अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना और रिसर्च कंपनी ट्रांसलेशनल जेनोमिक्स रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीजेन) ने मस्तिष्क में होने वाली क्षतियों या ब्रेन इन्जरी से जुड़े ऐसे मजूबत संकेतकों का पता लगाया है, जिनसे दिमागी चोट से पीड़ित लाखों लोगों के इलाज में काफी मदद मिल सकती है। इन वैज्ञानिकों ने प्रोटियोमिक्स और मेटाबोलोमिक विश्लेषण की मदद से इन बायोमार्कर्स का पता लगाया है। इस महत्वपूर्ण खोज से जुड़ा अध्ययन 'नेचर जर्नल: साइंटिफिक रिपोर्ट्स' में प्रकाशित हुआ है।

इस अध्ययन के उद्देश्यों में ब्रेन इन्जरी के एक इलाज आरआईसी (रिमोट इस्केमिक कंडीशनिंग) के प्रभाव को भी दिखाना था। क्षतिग्रस्त मस्तिष्क के इलाज में इस्तेमाल होने वाले इस ट्रीटमेंट में हाथ या पैर के खून के बहाव को एक डिवाइस (टूर्निकेट) से बाधित किया जाता है। ब्लड के बहाव को दबाकर यह डिवाइस फ्लो को सीमित करने का काम करती है। ब्लड फ्लो के जमा होने के बाद उसे फिर रिलीज किया जाता है।

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वैज्ञानिकों को लगता है कि इलाज के इस तरीके से रक्त प्रवाह में मॉलिक्यूल्स को सर्कुलेट कर मस्तिष्क क्षति को कम या ठीक किया जा सकता है। इस बारे में शोध में शामिल शोधकर्ता और टीजेन कंपनी में ट्रांसलेशनल मास स्पेक्ट्रोमेट्री के निदेशक डॉ. पैट्रिक पिरोट का कहना है, 'ब्लड फ्लो को वैकल्पिक रूप से रोकने और रिलीज करने पर उसमें मॉलिक्यूल्स रिलीज होते हैं, जिनसे (मस्तिष्क पर) न्यूरो-प्रोटेक्टिव प्रभाव पड़ता है।'

शोध के लिए चूहों के मॉडल का इस्तेमाल करते हुए वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक स्पेक्ट्रोमेट्री तकनीक से प्रोटीन और मेटाबोलाइट का विश्लेषण कर ऐसे बायोमार्कर की पहचान की, जिनसे मस्तिष्क क्षति के इलाज में आरआईसी के प्रभाव का पता चला है। वहीं, कुछ अन्य अतिरिक्त बायोमार्कर्स की मदद से ब्रेन इन्जरी की मौजूदगी का भी पता लगाया जा सकता है। इस अध्ययन में डॉ. पिरोटे की टीम के साथ काम कर रहीं एक सदस्य डॉ. ख्याति पाठक का कहना है, 'हमने जिन संकेतकों की खोज की है वे हमें यह बताने में मदद करते हैं कि इन्जरी कितनी ज्यादा है और आरआईसी की मदद से उससे कैसे रिकवर हुआ जा सकता है।'

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शोधकर्ताओं का कहना है कि नए बायोमार्कर्स ट्रॉमैटिक ब्रेन इन्जरी (टीबीआई) की पहचान करने में मॉलिक्यूलर लेवल की ज्यादा सही जानकारी दे सकते हैं। अध्ययन में शामिल यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के ट्रांसलेशनल न्यूरोट्रॉमा रिसर्च प्रोग्राम के निदेशक डॉ. जॉनथन लिफ्शिट्ज कहते हैं, 'हल्का टीबीआई होने पर (पीड़ित की) अस्पताल में भर्ती नहीं हो पाती या इमरजेंसी में अस्पताल में नहीं ले जाया जाता। खेलकूद, मनोरंजन, व्यावसायिक जोखिम, सैन्य सेवा और घरेलू हिंसा के चलते टीबीआई की समस्या होने पर लाखों लोगों के पास कोई हेल्थकेयर सुविधा नहीं है।'

जॉनथन के मुताबिक, नए बायोमार्कर्स के जरिये आरआईसी से इसका इलाज किया जा सकता है। कई प्रकार के अन्य मेडिकल इमरजेंसी- जैसे कार्डियक अरेस्ट, ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन और फेफड़ों की क्षति - हालात में इस इलाज ने काम किया है। शोध से जुड़ी एक और शोधकर्ता और लेखक डॉ. मेह सबर कहती हैं, 'आरआईसी के बारे में सिखाना आसान है। ब्रेन इन्जरी में इसका व्यावहारिक इस्तेमाल सहज है, जिसे अस्पताल से बाहर अंजाम दिया जा सकता है। यह तुरंत इलाज देने में मददगार है, जिससे मस्तिष्क क्षति के चलते होने वाली विकृति की संभावना कम होती है।'

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