कोविड-19 के इलाज को लेकर चर्चा में रही रेमडेसिवीर दवा कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों की मृत्यु दर में कथित रूप से कमी लाने में कारगर है। इस दवा की निर्माता कंपनी गिलीड साइंसेज ने कुछ अतिरिक्त ट्रायलों में मिले परिणामों के आधार पर यह दावा किया है। कंपनी ने कहा है कि उसके इन अतिरिक्त परीक्षणों में कोविड-19 के गंभीर मरीजों के मारे जाने का खतरा सामान्य इलाज की तुलना में 62 प्रतिशत तक कम हुआ है और उनकी हालत में तेजी से सुधार देखने को मिला है।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, गिलीड साइंसेज का कहना है कि इस अतिरिक्त ट्रायल के तहत उसने कोरोना वायरस से संक्रमित 312 लोगों को रेमडेसिवीर दवा देकर इसके प्रभाव का विश्लेषण किया है। इसके लिए कंपनी ने पहले किए गए कुछ अन्य परीक्षणों से जुड़े 818 मरीजों के आंकड़े भी शामिल किए और उनकी तुलना अपने अध्ययन में शामिल मरीजों से की। बता दें कि अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती इन कोरोना मरीजों की हालत भी गंभीर थी।

आंकलन के बाद कंपनी ने दवा के पांच और दस दिनों के दौरान दी जाने वाली डोजों को सुरक्षित और सक्षम बताया है। इस बारे में कंपनी की तरफ से जारी किए बयान के मुताबिक, दवा की डोजिंग के दौरान 14वें दिन तक 74 प्रतिशत से ज्यादा मरीज रिकवर होकर डिस्चार्ज हो गए थे। वहीं, जिन मरीजों का सामान्य तरीके से इलाज किया गया, उनमें रिकवरी रेट 59 प्रतिशत रहा।

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कंपनी ने यह दावा भी किया कि ऐसे मरीजों की रिकवरी की संभावना कम देखने को मिली है, जिन्हें रेमडेसिवीर के साथ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा भी दी गई थी। गिलीड की मानें तो केवल रेमडेसिवीर वाले मरीजों में रिकवरी रेट तुलनात्मक रूप से ज्यादा रहा। इसके अलावा, कंपनी ने कहा है कि ट्रायल के दौरान रेमडेसिवीर दवा वाले मरीजों में मृत्यु दर 7.6 प्रतिशत रही, जबकि सामान्य ट्रीटमेंट के दौरान 12.5 प्रतिशत मरीजों की मौत हो गई। इस आधार पर कंपनी आगे और अध्ययन किए जाने की बात का समर्थन करती है।

भारत में रेमडेसिवीर को लेकर चेतावनी
गिलीड साइंसेज अपने अध्ययन के हवाले से भले ही रेमडेसिवीर को कोविड-19 के मरीजों के लिए जीवनरक्षक बता रही है, लेकिन इसके इस्तेमाल के दुष्प्रभाव पहले भी सामने आए हैं। भारत में इस दवा के इस्तेमाल से कोरोना मरीजों में लिवर की समस्या के कई मामले देखने को मिल चुके हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, स्वास्थ्य मंत्रालय को इस संबंध में देशभर के कई सरकारी और निजी अस्पतालों की तरफ से शिकायती रिपोर्टें मिल चुकी हैं।

इस संबंध में आई मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, शिकायत आने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों ने बताया था कि रेमडेसिवीर दवा के इस्तेमाल को लेकर समीक्षा की जा रही है। बीते हफ्ते आई इन रिपोर्टों में मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना था, 'हमें सरकारी और निजी अस्पतालों से रिपोर्ट मिली है कि जिन मरीजों को रेमडेसिवीर दवा दी गई, उनके शरीर में कुछ केमिकल पदार्थों का स्तर बढ़ा है, जिससे उनके लिवर में इन्जरी होने की आशंका है।' अधिकारी ने कहा था कि मंत्रालय इस बाबत करीबी नजर बनाए हुए है।

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शिकायत के बाद भी इस्तेमाल जारी रहेगा
लेकिन अब सरकार की तरफ से डॉक्टरों से कह दिया गया है कि वे प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करते हुए कोविड-19 के मरीजों का रेमडेसिवीर से इलाज करना जारी रखें। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सरकार के कुछ सूत्रों ने बताया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय इस दवा के प्रोटोकॉल से जुड़े दिशा-निर्देशों की समीक्षा कर रहा है, लेकिन तब तक तमाम राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सलाह दी गई है कि वे अपने यहां के डॉक्टरों को रेमडेसिवीर के प्रोटोकॉल की जानकारी देते हुए इसे बिना भेदभाव के मरीजों को प्रेस्क्राइब करने को कहें। 

सरकार के एक अधिकारी ने एजेंसी को बताया है कि दवा के दुष्प्रभाव को लेकर किसी तरह के मेडिकल साक्ष्य नहीं होने के चलते इसे बड़ी संख्या में मरीजों के लिए प्रेस्क्राइब किया जा रहा है। अधिकारी के मुताबिक, अभी तक के अध्ययनों में कहा गया है कि इस ड्रग के इस्तेमाल से मरीजों के अस्पतालों में रहने की अवधि को कम किया जा सकता है और कोविड-19 की मृत्यु दर को यह प्रभावित नहीं करती है। यही कारण है कि इसका इस्तेमाल जारी रखने की सलाह दी जा रही है। 

हालांकि एक अन्य अधिकारी ने कहा कि मंत्रालय में एक तकनीकी समूह दवा के दुष्प्रभावों के सबूतों का इंतजार कर रहा है। इस बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय के ओएसडी (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) राजेश भूषण ने कहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो दवा के ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल में जरूर बदलाव किए जाएंगे।

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