फाइफर सिंड्रोम - Pfeiffer Syndrome in Hindi

Dr. Nadheer K M (AIIMS)MBBS

November 16, 2020

November 16, 2020

फाइफर सिंड्रोम
फाइफर सिंड्रोम

फाइफर सिंड्रोम क्या होता है?

फाइफर सिंड्रोम तब होता है जब बच्चे की खोपड़ी, हाथ और पैर की हड्डियां गर्भ में एक साथ जुड़ या मिल जाती हैं। इसकी वजह से शारीरिक, मानसिक और आंतरिक लक्षण विकसित हो सकते हैं। हड्डियों का आपस में मिलना या जुड़ना को मेडिकल भाषा में बोन फ्यूज या बोन फ्यूजन कहते हैं।

शुरुआती फ्यूजन खोपड़ी को सामान्य रूप से बढ़ने से रोकता है और सिर व चेहरे के आकार को प्रभावित करता है। यह स्थिति अत्यंत दुर्लभ है। प्रति 1,00,000 बच्चों में से किसी 1 को होती है। ज्यादातर मामलों में इस स्थिति का इलाज किया जा सकता है।

फाइफर सिंड्रोम का प्रकार

फाइफर सिंड्रोम तीन प्रकार का होता है, जिनमें शामिल हैं - टाइप 1, 2 और 3

इसका सबसे हल्का फॉर्म टाइप 1 है, जो कि इस सिंड्रोम का अब तक का सबसे आम प्रकार है। इसमें बच्चे में कुछ शारीरिक लक्षण दिखाई देंगे, लेकिन इसमें मस्तिष्क से संबंधित कोई गड़बड़ी नहीं होगी। टाइप 1 को क्लासिक फाइफर सिंड्रोम भी कहते हैं। इससे ग्रसित ज्यादातर लोग सामान्य जीवन जीते हैं।

जबकि टाइप 2 और टाइप 3 फाइफर सिंड्रोम का अधिक गंभीर रूप है, क्योंकि इसमें अक्सर तंत्रिका तंत्र की समस्याएं होती हैं।

(और पढ़ें - केंद्रिय तंत्रिका तंत्र में गड़बड़ी)

फाइफर सिंड्रोम का कारण क्या है?

यह इसलिए होता है, क्योंकि इसमें गर्भ में बच्चे की खोपड़ी, हाथ या पैर की ​हड्डियां आपस में मिल या जुड़ जाती हैं। यही वजह है कि बच्चे की शरीर की संरचना असामान्य हो जाती है।

इस स्थिति में मस्तिष्क या अन्य अंगों को विकसित होने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिलती है, जिस कारण निम्न तरह की समस्याएं हो सकती हैं :

  • कॉग्नीटिव फंक्शन (सीखने, सोचने, तर्क करने, याद्दाश्त संबंधी, समस्याएं सुलझाने, निर्णय लेने से संबंधित दिक्क्तें)
  • सांस लेने में दिक्कत
  • पाचन या गतिविधियों से जुड़ी समस्या

फाइफर ​सिंड्रोम का निदान कैसे होता है?

गर्भ के दौरान डॉक्टर समय-समय पर अल्ट्रासाउंड करते हैं, ऐसे में कई बार वे फाइफर ​सिंड्रोम के शुरुआती लक्षणों (हाथ या पैर की उंगलियों का फ्यूज होना) को नोटिस कर सकते हैं, जिनमें हड्डियों का आपस में जुड़ना शामिल है।

यदि लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, तो डॉक्टर आमतौर पर बच्चे के जन्म के समय निदान करेंगे। यदि लक्षण बहुत हल्के हैं, तो डॉक्टर बच्चे के पैदा होने, विकास के दौरान या कुछ वर्षों तक भी इस स्थिति का निदान नहीं कर सकते हैं।

फाइफर सिंड्रोम का इलाज कैसे ​होता है?

फाइफर सिंड्रोम का उपचार केवल सर्जरी की मदद से होता है। बच्चे के जन्म के लगभग तीन महीने बाद, डॉक्टर आमतौर पर बच्चे की खोपड़ी को सही आकार देने के लिए सर्जरी की सलाह दे सकते हैं। इस दुर्लभ स्थिति में सर्जरी कई चरणों में करने की जरूरत होती है।

एक बार जब सर्जरी ठीक से हो जाती है, तो डॉक्टर जबड़े, चेहरे, हाथ या पैरों के लक्षणों का इलाज करने के लिए अन्य सर्जरी का सुझाव दे सकते हैं, ताकि वे सांस ले सकें और साथ ही साथ हाथों और पैरों का इस्तेमाल कर सकें।

हालांकि, कुछ मामलों में जन्म के कुछ समय बाद ही सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है, ताकि वह नाक या मुंह से सांस ले सकें।