स्तन कैंसर महिलाओं में होने वाला आम कैंसर है। कैंसर के इलाज के क्षेत्र में हर दिन कोई न कोई नई रिसर्च होती रहती है। हाल ही में ये पता लगा था कि टीबी का टीका कैंसर मरीजों में अल्जाइमर के खतरे को कम करता है। कैंसर से जूझ रहे मरीजों के साथ उनका परिवार भी इस बीमारी में साथ में झुलस रहा होता है। ऐसे में स्तन कैंसर के क्षेत्र में की गई ये खोज लोगों को नए उपचार ट्राई करने के लिए प्रेरित करेगी।

(और पढ़ें - ब्रैस्ट कैंसर (स्तन कैंसर) के लक्षण, कारण, इलाज)

हाल ही में अमेरिकी शोधकर्ताओं ने ये पता किया है कि न्यूरोलॉजिक और बीपी की दवाइयों को साथ में मिलाकर देने से स्तन कैंसर के दौरान बढ़ रहे ट्यूमर को रोका जा सकता है। ये स्टडी जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में छापी गई थी। इस स्टडी के अनुसार एपिलेप्सी, बाइपोलर डिसऑर्डर और माइग्रेन में दी जाने वाली दवाइयों को जब बीपी की दवाइयों के साथ दिया गया तो स्तन कैंसर से जूझ रहे चूहों के बच्चों में ट्यूमर कम पनपा। ऐसा इसलिए भी हुआ, क्योंकि चूहों की मां को गर्भवती होने के समय ज्यादा वसा वाली डाइट दी गई थी।

रिसर्च का शुरुआती चरण
इस शोध को करने वाली जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी अमेरिका की शोधकर्ता लीना ए हिलाकिवी क्लार्क कहती हैं कि जब एक गर्भवती चुहिया को ज्यादा वसा वाली डाइट खिलाई गई तो स्तन कैंसर के बढ़ रहे प्रभाव कम हो गए। यही खोज इंसानों के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकती है।

(और पढ़ें - ब्रेस्ट कैंसर से जुड़े मिथक)

एक गर्भवती मां को जब कुछ निर्धारित कैमिकल्स दिए जाते हैं या मां को ज्यादा वसा वाला खाना दिया जाए और किसी केस में मां मोटापे की शिकार है तो इन सब मामलों में उसकी बेटी को स्तन कैंसर हो सकता है।

इस रिसर्च में इस्तेमाल की गई खास ड्रग
इस स्टडी के दौरान जिस खास दवा पर रिसर्च की गई थी वो वैलप्रोइक एसिड थी। ये दवा शरीर के कई जरूरी अंगों को टारगेट करती है और बायपोलर डिसऑर्डर से ग्रसित मरीजों को दी जाती है। ये दवा हिस्टोन डीएसिटाइलेज को रोक जीन्स में एपिजेनेटिक सलेंसर की तरह काम करती है। म्युटेशन की वजह से जहां जीन्स के साधारण कामों में बदलाव आता है। वहीं एपिजेनेटिक बदलावों को रिवर्स किया जा सकता है।

(और पढ़ें - कुछ आवश्यक तथ्य जो स्तन कैंसर के बारे में आपको पता होने चाहिए)

वैल्प्रोइक एसिड जब बीपी की दवाई हाइड्रालेजाइन से मिलता है तो एपिजेनेटिक रेगुलेटर डीएनए मीथाइलट्रांसफीरेज को ब्लॉक करता है। ये दोनों दवाइयां ट्यूमर को बढ़ने से रोकती हैं।

इन दवाओं के नुकसान
ये स्टडी बताती है कि कैसे एपिजेनेटिक मिथाइल ग्रुप को जोड़ना या डीएनए से घटाना फायदेमंद हो सकता है। जो कंपाउंड्स ट्यूमर सप्रेशन जीन्स की मीथाइलेशन को घटाते हैं, फायदेमंद होते हैं। वहीं अगर ये सप्रेसर जीन्स हाइपरमीथाइलेटेड नहीं हैं तो ये कैंसर के ट्यूमर पर उल्टा प्रभाव दिखा सकते हैं। ऐसे केस में ये कैंसर पैदा करने वाले जीन्स में से मीथाइल ग्रुप को हटा सकता है। इन जीन्स को ज्यादा एक्टिव बनाने से कैंसर और घातक बन जाता है।

कैंसर का खतरा और डाइट
कैंसर के मरीजों को दी गई डाइट कैंसर पर प्रभाव डालती है। कुछ खास सब्जियां और फल ठीक वैसे ही रिएक्शन कैंसर मरीजों में दिखाते हैं जैसे कि एचडीएसी (हीस्टोन डीएसिटाइलेज) और डीएनएमटी (डीएनए मीथाइलट्रैंसफीरेज) दवाएं दिखाती हैं।

खाने में फॉलिक एसिड का लाभ
इस रिसर्च के अनुसार ज्यादा वसा अथवा एंडोक्राइन के काम में दखल देने वाले कैमिकल बच्चे पर डीएनएमटी और एचडीएसी इन्हीबिटर खाने के उल्टे प्रभाव दिख सकते हैं। कुछ मरीजों को जिन्हें इस तरह का एक्सपोजर नहीं मिला और फॉलिक एसिड से भरपूर खाना खाते हैं कैंसर से बच जाते हैं।

ऐप पर पढ़ें