क्वैड मार्कर स्क्रीन टेस्ट एक ब्लड टेस्ट है जो कि गर्भावस्था के 15वें और 20वें हफ्ते के बीच में किया जाता है।

यह टेस्ट किसी महिला के शरीर में निम्न चार पदार्थों की जांच करता है -

  • इन्हिबिन ए - यह ओवरी और प्लेसेंटा द्वारा बनाया जाने वाला एक प्रोटीन है। यह मासिक धर्म चक्र को नियंत्रित रखने में और भ्रूण के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • ह्यूमन कोरिनोइक गोनाडोट्रोपीन (एचसीजी) - गर्भनाल द्वारा बनाया जाने वाला एक हार्मोन है। यह गर्भावस्था को ठीक तरह से बनाए रखने में मदद करता है।
  • अल्फा-फीटोप्रोटीन (एएफपी) - यह भ्रूण द्वारा बनाया जाने वाला एक प्रोटीन है। इस प्रोटीन का स्तर दूसरी तिमाही में बढ़ जाता है।
  • ओएस्ट्रियल (ई3) - एस्ट्रोजन भ्रूण व गर्भनाल दोनों से ही स्त्रावित किया जाता है। इस हार्मोन के स्तर से गर्भावस्था में होने वाली समस्याओं या जोखिमों का पता लगाया जाता है।

ब्लड टेस्ट के परिणाम के अलावा डॉक्टर गर्भवती महिला की उम्र जैसे घटकों को भी देखेंगे।

यह स्क्रीनिंग निम्न स्थितियों का पता लगाने के लिए की जाती है -

  • भ्रूण के स्पाइनल कॉर्ड, मस्तिष्क व केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (न्यूरल ट्यूब) के अन्य तंत्रिका ऊत्तकों के विकास में आ रही समस्याएं। न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट हज़ार में से एक या दो शिशुओं को हो सकती है और क्वैड मार्कर टेस्ट 75 प्रतिशत तक न्यूरल ट्यूब के विकारों का पता लगा सकता है।
  • आनुवंशिक विकार जैसे डाउन सिंड्रोम जो कि 720 शिशुओं में से एक में देखा जाता है। क्वैड मार्कर स्क्रीनिंग 35 वर्ष से कम उम्र की गर्भवती महिलाओं के शिशुओं में 75 प्रतिशत तक इस रोग का पता लगा सकता है। इसके अलावा 85 से 90 प्रतिशत तक 35 वर्ष से अधिक उम्र की गर्भवती महिलाओं में इसका पता लगाया जा सकता है।

क्वैड मार्कर टेस्ट परीक्षण के रूप में नहीं किया जाता है, बल्कि यह जन्मजात विकार होने का एक अनुमान दे देता है।

  1. क्वैड मार्कर स्क्रीन टेस्ट क्यों किया जाता है - Why Quadruple (Quad) Marker Screen is done in Hindi
  2. क्वैड मार्कर स्क्रीन टेस्ट से पहले - Before Quadruple (Quad) Marker Screen in Hindi
  3. क्वैड मार्कर स्क्रीन टेस्ट के दौरान - During Quadruple (Quad) Marker Screen in Hindi
  4. क्वैड मार्कर स्क्रीन टेस्ट के परिणाम का क्या मतलब है - What does Quadruple (Quad) Marker Screen result mean in Hindi

क्वैड मार्कर स्क्रीन टेस्ट भ्रूण में निम्न विकारों की जांच करने के लिए किया जाता है -

