दुनिया की प्रतिष्ठित मैगजीन 'टाइम' ने हाल में साल 2020 के 100 सबसे प्रभावशाली हस्तियों की सूची जारी की है। इस सूची में भारत और भारतीय मूल के पांच लोग शामिल हैं। इनमें एक नाम प्रोफेसर रविंद्र गुप्ता का भी है। मेडिकल क्षेत्र के अलावा ज्यादातर लोग उनके बारे में अधिक नहीं जानते होंगे। आज हम आपको बताएंगे कि प्रोफेसर रविंद्र गुप्ता ने ऐसा क्या किया है, जिसके चलते दुनिया की सबसे चर्चित पत्रिका ने उन्हें अपनी 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया है।
पिछले साल ब्रिटेन में एचआईवी/एड्स के एक मरीज को इस बीमारी से पूरी तरह स्वस्थ होने का दावा किया गया था। बीते चार दशकों से लाइलाज माने जाने वाली इस बीमारी के इतिहास में यह दूसरा मौका था, जब इसके किसी मरीज की जान बचाने में डॉक्टर कामयाब रहे थे। ब्रिटेन के लंदन शहर में हुए इस ट्रीटमेंट को जिन डॉक्टरों ने अंजाम दिया था, उनकी टीम का नेतृत्व कोई और नहीं रविंद्र गुप्ता ने ही किया था। एचआईवी से जुड़े शोधकार्यों को लेकर वे मेडिकल जानकारों के बीच पहले से काफी ख्याति प्राप्त कर चुके थे, लेकिन उनकी इस कामयाबी ने एचआईवी ट्रीटमेंट और रिसर्च के मामले में पूरी दुनिया में उनका लोहा मनवा दिया। उनकी इस उपलब्धि को अब दुनिया की सबसे प्रभावशाली और प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में से एक टाइम ने भी स्वीकार किया है और अपनी चर्चित 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में डॉ. रविंद्र गुप्ता को शामिल किया है।
दुनिया की प्रतिष्ठित कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. रविंद्र गुप्ता ने जिस मरीज का इलाज किया था, उसे पहले पूरी दुनिया में 'लंदन पेशंट' के नाम से जाना जाता था। इस मरीज को साल 2014 में डॉक्टरों ने कह दिया था कि वे उस साल का क्रिसमस देखने के लिए जीवित नहीं रह पाएंगे। लेकिन यह मरीज न सिर्फ जीवित है, बल्कि पूरी तरह स्वस्थ भी है। टाइम ने इस मरीज के नाम के साथ उसका एक वक्तव्य भी प्रकाशित किया है, जिसमें उसने डॉ. रविंद्र गुप्ता के साथ अपने एचआईवी ट्रीटमेंट के अनुभव को साझा किया है और उनकी योग्यता, विशेषज्ञता और एड्स को लेकर उनके ज्ञान की प्रशंसा की है। इस मरीज का नाम ऐडम कैस्टिलेजो है।
पत्रिका में प्रकाशित वक्तव्य में ऐडम ने कहा है, 'व्यावहारिक एचआईवी उपचार के रूप में मेरी विचित्र यात्रा मेरे जीवनकाल का ऐसा समय है, जिसने मेरी जिंदगी में जबर्दस्त हलचल मचा दी। मेरा इलाज प्रोफेसर रविंद्र गुप्ता के नेतृत्व में हुआ। मुझे जब पहली बार उनसे मिलाया गया तो मैं प्रसन्नता के साथ हैरान हुआ था। वे (डॉ. रविंद्र गुप्ता) विचारशील और करुणामय थे। (एचआईवी के मामले में) उनकी निपुणता ऐसी थी कि मेरे मन में उनके लिए सम्मान पैदा हुआ। एचआईवी रिसर्च कम्युनिटी के उनके साथी उनका सम्मान करते हैं और मैं भी। इन सालों के दौरान हमारी साझेदारी और मजबूत हुई है। (एड्स का इलाज ढूंढने के लिए) रविंद्र गुप्ता ने अपना ज्ञान और जुनून हर किसी से साझा किया है ताकि (एचआईवी का) इलाज संभव हो सके। उन्होंने मुझे (एड्स के खिलाफ) विजेता बनाया है और दुनियाभर में एचआईवी के साथ जी रहे लोगों के लिए एक दूत बनने का प्रोत्साहन दिया है।'
