कोविड-19 महामारी के कारण देशभर के अस्पतालों में ऑक्सीजन की मांग बढ़ी है। यही वजह है कि कई जगह ऑक्सीजन की कमी महसूस की जा रही है। ऐसे में सवाल ऑक्सीजन मैनेजमेंट का आता है। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने ऑक्सीजन सपोर्ट पर निर्भर रोगियों के क्लीनिक मैनेजमेंट और ऑक्सीजन इंवेंटरी से जुड़े तीन प्रमुख "समस्या क्षेत्रों" की पहचान की है। इस समस्या से जुड़े यह वही तीन क्षेत्र हैं जिनके परिणामस्वरूप कोविड-19 महामारी के इस दौर में ऑक्सीजन की कमी महसूस की जा रही है। विशेष रूप से उन बड़े राज्यों में जहां कोरोना वायरस के मामले सबसे ज्यादा हैं।।

ऑक्सीजन सपोर्ट वाले एक प्रतिशत मरीज बढ़े- अधिकारी
दरअसल पिछले सप्ताह केंद्र सरकार ने ऑक्सीजन की उपलब्धता के बारे में राज्यों के साथ कई बैठकें की थी। एक वरिष्ठ केंद्रीय अधिकारी जो कि एमपावर्ड कमेटी के सदस्य भी हैं उन्होंने बाकी राज्यों के अधिकारियों के साथ बैठक की जिसमें यह बात सामने आयी कि पिछले 45 दिनों में ऑक्सीजन सपोर्ट वाले रोगियों की संख्या में लगभग 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अधिकारियों का कहना है कि इसी समय, इन्वेंट्री प्रबंधन में हुई विसंगति के कारण ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी आई थी। 

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एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक “45 दिन पहले, लगभग 5.8 प्रतिशत सक्रिय मामलों में ऑक्सीजन सपोर्ट की आवश्यकता थी जबकि यह संख्या अब बढ़कर लगभग 6.5 फीसदी हो गई है। यह बहुत महत्वपूर्ण वृद्धि नहीं है लेकिन एक बड़े आधार पर इससे फर्क पड़ता है। हालांकि, 6.5 प्रतिशत के साथ भी सरकार के पास पर्याप्त ऑक्सीजन मुहैया कराने की क्षमता है।” अधिकारियों ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति में "समस्या क्षेत्र" की पहली पहचान अस्पतालों के स्तर पर "इन्वेंट्री के कुशल प्रबंधन में होने वाली कमी" है। अफसरों का कहना है कि इसके लिए राज्यों को संबोधित कर निर्देश भी दिए गए हैं।

क्लीनिकल ​​मैनेजमेंट प्रोटोकॉल का पालन जरूरी
अफसरों का मानना है कि इसके लिए अस्पतालों को हल्के लक्षण वाले मरीजों की संख्या का अनुमान लगाना होगा। इन हल्के मामलों में से भी उन्हें यह पता होना चाहिए कि कितने मरीजों को ऑक्सीजन की आवश्यकता है। वो इसलिए क्योंकि क्लीनिकल मैनेजमेंट से यह पता चलता है कि हल्के लक्षण वाले रोगी ऑक्सीजन के स्तर को सुनिश्चित करने के लिए अधोमुख की स्थिति (अपनी छाती पर फ्लैट) में सोते हैं।

वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने राज्यों को अस्पतालों में मध्यम लक्षण वाले रोगियों का भी अनुमान लगाने को कहा है। साथ ही इस श्रेणी में आने वाले ऐसे कितने मरीज हैं जिन्हें प्रति मिनट 10-11 लीटर से अधिक ऑक्सीजन की जरूरत है उनका भी पता लगाया जाए। क्लीनिकल ​​मैनेजमेंट प्रोटोकॉल यह सुझाव देता है कि मध्यम लक्षण वाले मामलों के लिए प्रति मिनट 11 लीटर से अधिक ऑक्सीजन खर्च नहीं होना चाहिए। कई राज्य ऐसा नहीं कर रहे थे तो ऐसे में हमें इन पहलुओं पर बारीकी से उनका ध्यान आकर्षित करवाना पड़ा।

