कोरोना वायरस के चलते पैदा हुए स्वास्थ्य संकट के बीच भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) का एक शोध सामने आया है। इसमें बताया गया है कि पिछले एक महीने में तीव्र श्वसन रोग या एसएआरआई के मरीजों में कोविड-19 बीमारी बढ़ी है। उसके मुताबिक, पिछले एक महीने में एसएआरआई के मरीजों से जुड़े कोविड-19 के जितने सैंपल इकट्ठे किए गए, उनमें पॉजिटिव पाए गए मरीजों का प्रतिशत बढ़ा है।

आईसीएमआर के शोध के आधार पर सामने आई जानकारी के मुताबिक, 15 फरवरी से दो अप्रैल के बीच कोविड-19 की टेस्टिंग के लिए 5,911 एसएआरआई मरीजों के सैंपल लिए गए। देश के 20 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 52 जिले से लिए इन सैंपलों में से 104 (1.8 प्रतिशत) पॉजिटिव पाए गए। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, 15 राज्यों और 36 जिलों से संबंधित इन 104 मामलों में से 40 का किसी भी प्रकार की विदेशी यात्रा से कोई संबंध नहीं था और ना ही ये मरीज विदेश से लौटे किसी संदिग्ध के संपर्क में आए थे। इस आधार पर शोध में कहा गया है कि कोविड-19 को रोकने के प्रयासों के तहत इन जिलों को प्राथमिकता देने की जरूरत है।

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बदली रणनीति के चलते मिले अलग परिणाम
शोध के मुताबिक, 15 मार्च से 21 मार्च के बीच 106 रैंडम (अलग-अलग जगहों से लिए गए) सैंपलों में से दो (यानी 1.9 प्रतिशत) टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए। लेकिन 20 मार्च को सैंपल लेने की रणनीति बदली और 22 मार्च से 28 मार्च के बीच सभी एसएआरआई मरीजों के सैंपल लिए गए। रिपोर्टों के मुताबिक, 2,069 सैंपलों में से 54 (2.6 प्रतिशत) पॉजिटिव पाए गए। इसके बाद शोध कहता है, 'कोविड-19 को रोकने के प्रयासों के तहत उन जिलों पर ध्यान देने की जरूरत है, जहां से एसएआरआई मरीजों के कोविड-19 टेस्ट पॉजिटिव आ रहे हैं।'

शोध से जुड़ी रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि केवल दो मरीज ऐसे थे जो विदेश से लौटे किसी व्यक्ति के संपर्क में आए थे और एक मरीज का विदेशी यात्रा का इतिहास था। वहीं, 59 मामले ऐसे थे जिनका कोई डेटा उपलब्ध नहीं था। ज्यादातर मामले या तो पुरुषों से जुड़े थे या 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों से। आईसीएमआर के अधिकारियों ने बताया कि रैंडम सर्विलेंस के जरिये यह सुनिश्चिति किया जा सकता है कि भारत में कोरोना वायरस का संकट कम्युनिटी ट्रांसमिशन की स्टेज में है या नहीं।

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आईसीएमआर प्लाज्मा थेरेपी पर कर रहा काम 
देश में कोरोना वायरस के बढ़ते गंभीर मामलों को देखते हुए आईसीएमआर कोविड-19 के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी के उपयोग से जुड़ा प्रोटोकोल तैयार कर रहा है। खबरों के मुताबिक, इस प्रक्रिया को कॉन्वलेसंट प्लाज्मा थेरेपी भी कहा जाता है। इसमें उन मरीजों के खून के सैंपल लिया जाएंगे, जो कोविड-19 से उबर चुके हैं और उनका शरीर कोरोना वायरस के खिलाफ रोग-प्रतिकारक यानी एंटीबॉडीज विकसित कर चुका है। प्लाज्मा थेरेपी के तहत इन एंटीबॉडीज को उन मरीजों के शरीर में डाला जाएगा, जिनका शरीर कोविड-19 से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज नहीं बना पा रहा है या उसमें मौजूद रोग-प्रतिकारक इस वायरस से लड़ने में सक्षम नहीं हैं। आईसीएमआर ने कुछ शोधों के आधार पर उम्मीद जताई है कि ठीक हुए मरीजों के एंटीबॉडीज दूसरे रोगियों की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी) को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। हालांकि, संस्थान से जुड़े अधिकारियों ने साफ किया है कि ये थेरेपी केवल गंभीर मरीजों के क्लिनिकल ट्रायल के लिए इस्तेमाल की जाएगी। उसने कहा कि प्रोटोकोल को अंतिम रूप देने के बाद ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से अप्रूवल की जरूरत होगी।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें गंभीर तीव्र श्वसन रोग के मरीजों में कोविड-19 बीमारी की दर बढ़ी: आईसीएमआर है

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