  • डाउन सिंड्रोम - इसे ट्राइसोमी 21 भी कहा जाता है / यह एक क्रोमोसोनल विकार है। इससे विकास में देरी, स्थायी बुद्धि संबंधी समस्या और कभी-कभी स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं।
  • ट्राइसोमी 18 - आमतौर पर यह विकार एक वर्ष की उम्र तक गंभीर होता है। यह एक क्रोमोसोनल विकार है, जिसके कारण शरीर की बनावट प्रभावित हो सकती है और विकास में गंभीर रूप से देरी हो सकती है।
  • स्पाइना बाइफिडा - स्पाइना बाइफिडा स्पाइनल कॉर्ड और स्पाइनल बोन का एक जन्मजात विकार है जो कि असामान्य विकास या फिर न्यूरल ट्यूब्स के बंद होने के कारण होता है।
  • एब्डोमिनल वॉल डिफेक्ट्स - इस जन्मजात विकार में, पेट के अंगों जैसे छोटी आंत नाभी के पास से निकलते हैं।

सभी गर्भवती महिलाओं की क्वैड मार्कर स्क्रीनिंग की जानी चाहिए, लेकिन ज्यादातर इसकी सलाह निम्न मामलों में दी जाती है -

  • उम्र 35 वर्ष या उससे अधिक होना
  • परिवार में लोगों को जन्मजात विकार होना
  • अत्यधिक रेडिएशन के संपर्क में आना
  • डायबिटीज होना या इंसुलिन का प्रयोग किया जाना
  • हानिकारक दवाओं या ड्रग्स का गर्भावस्था के दौरान प्रयोग
  • गर्भावस्था के दौरान वायरल संक्रमण होना

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क्वैड मार्कर टेस्ट आमतौर पर गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में स्क्रीनिंग के लिए किया जाता है। यदि पहली तिमाही के लिए कोई स्क्रीनिंग टेस्ट मौजूद ना हो या फिर प्री नेटल केयर दूसरी तिमाही में शुरू की जाए तो यह टेस्ट किया जाता है। डाउन सिंड्रोम के पता लगाने की संभावना बढ़ाने के लिए डॉक्टर पहली तिमाही में किए गए स्क्रीनिंग टेस्ट के परिणामों को क्वैड मार्कर टेस्ट के साथ जोड़कर रिजल्ट का पता लगाते हैं।

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इस टेस्ट के लिए किसी भी विशेष तैयारी की जरूरत नहीं है। आपको इस टेस्ट से पहले भूखे रहने को नहीं कहा जाएगा। डॉक्टर आपको टेस्ट से पहले जेनेटिक काउंसलर से मिलने को कह सकते हैं या फिर यह प्री नेटल मीटिंग का एक भाग भी हो सकता है।

क्वैड मार्कर स्क्रीनिंग टेस्ट एक ब्लड टेस्ट है। बांह की नस में सुई लगाकर ब्लड सैंपल ले लिया जाएगा, यह निम्न प्रक्रिया द्वारा किया जाएगा -

  • टेक्नीशियन आपकी ऊपरी बांह में एक टाइट बैंड बांधेंगे, जिसे टूनिकेट कहा जाता है।
  • इसके बाद एंटीसेप्टिक लगाया जाता है।
  • नस में सुई लगाकर एक ब्लड सैंपल ले लिया जाएगा। सुई के लगने से आपको चुभन महसूस हो सकती है।
  • एक बार सैंपल मिल जाने पर टूनिकेट और सुई को निकाल दिया जाता है।
  • टेक्नीशियन सैंपल को एक लेबल लगी बोतल में डाल कर लैब में टेस्टिंग के लिए भेज देते हैं।

सुई लगी जगह पर नील भी पड़ सकता है और यह कुछ दिनों में ठीक हो जाएगा। ब्लड सैंपल ले लेने के बाद आपको चक्कर आ सकता है।

इस स्क्रीनिंग में मिसकैरेज या प्रेगनेंसी में जोखिम जैसी कोई समस्या नहीं है। हालांकि, परिणामों के बारे में सोचते हुए आपको थोड़ी चिंता हो सकती है।

