डीओओआर सिंड्रोम (DOORS)  एक जेनेटिक डिसऑर्डर है जिसका अर्थ है डेफनेस ऑनिकोडिस्ट्रोफी ऑस्टियोडिस्ट्रोफी एंड मेंटल रिटार्डेशन। इस सिंड्रोम की पहचान आमतौर पर जन्म के तुरंत बाद हो जाती है। 'नैशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर रेयर डिसऑर्डर' के मुताबिक DOORS एक लघुरूप है बीमारी से संबंधित उन प्रमुख लक्षणों का जो इस सिंड्रोम में देखने को मिलते हैं। इसमें डेफनेस यानी बहरापन, नाखून का बेहद छोटा रहना या नाखून न होना (ऑनिकोडिस्ट्रोफी), हाथ और पैर की उंगलियों का बेहद छोटा रहना (ऑस्टियोडिस्ट्रोफी), विकास में देरी और बौद्धिक अक्षमता (जिसे पहले मेंटल रिटार्डेशन कहा जाता था) और दौरे पड़ना शामिल है। हालांकि डीओओआर सिंड्रोम से पीड़ित कुछ लोगों में ये सभी लक्षण देखने को नहीं मिलते हैं।

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डीओओआर सिंड्रोम के लक्षण - DOOR Syndrome Symptoms in Hindi

जैसा कि हमने पहले ही बताया है कि डीओओआर सिंड्रोम एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार है इसलिए जन्म के वक्त ही कुछ बच्चों में इसके लक्षण देखने को मिल जाते हैं। इस सिंड्रोम के लक्षणों की बात करें तो जन्म से ही बच्चे में बहरापन होता है, उसके हाथ और पैर के नाखूनों में विकृति होती है (ऑनिकोडिस्ट्रोफी), हाथ औऱ पैर की उंगलियों की हड्डी की बनावट में दोष होता है (ऑस्टियोडेस्ट्रोफी) और बौद्धिक विकलांगता के साथ ही दौरे पड़ने की समस्या भी देखने को मिलती है। इस स्थिति से जुड़े ज्यादातर मामलों में, शिशुओं में सेंसरिन्युरल हियरिंग लॉस के कारण दोनों कानों में जन्म से ही बहरापन होता है।

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हालांकि ऐसे बच्चे जिनमें इस तरह का श्रवण दोष (सुनने की समस्या) होता है, उनमें बाहरी और मध्य कान के जरिए सामान्य रूप से आवाज का संचालन किया जा सकता है। लेकिन, आंतरिक कान या श्रवण तंत्रिका के दोष के कारण मस्तिष्क में आवाज का संचालन ठीक से प्रसारित नहीं हो पाता जिसके चलते मरीज सुन नहीं पाता। जैसे-जैसे पीड़ित बच्चे की उम्र बढ़ने लगती है बहरेपन की वजह से बच्चे का बोलने संबंधी विकास भी बाधित होने लगता है।

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डीओओआर सिंड्रोम का कारण - DOOR Syndrome Causes in Hindi

डीओओआर सिंड्रोम ऑटोसोमल रेसिसिव पैटर्न के जरिए माता-पिता से बच्चे में आनुवंशिक तौर पर आता है। इंसान की विलक्षणता या विशेषता जिसमें क्लासिक जेनेटिक बीमारियां भी शामिल हैं- 2 जीन की पारस्परिक क्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है- एक जीन जो पिता से प्राप्त होता है और दूसरा जीन जो मां से।

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ऑटोसोमल रिसेसिव विकार में, बीमारी तब तक प्रकट नहीं होती जब तक व्यक्ति माता-पिता दोनों से एक ही लक्षण के लिए एक ही दोषपूर्ण जीन को आनुवंशिक तौर पर प्राप्त नहीं करता। अगर किसी व्यक्ति को एक सामान्य जीन और एक बीमारी वाला जीन मिलता है, तो वह व्यक्ति बीमारी का वाहक (कैरियर) तो होगा, लेकिन उसमें आमतौर पर बीमारी के लक्षण नहीं दिखाई देंगे। एक ऐसा कपल जिनमें दोनों ही रिसेसिव बीमारी के कैरियर हों, उनके द्वारा अपने बच्चे को बीमारी हस्तांरित करने का जोखिम 25 प्रतिशत होता है। ऐसे दपंति के बच्चों में से 50 फीसदी बच्चे ऐसे होंगे जो बीमारी के वाहक तो होंगे लेकिन आमतौर पर उनमें बीमारी के लक्षण नहीं दिखाई देंगे। ऐसे कपल के 25 प्रतिशत बच्चे ऐसे होंगे जिन्हें दोनों माता-पिता से एक-एक सामान्य जीन प्राप्त होगा और वे आनुवांशिक रूप से सामान्य होंगे। 

डीओओआर सिंड्रोम का निदान - Diagnosis of DOOR Syndrome in Hindi

डीओओआर सिंड्रोम का निदान जन्म के तुरंत बाद हो सकता है क्योंकि इसमें कुछ विशिष्ट शारीरिक विशेषताएं जैसे, हड्डी, डर्मैटोग्लिफिक और नाखून संबंधी असामान्यताएं नजर आती हैं। डीओओआर सिंड्रोम के निदान की पुष्टि के लिए क्लिनिकल ​​मूल्यांकन, रोगी की मेडिकल हिस्ट्री और स्पेशल टेस्ट जैसे- एक्स-रे भी किया जाता है। एक्स-रे स्टडी की मदद से अंगूठे और पैर की उंगलियों में अतिरिक्त हड्डी की उपस्थिति के साथ ही उंगलियों में हड्डियों के अविकसित होने का भी पता चल सकता है। मेडिकल साइंस के मुताबिक इस तरह की विशिष्ट असामान्यताओं वाले शिशुओं का सेंसरिन्युरल डेफ्नेस यानी बहरेपन संबंधित टेस्ट भी किया जाना चाहिए।

डीओओआर सिंड्रोम का इलाज - DOOR Syndrome Treatment in Hindi

डीओओआर सिंड्रोम का इलाज उन विशिष्ट लक्षणों के आधार पर किया जाता है जो हर पीड़ित व्यक्ति में साफ तौर पर दिखाई देते हैं। बीमारी के इलाज के लिए चिकित्सा पेशेवरों की एक टीम के संयुक्त प्रयास की आवश्यकता होती है, जिसमें बाल रोग विशेषज्ञ, सर्जन, विशेषज्ञ जो सुनने की समस्याओं का आकलन और उपचार करते हैं, न्यूरोलॉजिकल विकारों के चिकित्सक जिन्हें न्यूरोलॉजिस्ट कहा जाता है और स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े अन्य प्रोफेशनल्स शामिल हैं।

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इस बीमारी के इलाज के तहत सुनने की क्षमता से जुड़े नुकसान का सबसे पहले आकलन किया जाना चाहिए ताकि पीड़ित बच्चे में बोलने से संबंधित दिक्कतो को कम से कम किया जा सके। साथ ही पीड़ित बच्चे की बात करने की क्षमता को बेहतर बनाया जा सके।

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Dr. Manish Gudeniya

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