कोविड-19 बीमारी के इलाज और रोकथाम के लिए अब विशेष प्रकार के एंटीबॉडी से बनाए गए कॉकटेल (मिश्रण) का इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसी रिपोर्टें हैं कि अमेरिकी दवा कंपनी रीजेनेरॉन फार्मास्यूटिकल्स के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए गए इस एंटीबॉडी कॉकटेल के अंतिम चरण के ट्रायल शुरू हो चुके हैं। कंपनी ने एक स्टेटमेंट जारी कर इसकी जानकारी दी है।

दरअसल, कोविड-19 से संक्रमित होने पर शरीर में अंग्रेजी अक्षर 'वाई' (Y) के आकार के मॉलिक्यूल्स पैदा होते हैं, जिन्हें हम एंटीबॉडी के नाम से जानते हैं। ये एंटीबॉडीज वायरस को खत्म कर देते हैं या अवरोधक बनकर स्वस्थ कोशिकाओं को संक्रमित करने की उसकी क्षमता कम कर देते हैं। इन एंटीबॉडीज को कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद स्वस्थ हो चुके मरीजों के शरीर से निकाला जा सकता है। इसके बाद उन्हें अन्य कोविड-19 मरीजों के शरीर में डाला जाता है ताकि उन्हें वायरस के संक्रमण से बचाया जा सके। इस प्रक्रिया को कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी कहा जाता है।

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लेकिन प्लाज्मा थेरेपी की अपनी सीमाएं हैं। इसके कई कारण हैं। अलग-अलग मरीजों के शरीर से लिए गए प्लाज्मा में एंटीबॉडीज भी अलग-अलग मिश्रण में पाए जाते हैं। सभी के एंटीबॉडी कोरोना वायरस को प्रभावी रूप से नहीं रोक पाते। ऐसे में जो एंटीबॉडी वायरस को रोकने या खत्म करने में सक्षम होते हैं, उनकी मोनोक्लोनिंग कर ड्रग विशेषज्ञ कई रोगाणुओं को खत्म करने की कोशिश में लगे हैं। इनमें नया कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 भी शामिल है।

खबर के मुताबिक, मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज की मदद से तैयार की गई एक ड्रग थेरेपी 'आरईजीएन-सीओवी2' अपने ट्रायल के तीसरे चरण में पहुंच गई है। इसके तहत अमेरिका में सौ अलग-अलग जगहों पर 2,000 कोविड-19 मरीजों को यह मोनोक्लोनल ड्रग दिया जाएगा। वहीं, इसके प्रभाव को समझने के लिए कुछ मरीजों को प्लसीबो ड्रग भी दिया जाएगा। परिणामों के आधार पर यह तय किया जाएगा कि ड्रग कोरोना वायरस के मरीजों के लिए कारगर और सुरक्षित है अथवा नहीं। बता दें कि रीजेनेरॉन फार्मास्यूटिकल्स के साथ अमेरिका का प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शियस डिसीज भी इस ट्रायल में सहयोग कर रहा है।

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कैसे काम करती है थेरेपी?
आरईजीएन-सीओवी2 कॉकेटल में दो एंटीबॉडी मिलाए गए हैं, जो कोरोना वायरस को चारों तरफ से घेरकर उसे खत्म करने में मदद करते हैं या उसकी क्षमता में अवरोधक बनने का काम करते हैं। कंपनी ने बताया है कि ये दोनों एंटीबॉडी वायरस के स्पाइक प्रोटीन को बांध देते हैं, जिससे वायरस कोशिकाओं के अंदर घुस नहीं पाता। इस तरह कोशिकाओं को संक्रमित करने की उसकी क्षमता में अवरोध उत्पन्न होता है। कंपनी का कहना है कि उसके वैज्ञानिकों ने इंसानों में विकसित कोविड-19 एंटीबॉडी को इकट्ठा कर और उन्हें चूहों पर आजमाने के बाद यह एंटीबॉडी कॉकटेल तैयार किया है। इसके लिए उन्होंने चूहों के इम्यून सिस्टम में ऐसे बदलाव कि वह मानव प्रतिरक्षा प्रणाली की तरह काम करें।

बताया गया है कि तीसरे ट्रायल के तहत आरईजीएन-सीओवी2 कॉकटेल का कोविड-19 को रोकने वाली थेरेपी के रूप में आंकलन किए जाने के साथ-साथ यह भी देखा जाएगा कि यह इस बीमारी का इलाज भी कर सकती है अथवा नहीं। इसके लिए कॉकटेल को अस्पतालों में भर्ती 850 कोविड मरीजों और नॉन-हॉस्पिटलाइज्ड 1,050 मरीजों पर आजमाया जाएगा। ट्रायल के बाद अगर अमेरिकी ड्रग एजेंसी एफडीए ने दवा को मंजूरी दी तो चौथे ट्रायल के तहत इसे हजारों मरीजों को देकर इसके अल्प और दीर्घकालिक प्रभावों की मॉनिटरिंग की जाएगी।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज की मदद से नए कोरोना वायरस समेत कई रोगाणुओं को खत्म करने की कोशिश में लगे वैज्ञानिक है

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