लाइलाज का किया इलाज
बीते साल मार्च महीने में खबर आई थी कि ब्रिटेन में एचआईवी से ग्रसित एक व्यक्ति पूरी तरह से ठीक हो गया है। इतिहास में एचआईवी से किसी व्यक्ति के पूरी तरह ठीक होने का यह दूसरा मामला था। स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी चर्चित पत्रिका 'द लांसेट' ने अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी थी। हालांकि, डॉक्टरों ने ऐडम के ठीक होने की घोषणा एक साल पहले यानी 2018 में ही जता दी थी। लेकिन उनके पूरी तरह एचआईवी-मुक्त होने के लिए और समय तक इंतजार किया गया। इसमें कुल 30 महीने का वक्त लगा। इस दौरान ऐडम को किसी प्रकार की एंटीवायरल दवा की जरूरत नहीं पड़ी। इसके बाद डॉक्टरों ने मार्च 2019 में नई घोषणा के तहत बताया कि अब यह मरीज एचआईवी से पूरी तरह मुक्त है।
इससे पहले 2018 में डॉक्टरों ने बताया था कि एचआईवी पीड़ित ऐडम कैस्टिलेजो का एक विशेष ऑपरेशन के तहत बोन मैरो (अस्थि-मज्जा) प्रत्यारोपण किया गया था। उनके मुताबिक, इसके बाद मरीज को लंबे समय तक किसी प्रकार की समस्या महसूस नहीं हुई थी। रिपोर्ट की मानें तो कैस्टिलेजो 18 महीनों तक एचआईवी से मुक्त रहे। फिर 12 महीने और बीतने के बाद डॉक्टर पूरी तरह से आश्वस्त हो चुके थे कि यह मरीज एचआईवी के संक्रमण से पूरी तरह उबर चुका है। यह कारनामा करने वाले प्रमुख डॉक्टर रविंद्र गुप्ता हैं। ब्रिटेन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में क्लीनिकल माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर तथा शोधकर्ता रवींद्र कुमार गुप्ता ने कहा था, ‘एक मरीज का एचआईवी से ठीक होना बहुत अहम है। हम उम्मीद करते हैं कि इससे एचआईवी के दूसरे मामलों में किए जा रहे इलाज के लिए प्रोत्साहन और बढ़ावा मिलेगा।’
ऐडम कैस्टिलेजो से पहले एचआईवी संक्रमण से मुक्त होने वाले व्यक्ति जर्मनी के रहने वाले टिमोथी ब्राउन हैं, जिन्हें ‘बर्लिन पेशंट’ के रूप में जाना जाता था। टिमोथी ब्राउन का इलाज भी 2007 में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए किया गया था। उनका उपचार एक दशक से ज्यादा वक्त तक चला। रिपोर्टों से पता चलता है कि कैस्टिलेजो और ब्राउन दोनों के मामलों में खास बात यह रही कि इन दोनों मरीजों के प्रत्यारोपण के लिए उपयोग की जाने वाली स्टेम कोशिकाएं ऐसे डोनर से मिली, जिनके शरीर में ऐसा म्यूटेशन (डेल्टा 32) था जो एचआईवी संक्रमण को रोक सकता था। बताया गया है कि इन डोनर्स के पास अन्य लोगों की तुलना में एक दुर्लभ आनुवंशिक म्युटेशन था, जो एचआईवी के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता रखता है। इसकी वजह से इलाज में बेहतर और सटीक परिणाम देखने को मिले। वहीं, डॉ. रविंद्र गुप्ता का कहना है कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट एचआईवी का इलाज हो सकता है।