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दूसरा कारण यह था कि जिन राज्यों में लगातार दो-तीन दिनों तक कोरोना वायरस से जुड़े बहुत अधिक मरीजों की पुष्टि हुई, इस स्थिति में उन राज्यों ने दूसरे राज्यों में ऑक्सीजन की अपनी आपूर्ति रोक दी। इससे भी ऑक्सीजन की कमी महसूस की गई।

सूत्रों के मुताबिक मौजूदा समय में दो तरह के ऑक्सीजन आपूर्ति समझौते हैं। एक जो राज्य और बड़े अस्पतालों द्वारा एक निर्माता कंपनी के साथ समझौता होता है। दूसरा जहां बॉटलर्स (सिलेंडर के जरिए ऑक्सीजन सप्लाई करना) के साथ समझौता है। इस दौरान तरल ऑक्सीजन टैंकर बॉटलर्स को ऑक्सीजन देते हैं, जो बाद में इसे ऑक्सीजन सिलेंडर के जरिए वितरित करते हैं। घबराहट की इस प्रतिक्रिया के दौरान, ये ऑक्सीजन एक राज्य से दूसरे में वितरित नहीं हो रहे थे। लेकिन हमने अब इसे बंद कर दिया है। अडवाइजरी के मुताबिक यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है और कोई भी राज्य इस प्रक्रिया पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता।”

किस मरीज को कितनी ऑक्सीजन की आवश्यकता ?
तीसरा मुद्दा चिंता का विषय है क्योंकि यहां सवाल आता है कि किस मरीज को कितने समय तक कितनी ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। ऑक्सीजन के क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल के अनुसार, जैसी ही किसी मरीज का ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल (ऑक्सीजन का संतृप्ति स्तर) 95 प्रतिशत तक पहुंच जाता है, उन्हें ऑक्सीजन से हटा दिया जाना चाहिए। लेकिन देखा गया है कि इलाज में जुटे डॉक्टर मरीज का सैचुरेशन लेवल 100 प्रतिशत करने की कोशिश कर रहे हैं। अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी होने का यह भी एक कारण है।

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कोविड महामारी पर होने वाली वीकली ब्रीफिंग (साप्ताहिक वार्ता) के दौरान  स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा कि ऑक्सीजन की आपूर्ति के मुद्दे पर पांच अहम निर्णय लिए गए थे। “सबसे पहला यह है कि राज्य के अंदर और राज्यों के बाहर ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर कोई रोक नहीं होगी। दूसरा, ऑक्सीजन टैंकरों को दिन के समय में भी शहर की सीमा में स्वतंत्र रूप से आने-जाने की अनुमति होगी। तीसरा, स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक अंतर-मंत्रालय नियंत्रण कक्ष स्थापित किया है, जहां राज्य वास्तविक समय के आधार पर अपनी समस्याओं के बारे में बता सकते हैं। इस तरह जिलों की निगरानी के लिए राज्यों को अपने स्तर पर नियंत्रण कक्ष स्थापित करने के लिए भी कहा गया है।

चौथा अहम फैसला ऑक्सीजन के तर्कसंगत सूक्ष्म-स्तरीय प्रबंधन उपयोग के बारे में है। वहीं पांचवा फैसला ये है कि, राज्यों को होर्डिंग और ओवरचार्जिंग पर नजर रखने के लिए निर्देशित किया गया है, ताकि ऑक्सीजन की आपूर्ति में होने वाली बाधा पर कानूनी कार्रवाई की जा सके।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 महामारी के बीच कुछ अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई हो रही प्रभावित, केंद्र सरकार ने की समस्या से जुड़े तीन प्रमुख कारणों की पहचान है

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