मेरे जीवन में दो ही चीजें हैं, प्यार...प्यार...प्यार या मार...मार...मार...। यह फिल्मी डायलॉग सुनने में भले ही अच्छा लगता हो। भले ही इससे हीरो की न डरने वाली और धाकड़ तस्वीर झलकती हो, लेकिन ऐसा बेखौफ होना जीवन को खतरे में डाल सकता है। नहीं...नहीं, हम बात लड़ाई-झगड़े की कतई नहीं कर रहे, यहां तो बात हो रही है एक वायरस की, जो प्राणियों को बेखौफ बना देता है। अब आप सोच रहे होंगे ये तो अच्छा वायरस है, हम इसे खराब क्यों कह रहे हैं... नीचे पूरी खबर पढ़ेंगे तो खुद ही समझ जाएंगे।

दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे हैं जो अपने डर पर विजय हासिल कर पाते हैं। डर सबको लगता है। किसी को मौत से, तो किसी को अंधेरे से, किसी को जानवरों से तो किसी को छोटी सी सुई से। एक डरपोक को खुद को नुकसान पहुंचाने वाली हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीज से डर लगता है। ऐसे में उसे कमजोर मान लिया जाता है। क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा वायरस भी है जो दिमाग पर ऐसा असर करता है कि डरने वाले एहसास को पैदा करने वाली नसें सुन्न हो जाती हैं।

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इस वायरस का अटैक मतलब, आपका खौफ स्थायी छुट्टी पर चला जाएगा। न अंधेरे से डर, ना चाकू से और न ही सामने से तेजी से आ रही गाड़ी से। आपके शरीर के अंदर डर और खतरे को पहचानने वाला हर एहसास सुन्न हो जाएगा। मजेदार दिखने वाला ये वायरस आपकी कब जान ले लेगा, आपको पता भी नहीं चलेगा। सब आंखों के सामने हो रहा होगा और आप कुछ कर नहीं पाएंगे।

चूहों में ऐसे ही संक्रमण का पता किया गया है। ये संक्रमण सबसे पहले बिल्लियों में पता लगाया गया है। बिल्लियों में टोक्सोप्लाज्मा गोंडी वायरस का पता लगा है। ये वायरस सिर्फ बिल्लियों तक ही सीमित नहीं है। स्टडी से पता चला कि ये वायरस बिल्लियों के अलावा चूहों में भी फैल रहा है। इस वायरस की वजह से चूहों में डर खत्म हो जाता है। वो खतरा भांपने में अक्षम हो जाते हैं और अपने शिकारियों से भी डरना बंद कर देते हैं। इसके चलते उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है।

इंसानों में भी फैल सकता है ये वायरस
ये वायरस एक इंटेस्टाइनल कॉकिडियम है जो एक प्रोटोजोआन पैरासाइट है। ये जिंदा रहने के लिए बिल्लियों पर निर्भर करते हैं। स्टडी से पता चला है कि ये वायरस इंसानों को भी प्रभावित कर सकता है। ये इंसान के शरीर में प्रवेश कर एक गांठ बनाता है। ये गांठ शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर टॉक्सोप्लाज्मॉसिस बनाती है। इस प्रोटोजोआन पैरासाइट की वजह से इंसान में तनाव कम होने लगता है।

स्टडी के परिणाम
वैज्ञानिकों ने पाया कि वायरस की वजह से होस्ट के व्यवहार और शरीर में पैरासाइट द्वारा उत्पन्न गांठ से बदलाव आता है। इस वायरस के प्रभाव से चूहों में हर चीज के लिए उत्सुकता उत्पन्न हो जाती है। वो अपने आस-पास के वातावरण को जानने की जिज्ञासा में खतरों को चुनौती देना शुरू कर देते हैं। इसके साथ ही वो लाइव और अचानक से उत्पन्न उत्तेजनाओं में अंतर नहीं कर पाते। ये वायरस चूहों में पहले से ही खतरे को भांपने की शक्ति को कम कर देता है, जिससे वो किसी भी खतरे के सिग्नल को नहीं भांप पाते और शिकार बन जाते हैं।

टॉक्सोप्लाज्मा गोंडी
इस स्टडी पर काम कर रहे वैज्ञानिक पियरी-मेहदी हम्मौदी कहते हैं, ये वायरस चूहों में बिल्लियों के खतरे को भांपने वाली तंत्रिकाओं को प्रभावित करते हैं। टॉक्सोप्लाज्मा गोंडी एक लाचार इंटरासैलुलर सिंगल सेल एपिकॉम्पलेक्सन है, जो टॉक्सोप्लाज्मोसिस पैदा करता है। रिपोर्ट केअनुसार ये वायरस सभी गर्म खून के पशुओं में देखा गया है, पर इससे सबसे ज्यादा प्रभावित बिल्ली प्रजाति के जानवर रहते हैं। ये पैरासाइट एक बिल्ली से दूसरी में सैक्सुअल रिप्रोडक्शन के जरिए फैलता है। इस वायरस का जीवन चक्र दो तरह से विस्तारित है सैक्सुअल कॉम्पोनेंट जो केवल बिल्लियों में और एसैक्सुअल कॉम्पोनेंट बाकि गर्म खूनधारियों में फैल सकता है।

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