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सामान्य परिणाम -

यदि इन्हिबिन ए, एचसीजी, एएफपी और इ3 के स्तर सामान्य हैं, इसका मतलब है कि आपकी गर्भावस्था और आपका शिशु ठीक हैं। इस स्क्रीनिंग से 98 प्रतिशत मामलों में शिशु के स्वास्थ्य और बिना किसी जटिलता के जन्म का पता लगाया जा सकता है। हालांकि, कोई भी टेस्ट यह सुनिश्चित नहीं करता है कि आपकी गर्भावस्था में कोई जटिलता नहीं होगी।

असामान्य परिणाम -

यदि आपके टेस्ट के परिणामों में  इन्हिबिन ए व एचसीजी के स्तर अधिक हैं और एएफपी व ई3 के स्तर कम है तो यह निम्न की तरफ संकेत करती है -

  • डाउन सिंड्रोम
  • ट्राइसोमी 18

यदि आपका एएफपी का स्तर अधिक है तो ऐसा भ्रूण के साथ किसी समस्या के कारण हो सकता है। इन समस्याओं में निम्न शामिल हैं -

  • भ्रूण की मृत्यु (जो कि आमतौर पर मिसकैरेज में होता है)
  • स्पाइना बाइफिडा
  • टर्नर सिंड्रोम (आनुवंशिक विकार)
  • खोपड़ी और मस्तिष्क के किसी एक भाग का न होना (एन्सेफली)
  • टेट्रालॉगी ऑफ फॉलोट (हृदय का विकार)
  • शिशु के आंत या आसपास के अंगों में विकार (जैसे ड्यूडेनल अट्रेसिया)

एएफपी की अधिक मात्रा का मतलब यह भी हो सकता है कि आपके गर्भ में एक से ज्यादा शिशु हैं।

यह स्क्रीनिंग टेस्ट शिशु में सम्पूर्ण जन्मजात विकारों के होने की आशंका के बारे में बताता है। बढ़ी हुई आशंका (पॉजिटिव रिजल्ट) का मतलब यह नहीं है कि आप इनमें से किसी भी स्थिति से ग्रस्त हैं। वहीं कम आशंका या कम खतरे का मतलब यह नहीं है कि शिशु इनमें से किसी भी असामान्य स्थिति के साथ पैदा होगा। स्क्रीनिंग टेस्ट के परिणामों के साथ-साथ आपकी उम्र, डिलीवरी का अनुमानित समय भी शिशु में जन्मजात विकार का पता लगाने में मदद करेंगे।

कुछ अन्य घटक जो कि स्क्रीनिंग के परिणाम पर प्रभाव डालते हैं, निम्न हैं -

  • माता का वजन
  • माता की जातीयता
  • गर्भावस्था की अवधि के बारे में ठीक तरह जानकारी न होना
  • एक से ज्यादा बच्चे गर्भ में होना
  • डायबिटीज
  • गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान
  • इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ)

यह टेस्ट 80 प्रतिशत तक उन महिलाओं में सटीक परिणामों का पता लगा लेता है, जिनके शिशु को डाउन सिंड्रोम होता है। हालांकि, पांच प्रतिशत तक मामलों में इसके परिणाम गलत तरह से पॉजिटिव आ सकते हैं। इसका मतलब है कि परिणाम पॉजिटिव हैं, लेकिन शिशु को डाउन सिंड्रोम नहीं है।

यदि आपके परिणाम पॉजिटिव आए हैं तो आपसे निम्न टेस्ट करवाने को कहा जा सकता है -

  • टार्गेटेड अल्ट्रासाउंड
  • कोरिनोइक विल्लस सैंपलिंग
  • प्री नेटल सेल फ्री डीएनए स्क्रीनिंग
  • एम्नियोसेंटेसिस

जेनेटिक कॉउंसलर या डॉक्टर से अपने परिणामों से संबंधी बातचीत करें, जिससे आपको उन परिणामों की सही जानकारी व गर्भावस्था पर पड़ने वाले उसके प्रभावों को जानने में मदद मिलेगी।

संदर्भ

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