विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से जुड़े विशेषज्ञों और कई अन्य वैज्ञानिकों ने इटली के एक शीर्ष चिकित्सक के उस दावे को खारिज किया है, जिसमें उसने कहा था कि कोविड-19 महामारी की वजह बना नया कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 अपनी क्षमता खो रहा है। डब्ल्यूएचओ की महामारी विशेषज्ञ मारिया वैन केरखोव और अन्य संक्रामक रोग विशेषज्ञों तथा वायरस एक्सपर्ट ने कहा है कि कोरोना वायरस की क्षमता को लेकर इटैलियन डॉक्टर ऐल्बर्तो जांग्रिलो के दावे का कोई वैज्ञानिक आधार या सबूत नहीं है।

अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में इन विशेषज्ञों ने कहा है कि ऐसा कोई डेटा नहीं है, जो दिखाता हो कि नए कोरोना वायरस के ट्रांसमिशन या इससे होने वाली बीमारी की गंभीरता तेजी से कम हो रही है। पत्रकारों से बातचीत में केरखोव ने कहा, 'जहां तक (वायरस के) ट्रांसमिशन और घातक होने की क्षमता की बात है तो उसमें कोई बदलाव नहीं आया है।' वहीं, लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में नई संक्रामक बीमारियों के विषय के प्रोफेसर मार्टिन हिबर्ड ने कहा कि सार्स-सीओवी-2 के जेनेटिक बदलाव को लेकर हुए बड़े अध्ययन इस दावे का समर्थन नहीं करते हैं कि इसकी क्षमता कम हो रही है।

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कोरोना वायरस के कमजोर होने का दावा करने वाले डॉक्टर ऐल्बर्तो जांग्रिलो इटली के पूर्व प्रधानमंत्री सिलवियो बेर्लुस्कोनी के निजी चिकित्सक रह चुके हैं। वे इटली के शीर्ष स्वास्थ्य विशेषज्ञों में गिने जाते हैं। कोरोना वायरस को लेकर उनके दावे पर अन्य विशेषज्ञों की राय सामने आने के बाद उन्होंने अपनी राय रखी है। समाचार एजेंसी से बातचीत में जांग्रिलो ने कहा कि उन्होंने कभी भी यह नहीं कहा कि वायरस बदल गया है, बल्कि यह कहा कि वायरस के कोशिका पर पड़ने वाले प्रभाव में बदलाव आया है। ऐल्बर्तो ने कहा कि इसके दो कारण हो सकते हैं। एक यह कि ऐसा वायरस की अपनी कई अलग-अलग विशेषताओं के कारण हुआ, जिनकी पहचान अभी तक नहीं की गई है, या फिर ऐसा अलग-अलग लोगों की शारीरिक भिन्नता के कारण हो सकता है।

खबर के मुताबिक, ऐल्बर्तो जांग्रिलो ने कोरोना वायरस को कमजोर बताने के अपने दावे के समर्थन में एक अध्ययन का जिक्र किया है। यह अध्ययन इटली के ही एक वैज्ञानिक मासिमो क्लेमेंती ने किया था, जो अगले हफ्ते प्रकाशित होने वाला है। ऐल्बर्तो ने बताया कि अध्ययन में मार्च और मई में कोरोना वायरस से संक्रमित हुए लोगों के सैंपल लिए गए थे और उनकी जांच की गई थी। इसमें पाया गया कि मार्च के मरीजों में कोरोना वायरस का वायरल लोड, मई में संक्रमित हुए लोगों के वायरल लोड से काफी ज्यादा था।

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लेकिन कई अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों ने इसे खारिज किया है। प्रतिष्ठित जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, वेक फॉरेस्ट बैपटिस्ट मेडिकल सेंटर, जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी और नॉर्थवेल हेल्थ के विशेषज्ञों तथा प्रतिनिधियों ने कहा है कि वे ऐसे सबूतों के बारे में नहीं जानते, जो ऐल्बर्तो जांग्रिलो की बात को समर्थन देते हों। इन विशेषज्ञों में शामिल जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की इमरजेंसी फिजिशन लिएन वेन का कहना है, 'इटैलियन डॉक्टर का सुझाव काफी खतरनाक मालूम होता है, क्योंकि यह बिना किसी सबूत के झूठा आश्वासन देता है। ऐसा कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है कि जो कहता है कि कोरोना वायरस बदल रहा है। यह (अभी भी) काफी संक्रामक है, लिहाजा हमें पहले की ही तरह सतर्क बने रहना चाहिए।'


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 महामारी की वजह बने कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के कमजोर होने के कोई सबूत नहीं: डब्ल्यूएचओ व अन्य विशेषज्ञ है

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