कोविड-19 की एक प्रभावी वैक्सीन विकसित होने में अभी और कितना समय लगेगा ये कहा नहीं जा सकता। लेकिन तब तक इस बीमारी के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी को एक विकल्प के तौर पर उपयोग में लाया जा रहा है। भारत में प्लाज्मा के जरिए कोरोना के कुछ मरीज ठीक हुए भी हैं। लेकिन एक ताजा रिसर्च के जरिए शोधकर्ताओं ने प्लाज्मा थेरेपी के इस्तेमाल से सीमित नतीजे मिलने की बात कही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में आयोजित एक ट्रायल में गंभीर बीमारी की प्रगति या मृत्यु को कम करने में प्लाज्मा थेरेपी का सीमित लाभ दिखा है।

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कैसे की गई थी रिसर्च?
चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी पत्रिका ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने प्लाज्मा थेरेपी के लाभकारी प्रभाव को जानने की कोशिश की। इसके लिए वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में कोविड-19 बीमारी के मध्यम लक्षण वाले 464 वयस्कों को शामिल किया। रिपोर्ट के अनुसार इन सभी मरीजों को अप्रैल और जुलाई के बीच भारत के अस्पतालों में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान मानक देखभाल के साथ-साथ 239 वयस्क रोगियों को 24 घंटे में दो बार कॉन्वल्सेंट प्लाज्मा का ट्रांसफ्यूजन (रक्तधान) दिया गया, जबकि इसकी तुलना में जिन रोगियों की स्थिति ठीक (नियंत्रित समूह) हो रही थी उस समूह में शामिल 229 रोगियों को केवल मानक देखभाल से उपचार दिया गया।

एक महीने बाद, नियंत्रण समूह के 41 रोगियों (18 प्रतिशत) की तुलना में प्लाज्मा थेरेपी पाने वाले 44 मरीज (19 प्रतिशत) की बीमारी गंभीर हो चुकी थी या फिर किसी भी कारण उनकी मृत्यु हो चुकी थी। इस अध्ययन में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी, तमिलनाडु के शोधकर्ता भी शामिल थे। इनका कहना है कि प्लाज्मा थेरेपी के जरिए लक्षणों को (सांस लेने में तकलीफ और थकान) कम करने में सात दिनों का वक्त लगता है। बीएमजे पत्रिका के तहत शोधकर्ताओं ने बताया, "कॉन्वल्सेंट प्लाज्मा से कोविड-19 के गंभीर मरीजों में सुधार और सभी कारणों से होने वाली मृत्यु दर में कमी का कोई लिंक नहीं मिला।" उनका कहना है कि इस ट्रायल में उच्च सामान्यता और सीमित प्रयोगशाला क्षमता के साथ वास्तविक जीवन से जुड़ी परिस्थितियों में कॉन्वल्सेंट प्लाज्मा के उपयोग का अनुमान लगाया गया है।"

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24 घंटे में दो बार दिया गया प्लाज्मा 
शोधकर्ताओं का कहना है कि प्लाज्मा डोनेट करने वालों और इसे दिए जाने वाले व्यक्ति में एंटीबॉडी के एक पूर्व आंकलन से कोविड-19 के प्रबंधन में कॉन्वल्सेंट प्लाज्मा की भूमिका और स्पष्ट हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार अध्ययन में शामिल मरीजों की उम्र कम से कम 18 वर्ष की थी, जिनमें आरटी-पीसीआर के जरिए सार्स-सीओवी-2 वायरस की पुष्टि हुई। इलाज के दौरान मरीजों को 24 घंटे में दो बार 200 मिलीलीटर प्लाज्मा चढ़ाया गया। इसके साथ ही उनकी मानक स्तर की देखभाल भी की गई।

शोधकर्ताओं ने बताया कि इससे पहले किए गए अवलोकन संबंधी अध्ययनों में प्लाज्मा के क्लीनिकल ​​लाभों का पता चला था, लेकिन परीक्षण जल्दी बंद कर दिए गए। इससे ये अध्ययन कोविड-19 के रोगियों में प्लाज्मा उपचार से किसी भी मृत्यु दर को रोकने से जुड़े लाभ का पता लगाने में बेनतीजा साबित हुए। लेकिन नए अध्ययन से पता चलता है कि सीमित प्रयोगशाला क्षमता के साथ प्लाज्मा मृत्यु दर को कम नहीं करता है या मध्यम कोविड-19 के लक्षणों के साथ अस्पताल में भर्ती रोगियों में गंभीरता को कम नहीं करता। हालांकि, प्लाज्मा थेरेपी से उपचार के सात दिन बाद सांस लेने में तकलीफ और थकान में कमी हो सकती है, लेकिन मध्यम लक्षण वाले रोगी में प्लाज्मा थेरेपी से सीमित प्रभाव ही दिखाई देते हैं।

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