भारत की बड़ी दवा कंपनी सिप्ला ने कोविड-19 के इलाज को लेकर चर्चा बटोर चुकी दवा रेमडेसिवीर का जेनेरिक वर्जन लॉन्च कर दिया है। बुधवार को इस बाबत बयान जारी करते हुए कंपनी ने बताया कि रेमडेसिवीर की एक शीशी (100 मिलीग्राम) की कीमत 4,000 रुपये रखी गई है। गौरतलब है कि भारत में कोविड-19 की रोकथाम व इलाज के लिए सिप्ला ने रेमडेसिवीर की निर्माता कंपनी गिलीड साइंसेज के साथ समझौता किया था। इसके तहत अमेरिका स्थित दवा कंपनी ने सिप्ला को रेमडेसिवीर के जेनेरिक वर्जन के उत्पादन की अनुमति दी थी। अब भारतीय दवा कंपनी ने 'सिप्रेमी' नाम से इस वर्जन को लॉन्च कर दिया है। कंपनी का दावा है कि उसने सबसे कम दाम में यह दवा उपलब्ध कराई है। बता दें कि भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ने सिप्रेमी के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दी है।

(और पढ़ें - कोविड-19: वैज्ञानिकों ने नए कोरोना वायरस को अपनी कॉपियां बनाने से रोकने वाले पदार्थों की खोज की)

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, दवा को लॉन्च करते हुए सिप्ला के एग्जीक्यूटिव वाइस-प्रेसिडेंट और भारत में इसके सीईओ निखिल चोपड़ा ने कहा, 'सिप्रेमी को कमर्शियली लॉन्च करते हुए हमें गर्व हो रहा है। इसकी कीमत दुनिया में सबसे कम है। हमने पहले महीने में 80 हजार से ज्यादा शीशियां बनाने का लक्ष्य रखा है।' निखिल चोपड़ा ने यह भी बताया कि दवा का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए इसे सरकार और अस्पतालों के जरिये भी उपलब्ध कराया जाएगा। इसके अलावा, कंपनी इस ड्रग से होने वाली कमाई का कुछ हिस्सा देश में कोविड-19 से निपटने के लिए किए जा रहे प्रयासों में लगाया जाएगा।

बता दें कि सिप्ला से पहले एक अन्य अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनी माइलन एनवी ने सोमवार को जानकारी दी थी कि उसके द्वारा तैयार किए गए रेमेडिसिवियर के जेनेरिक वर्जन की कीमत प्रति मिलीग्राम 4,800 रुपये होगी। वहीं, हैदराबाद स्थित दवा कंपनी हेटेरो ने दवा की कीमत 5,400 रुपये तय की हुई है।

(और पढ़ें - कोविड-19: करीब 25 हजार नए मामलों के साथ मरीजों की संख्या सात लाख 67 हजार से ज्यादा हुई, मृतकों का आंकड़ा 21 हजार के पार)

क्या है रेमडेसिवीर?
यह इबोला वायरस से होने वाली बीमारी के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवा है। इसे बनाने वाली कंपनी गिलीड साइंसेज का दावा है कि यह कोरोना वायरस से होने वाली बीमारी कोविड-19 के इलाज में भी कारगर साबित हो सकती है। दरअसल, वायरस कोशिकाओं के अंदर बनने वाले कीटाणु होते हैं। एक बार ये स्वस्थ कोशिकाओं में घुस जाएं तो उनका इस्तेमाल अपनी कॉपियां बनाने में करने लगते हैं ताकि अपने न्यूक्लिक एसिड को शरीर में फैला सकें। नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 का जेनेटिक मटीरियल राइबोन्यूक्लिक एसिड यानी आरएनए आधारित है। हरेक आरएनए (कई प्रकार से) चार न्यूक्लोटाइड बेस या अंशों की श्रृंखला में बना होता है। ये चारों अंश हैं एटीपी, जीटीपी, सीटीपी और यूटीपी। इनकी मदद से आरएनए विशेष प्रोटीन बनाता है। वहीं, आरएनए पॉलिमरेज नाम का एंजाइम आरएनए की नई प्रतिकृतियां बनाता है, जिनका इस्तेमाल नए विषाणु बनाने में होता है। रेमडेसिवीर, वायरल आरएनए में एटीपी की जगह ले लेती है और जब नया आरएनए बनता है तो उसके आसपास इकट्ठा होकर वायरस की प्रतिकृति प्रक्रिया को पूरी तरह रोक देती है। चूंकि वायरस अपनी नई कॉपियां नहीं बना पाता, इसलिए शरीर में नए विषाणु नहीं फैलते।

(और पढ़ें - कोविड-19: मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज की मदद से नए कोरोना वायरस समेत कई रोगाणुओं को खत्म करने की कोशिश में लगे वैज्ञानिक)

हालांकि कोरोना वायरस के खिलाफ रेमडेसिवीर के ट्रायलों के परिणामों को लेकर विवाद भी रहे हैं। कई मेडिकल विशेषज्ञों ने कोविड-19 के संबंध में इस दवा के प्रभाव पर सवाल खड़े किए हैं। लेकिन इस बहस को तब विराम लग गया जब अमेरिका की शीर्ष ड्रग एजेंसी एफडीए ने कोविड-19 के मरीजों के इलाज में इसके आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दे दी। इसके बाद भारत की कुछ दवा कंपनियों ने इसके जेनेरिक वर्जन के उत्पादन के लिए गिलीज साइंसेज के साथ नॉन-एक्सक्लूसिव लाइसेंसिंग समझौता किया था। इसके तहत अमेरिकी दवा कंपनी ने भारतीय दवा कंपनियों को इसकी मैन्यूफैक्चरिंग और डिस्ट्रिब्यूशन की अनुमति दी थी। वहीं, बीते महीने भारत सरकार ने भी कोविड-19 के इलाज से जुड़े अपने प्रोटोकॉल में इस दवा को शामिल किया था।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: सिप्ला ने रेमेडिसिवीर का जेनेरेक वर्जन 'सिप्रेमी' नाम से लॉन्च किया, एक शीशी की कीमत 4,000 रुपये है

ऐप पर पढ़ें