फोन पहले संपर्क स्थापित करने का एक साधन था। धीरे-धीरे संदेशवाहक बन गया। वाई-फाई और नेटवर्क स्थापित होने के बाद तरह-तरह के एप्स आ गए। अब घर बैठे शॉपिंग कीजिए, खाना मंगवाइए और डॉक्टर से सलाह भी लीजिए। अब हर चीज आपके हाथ में। अगर कहीं घूमने भी जाना हो तो होटल भी पहले से ही बुक कर सकते हैं। इंसान हर पल अपनी सुख सुविधा के लिए कोई नई खोज करता रहता है। अब सोचिए जिन महंगे हेल्थ टेस्ट के लिए आपको लैब जाकर घंटों रिपोर्ट का इंतजार करना पड़ता है। वही टेस्ट आपका स्मार्टफोन कैमरा एक चुटकी में कर देगा। आपके पैसे भी बचेंगे और समय भी।

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लंदन के वैज्ञानिकों ने स्मार्टफोन के जरिए एक टेस्ट करने की तकनीक निकाली है। इस तकनीक के जरिए मरीज मूत्र मार्ग संक्रमण (यूटीआई) का पता लगा पाएंगे, वो भी सिर्फ 25 मिनट में। इस प्रक्रिया में प्रेग्नेंसी का पता करने वाला सिद्दांत शामिल है। इस प्रक्रिया के जरिए खतरनाक ई. कोलाई कीटाणुओं को आराम से स्मार्टफोन कैमरा के जरिए ढूंढा जा सकता है।

यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार
ब्रिटेन की बाथ यूनिवर्सिटी ने उपलब्ध टेस्ट तकनीक से अधिक तेज तकनीक विकसित कर ली है। इस तकनीक के जरिए मूत्र मार्ग संक्रमण (यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन) की सटीक पहचान की जा सकती है। दूर दराज के इलाकों और विकासशील देशों के लोग इस तकनीक का लाभ उठा सकते हैं। ये बाजार में उपलब्ध महंगे टेस्टों से काफी सस्ता है।

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ई. कोलाई की जांच
ई. कोलाई बैक्टीरिया 80 प्रतिशत मूत्र मार्ग संक्रमणों में होता है। इसकी जांच हो जाने पर एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट दिया जाता है। जिस कैमरे में इस तरह का टेस्ट होगा। उसके कैमरे में तरह-तरह के बैक्टीरिया संक्रमण की पहचान के लिए स्पेशल रिजेंट्स और कई सूक्ष्म इंजीनियर्ड उत्पाद लगाए गए हैं। इसकी मदद से मरीजों को समय रहते सही उपचार उपलब्ध करवाया जाएगा।

कैसे करेगा टेस्ट काम
बायोसेंसर और बायोइलेक्ट्रॉनिक की जर्नल में छपा था कि इस टेस्ट में एंटीबॉडीज का इस्तेमाल किया जाता है। इस टेस्ट में एंटीबॉडीज की मदद से बैक्टीरियल सेल्स को बहुत ही पतली प्लास्टिक नलियों में कैद कर लिया जाता है। बाद में इनकी मदद से बीमारी के लक्षणों का पता लगाया जाता है। इस विधि ने माइक्रोबाइलॉजिकल तकनीक के इस्तेमाल पर ताला लगा दिया है।

टेस्ट की प्रक्रिया
पहले बैक्टीरिया द्वारा फैलाए गए मूत्र मार्ग संक्रमण को माइक्रोबायोलॉजिक टेस्ट के जरिए पेशाब के सैंपल में जांचा जाता था। ये बिल्कुल सटीक होता था पर इसमें समय बहुत लगता था। कई बार इस संक्रमण का पता जल्दी नहीं लग पाता है, ऐसे में मरीज को ढेरों एंटीबायोटिक्स खानी पड़ती हैं। इस वजह से बैक्टीरिया आगे दिए जाने वाले उपचार के लिए रेजिस्टेंस पैदा कर लेता है।

इस टेस्ट में पेशाब को एक रिज्ड प्लास्टिक माइक्रो कैपिलरी स्ट्रिप जिसमें स्थिर एंटीबॉडी रहते हैं की मदद से ई. कोलाई बैक्टीरिया का पता लगाया जाता है। इसके बाद इसमें एक इन्जाइम मिलाई जाती है, जिसके बाद संक्रमण की पहचान कैमरा कर लेता है।

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ये एक बहुत ही आसान प्रक्रिया है। आसानी से कोई भी इस्तेमाल कर सकता है। इससे अगला कदम क्लीनिकल ट्राएल है, जिसके लिए कमर्शियल पार्टनरों की जरूरत पड़ती है।

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