अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि भारत में बन रही कोविड-1 वैक्सीनों से काफी उम्मीदें लगाई जा सकती हैं। उन्होंने इसके कई कारण बताए हैं। समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में एम्स निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा कि भारतीय कोविड-19 वैक्सीनों के सुरक्षित होने के संकेत मिले हैं और उनमें वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी पैदा करने की क्षमता भी दिखी है। साथ ही, इन वैक्सीनों को मौजूदा स्टोरेज इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ ही इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत में बन रही कोविड-19 वैक्सीन इस मामले में अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर द्वारा निर्मित कोरोना वैक्सीन से बेहतर हैं, जिसे स्टोरेज के लिए विशेष रूप से कम तापमान में स्टोर करने की जरूरत है। वहीं भारत में बन रही वैक्सीन को मौजूदा कोल्ड स्टोरेज के साथ ही रखकर इस्तेमाल किया ज सकता है।

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एजेंसी से बातचीत में डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा, 'भारत में बन रही वैक्सीनों से काफी उम्मीदे हैं और इसके दो-तीन बड़े कारण हैं। पहला, इनके सुरक्षित होने के संकेत काफी ज्यादा अच्छे हैं और इनमें इम्यूनोजेनेसिटी भी दिखाई दी है। एक वैक्सीन को तीसरे चरण के ट्रायल भी चल रहे हैं। इसमें थोड़ा समय लगेगा, लेकिन मुझे उम्मीद है कि हमारे पास अच्छी मात्रा में डेटा उपलब्ध होगा, क्योंकि (इस समय) इस पर कई मल्टी-सेंट्रिक अध्ययन चल रहे हैं। लिहाजा हम जल्दी ही कुछ अंतरिम विश्लेषण कर लेंगे, यह बताने के लिए तीसरे चरण के ट्रायल में इस वैक्सीन ने (कोरोना संक्रमण के खिलाफ) अच्छी क्षमता दिखाई है।'

डॉ. गुलेरिया ने ये बातें ऐसे समय में कही हैं, जब हाल ही में फाइजर कंपनी ने दावा किया है कि उसकी कोविड-19 वैक्सीन कोरोना वायरस के खिलाफ 90 प्रतिशत से ज्यादा प्रभावी है। कंपनी ने तीसरे चरण के प्रारंभिक परिणामों के आधार पर यह बात कही थी। इस पर एम्स निदेशक का कहना है, 'फाइजर की सफलता अन्य वैक्सीन शोधकर्ताओं के लिए प्रोत्साहित करने वाली है। इससे यह भी पता चलता है कि वैक्सीनों के जरिये अच्छी इम्यूनिटी मिल सकती है। लिहाजा (उम्मीद है कि) बाकी टीके भी अच्छा करेंगे। यह वैक्सीन निर्माताओं के लिए बड़ी खबर है। अब हम 90 प्रतिशत एफिकेसी की उम्मीद कर सकते हैं।'

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वहीं, जहां तक भारतीय वैक्सीनों की बात है तो उन पर टिप्पणी करते हुए गुलेरिया ने बताया, 'भारतीय वैक्सीन के साथ एटवांटेज यह है कि इसे स्टोर करने के लिए काफी कम तापमान की जरूरत है। फाइजर की वैक्सीन को माइनस 70 डिग्री सेल्सियस पर रखने की जरूरत पड़ती है, इसलिए निम्न और मध्यम आय वाले देशों में इससे लोगों को वैक्सीन करना काफी मुश्किल होगा। क्योंकि 70 डिग्री के तापमान में रखते हुए वैक्सीन को ट्रांसपोर्ट करने के लिए बहुत बड़े निवेश की जरूरत होगी। साथ ही ऐसा करने के लिए बड़े स्तर पर योजना बनाने की भी जरूरत होगी, क्योंकि ज्यादातर वैक्सीन कम तापमान पर नहीं रखी जातीं।'

एम्स निदेशक ने बताया कि भारतीय कोविड वैक्सीनों को 20 डिग्री सेल्सियस पर रखा जा सकता है और यह सुविधा ज्यादातर वैक्सीन के लिए उपलब्ध है। ऐसा में इस मामले में भारत को काफी ज्यादा निवेश करने की जरूरत नहीं होगी। डॉ. गुलेरिया ने कहा, 'अगर हमें माइनस 70 डिग्री में वैक्सीन इस्तेमाल करने की जरूरत होती तो हमें एक नया कोल्ड चेन डेवलेपमेंट करना पड़ता। मुझे नहीं लगता है कि ऐसा कई देशों में होने वाला है।' इसके भारत में बन रही कोविड वैक्सीन में कोरोना संक्रमण के खिलाफ क्षमता होने से जुड़े सवाल पर डॉ. गुलेरिया ने कहा, 'हम ज्यादा से ज्यादा एफिकेसी हासिल करना चाहेंगे। डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि अगर किसी वैक्सीन में 50 प्रतिशत क्षमता भी है तो वह पर्याप्त है। हम 80 से 90 प्रतिशत तक की क्षमता हासिल करना चाहते हैं। उम्मीद करते हैं कि हम ऐसा कर पाएंगे।'

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें केवल 20 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर हो सकती हैं भारत में बन रही कोविड-19 वैक्सीन, एम्स निदेशक डॉ. गुलेरिया ने बताए अन्य एडवांटेज है

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