वैश्विक वैज्ञानिक समाज इस समय कोरोना वायरस को लेकर अनेक प्रकार के शोध और अध्ययन करने में लगा हुआ है। ऐसा कोई दिन नहीं जा रहा है, जब इस वायरस को लेकर कोई नई जानकारी सामने नहीं आ रही है। इस सिलसिले में अब नए कोरोना वायरस के 'वायरल लोड' से जुड़े शोध चर्चा में हैं। खबरे हैं कि वैज्ञानिक नए कोरोना वायरस के ‘वायरल लोड’ का पता लगाने में जुटे हैं। शोधकर्ताओं और मेडिकल विशेषज्ञों की मानें तो वायरल लोड पैटर्न की पहचान करने से कोविड-19 बीमारी का पता लगाने और उसकी गंभीरता का आकलन करने में मदद मिल सकती है। उनका यह भी कहना है कि यह कोविड-19 का इलाज ढूंढने में भी सहायक हो सकता है।

क्या है वायरल लोड?
वायरल लोड का मतलब मरीज के शरीर में वायरस की मात्रा से है। डॉक्टरों के मुताबिक, वायरल लोड टेस्ट से पता चलता है कि वायरस मरीज के शरीर में कितनी मात्रा में फेल चुका है। इस टेस्ट को करने का एक मुख्य कारण यह पता करना होता है कि संक्रमण के दौरान शरीर में क्या बदलाव हो रहे हैं। नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के वायरल लोड को लेकर जो शोध किए गए हैं, उनसे पता चला है कि यह विषाणु अपने परिवार के भाइयों से अलग है।

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सार्स-सीओवी-1 और मर्स-सीओवी से अलग वायरल लोड
शोधों से पता चला है कि सार्स-सीओवी-2 का वायरल लोड शरीर में इसके लक्षणों की शुरुआत के समय ही घातक हो सकता है, जबकि 2002-03 में सामने आए कोरोना वायरस 'सार्स-सीओवी-1' के मामले में ऐसा नहीं है। यह वायरस लक्षणों की शुरुआत के लगभग 10 दिन बाद घातक स्तर पर होता है। वहीं, मर्स-सीओवी लक्षणों की शुरुआत के लगभग 14 दिनों के बाद गंभीर हो सकता है। एक अन्य अध्ययन में पता चला है कि इटली में सार्स-सीओवी-2 के फैलने के शुरूआती चरण में लक्षण और बिना लक्षण वाले मरीजों में अलग वायरल लोड नहीं मिला। इस आधार पर कहा गया है कि हो सकता है दोनों स्थितियों में वायरस के फैलने की क्षमता बराबर हो। सार्स-सीओवी-2 से जुड़ी इस जानकारी के सामने आने के बाद, अब यह पता लगाया जा सकता है कि किस रोगी का एंटीवायरल उपचार कैसे किया जाए।

वायरस की गंभीरता को जानने में जुटे वैज्ञानिक
वहीं, एक और अध्ययन में हांगकांग और चीन के मामलों की समीक्षा की गई। इसमें पाया गया कि संक्रमण की शुरुआत के समय सार्स-सीओवी-2 का सबसे ज्यादा वायरल लोड गले के ऊपरी हिस्से में पाया गया। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि ‘वायरल लोड’ धीरे-धीरे कम होने लगा और 21 दिनों के बाद इसका पता लगाने की संभावना भी कम होती चली गई। उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस के वायरल लोड और बीमारी की गंभीरता में लिंग और उम्र के आधार पर कोई अंतर नहीं मिला।

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लांसेट पत्रिका में भी जिक्र?
स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी जानी-मानी पत्रिका ‘दि लांसेट’ में प्रकाशित एक नए अध्ययन में भी इसी बात का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे एक मरीज के प्रेजेंटेशन के समय उसमें कोरोना वायरस का वायरल लोड ‘बहुत अधिक’ पाया गया था, जबकि बाद में उसमें गिरावट आई। हालांकि इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि एक विशेष उम्र के लोगों में वायरस ज्यादा गंभीर दिखाई दिया। साथ ही शोधकर्ताओं को पता चला कि सार्स-सीओवी-2 का वायरल लोड इन्फ्लुएंजा के समान है। इसका मतलब लक्षण शुरू होने के समय वायरस तेजी से फैलता है। इसका एक मतलब यह भी है कि शुरुआती लक्षण में ही यह वायरस आसानी से (अन्य व्यक्तियों में) ट्रांसमिट हो सकता है। बहरहाल, सार्स-सीओवी-2 के वायरल लोड को लेकर अभी भी कई रिसर्च हो रहे हैं। ऐसे में यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि इसका वायरल लोड गंभीर लक्षणों से कैसे जुड़ा है।

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