भारत समेत दुनिया के कई मेडिकल विशेषज्ञ चिकित्सा के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) या कृत्रिम बुद्धि का इस्तेमाल बढ़ाने पर जोर देने की बात कर रहे हैं। इस सिलसिले में कई लेख और शोध प्रकाशित हो चुके हैं। अब इस विषय से जुड़े परिणाम भी सामने आने लगे हैं, जो इस बहस को और आगे ले जा सकते हैं। दरअसल, हाल में सामने आए एक शोध में दिल के मरीजों के शरीर में रक्त प्रवाह की जांच के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया गया था। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, शोध में एआई के इस्तेमाल से जो परिणाम आए, उनके आधार पर डॉक्टर मरीजों में बीमारी के चलते मृत्यु, हार्ट अटैक और स्ट्रोक की संभावना का बेहतर अनुमान लगा पाए।

इस शोध को ब्रिटेन और अमेरिका के विज्ञान तथा मेडिकल क्षेत्र से जुड़े दो बड़े संस्थानों यूसीएल यूनिवर्सिटी और 'बार्ट्स हेल्थ एनएचएस ट्रस्ट' के शोधकर्ताओं ने अंजाम दिया है। खबरों की मानें तो जिस तकनीक के जरिये उन्होंने परिणाम हासिल किए, उसे डॉक्टर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे उन उपचारों में काफी मदद मिल सकती है जिनके जरिये मरीज के शरीर के रक्त प्रवाह में सुधार लाया जा सकता है।

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जानकारों का कहना है कि हृदय के मरीजों में रक्त प्रवाह का आंकलन करने की तकनीकें उपलब्ध हैं। इनमें कार्डियोवस्क्यूलर मैग्नेटिक रेजोनेंस (सीएमआर) इमेजिंग तकनीक भी शामिल है। लेकिन इन तकनीकों से जो स्कैन तस्वीरें निकलती हैं, उन्हें देख कर यह बता पाना मुश्किल रहा है कि किसी व्यक्ति में दिल की बीमारी के लक्षण कितने गंभीर हैं या उनका इलाज क्या होना चाहिए। लेकिन एआई के इस्तेमाल से यह समस्या हल हो सकती है।

कैसे किया गया रिसर्च
ब्रिटिश हर्ट फाउंडेशन से आर्थिक सहायता प्राप्त यह शोध 'सर्कुलेशन' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने नियमित रूप से दो अस्पतालों के 1,000 से ज्यादा मरीजों के सीएमआर स्कैन लिए। इसके बाद एआई तकनीक की मदद से इन स्कैन तस्वीरों का आंकलन किया गया। पत्रिका की मानें तो एआई का इस्तेमाल कर शोधकर्ता यह सुनिश्चित कर पाए कि मरीजों के हृदय की मांसपेशी का रक्त प्रवाह कैसा है और उसमें सुधार के लिए मेडिकल टीमों को मरीजों का किस तरह का इलाज करने की जरूरत है।

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वहीं, इलाज के बाद जब हरेक मरीज के स्वास्थ्य की तुलना एआई के परिणामों से की गई तो पता चला कि जिन मरीजों का रक्त प्रवाह कम था, उनमें मृत्यु, हार्ट अटैक, हार्ट फेलियर और स्ट्रोक की संभावना काफी ज्यादा थी। इस तरह एआई तकनीक, पारंपरिक तरीकों की अपेक्षा डॉक्टरों को यह बताने में ज्यादा सफल रही कि कौन से मरीजों में मृत्यु या दिल से जुड़ी किसी गंभीर बीमारी होने की संभावना है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
यूसीएल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर जेम्स मून एआई तकनीक पर बात करते हुए कहते हैं, 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर लैब से निकल कर स्वास्थ्य क्षेत्र की असल दुनिया में आ गई है। वह ऐसे काम डॉक्टरों से बेहतर कर रही है, जिन्हें वे अकेले उतना अच्छा नहीं कर सकते। हमने पहले भी रक्त प्रवाह को जांचने की कोशिश की है, लेकिन यह धीमा और समय लेने वाली प्रक्रिया होती थी। इससे डॉक्टर भी मरीजों को समय पर सही जगह उपचार नहीं दे पाते थे।'

वहीं, एक और विशेषज्ञ तथा यूनिवर्सिटी के डॉक्टर क्रिस्टोफर नॉट ने बताया, 'एआई की विश्वसनीयता और अनुमान लगाने की क्षमता प्रभावशाली है। इसे किसी मरीज की नियमित दिनचर्या के साथ लागू करना भी आसान है। मरीजों का स्कैनिंग के दौरान ही (रक्त प्रवाह का) आंकलन किया गया और परिणाम भी तत्काल डॉक्टरों को दे दिए गए। चूंकि कम रक्त प्रवाह का इलाज है, इसलिए इस तरह के बेहतर अनुमानों से मरीज को बेहतर उपचार मिलेगा। साथ ही, हमें भी हृदय की गतिविधियों के बारे में और जानने को मिलेगा।'

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रिपोर्टों के मुताबिक, तस्वीरों (या स्कैनिंग इमेज) का विश्लेषण करने की इस स्वचालित एआई तकनीक को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के सदस्य डॉक्टर पीटर केलमन ने तैयार किया है। वे शोध और उसके परिणामों पर बात करते हुए कहते हैं, 'यह अध्ययन बताता है कि इमेजिंग टेक्नॉलजी (विशेष उपकरण व प्रणाली से डुप्लिकेट तस्वीरें निकालना) में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कितनी कारगर साबित हो सकती है। इससे दिल की बीमारी पहले से बेहतर तरीके से पकड़ में आ सकती है, जिससे डॉक्टर ज्यादा अच्छे से जान पाएंगे कि मरीज को आखिर किस तरह के इलाज की जरूरत है। हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में इस तकनीक से जिंदगियां बचाई जा सकेंगी।'

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