन से जुड़े प्रयोगों के परिणामों से पता चला है कि युवा प्रतिभागियों के टखने में जैसे-जैसे मसल स्टिफनेस कम होती गई, वैसे-वैसे उनके आरओएम में सुधार होने लगा। बुजुर्ग प्रतिभागियों में यह कोरिलेशन देखने को नहीं मिला। वहीं, आरओएम से फेशिया स्टिफनेस का सहसंबंध किसी भी आयु वर्ग में नहीं पाया गया। कुल-मिलाकर यह निष्कर्ष निकला कि नॉन-मसल्स टिशूज, विशेषकर नर्व, उम्र के साथ लोगों की जॉइंट फ्लेक्सिबिलिटी के कम होने में अलग-अलग मात्रा में जिम्मेदार होते हैं।

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अध्ययन के शोधकर्ताओं का कहना है कि वे इसके परिणामों पर खुली चर्चा के लिए तैयार हैं। उनकी मानें तो मौजूदा मेडिकल केयर युवा और स्वस्थ आबादी के लिए पक्षपाती हो सकता है और मांसपेशी के लचीलेपन में सुधार करने के लिए अपनाई जाने वाली मौजूदा एक्सरसाइज और थेरेपी बुजुर्ग लोगों के लिए युवाओं जितनी प्रभावी नहीं होंगी। ऐसे में नया अध्ययन उनके लिए नए फ्लेक्सिबिलिटी ट्रेनिंग मेथड विकसित करने की जरूरत पर बात करता है।

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