कोविड-19 को लेकर चीन में हुए एक शोध से संकेत मिला है कि इस बीमारी से ठीक होने के बाद जिन मरीजों में कोरोना वायरस फिर से सक्रिय पाया गया, वे इस स्थिति में अन्य लोगों को तुरंत संक्रमित नहीं करते। हाल के दिनों में सामने आए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 की इस विशेषता ने दुनियाभर के मेडिकल विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी थी। अब इस शोध में पता चला है कि किसी व्यक्ति में सार्स-सीओवी-2 का संक्रमण एक बार खत्म होने के बाद फिर से सक्रिय हो सकता है, लेकिन दूसरी बार वह तुरंत अन्य लोगों तक ट्रांसमिट नहीं होता। गौरतलब है कि दक्षिण कोरिया में ऐसे 382 मामलों की पुष्टि हो चुकी है, जिनमें कोविड-19 से रिकवर करार दिए गए मरीजों में कोरोना वायरस फिर से सक्रिय हो गया था। भारत में भी ऐसा मामला देखने में आ चुका है। यहां एक 76 वर्षीय व्यक्ति अस्पताल से डिस्चार्ज होने के 11 दिनों बाद फिर से कोरोना पॉजिटिव पाया गया था। गौर करने वाली बात यह है कि उसके दूसरी बार संक्रमित पाए जाने के बाद जब उसके परिजनों का टेस्ट किया गया तो उनकी टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव निकली।

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क्या कहता है शोध?
चीन स्थित शेन्जान थर्ड पीपल्स हॉस्पिटल की डायग्नॉसिस एंड ट्रीटमेंट ऑफ इन्फेक्शियस डिसीज रिसर्च लैबोरेटरी के शोधकर्ताओं ने वायरस के फिर से फैलने के संबंध में लैब पैरामीटर्स और ट्रीटमेंट का विश्लेषण किया। इसके निष्कर्ष के आधार पर उन्होंने सुझाव दिया है कि किसी मरीज को कोविड-19 से 'रिकवर' करार दिए जाने से पहले और जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए। शोध में वैज्ञानिकों ने कहा है कि इलाज और रिकवरी के दौरान संभव है कि मरीज को कोरोना-मुक्त करार दिए जाने के लिए 24 घंटों में दो आरटी-पीसीआर टेस्ट काफी न हों। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसा करने से पहले दोनों टेस्ट के बीच की अवधि को 24 के बजाय 48 घंटे करने की जरूरत है। वहीं, चीन के ही एक अन्य शोधकर्ता समूह ने मरीजों को डिस्चार्ज किए जाने के बाद उनकी और सख्ती से निगरानी किए जाने का सुझाव दिया है। इन वैज्ञानिकों के मुताबिक, रिकवर होने के बाद कम से कम दो हफ्तों तक मरीजों पर नजर रखी जानी चाहिए।

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मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, 172 मरीजों पर किए गए इस शोध को 'इन्फेक्शियस डिसीसिज सोसायटी ऑफ अमेरिका' की तरफ से ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने प्रकाशित किया है। शोध में पता चला कि 172 मरीजों में से 25 मरीजों को डिस्चार्ज किए जाने के दस दिन बाद फिर से पॉजिटिव पाया गया था। लेकिन पहले पॉजिटिव पाए जाते समय इन मरीजों में से 68 प्रतिशत में बुखार और 60 प्रतिशत में कफ की समस्या थी, जबकि दोबारा अस्पताल में भर्ती होने के बाद केवल 32 प्रतिशत मरीजों में हल्के कफ की समस्या पाई गई। शोध में एक बात साफ तौर पर निकल कर आई कि दोबारा संक्रमित पाए गए इन 25 मरीजों में से किसी के भी जरिये वायरस अन्य लोगों में नहीं फैला था। शोध में शामिल वैज्ञानिकों में से एक डॉ. यानचाओ पैन ने कहा है, 'इन मरीजों और इनके संपर्क में आए लोगों के बीच सार्स-सीओवी-2 का ट्रांसमिशन नहीं हुआ।'

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क्या कहते विशेषज्ञ?
कोविड-19 के मरीजों में सार्स-सीओवी-2 के फिर से सक्रिय होने को लेकर कई विशेषज्ञों ने राय रखी है। इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन की महामारी विशेषज्ञ मारिया वैन केरखोव ने कुछ दिन पहले बीबीसी से बातचीत में कहा था, 'फेफड़ों जब संक्रमण से उबर रहे होते हैं तो मरे हुए सेल्स को अपने से अलग कर देते हैं। दरअसल, फेफड़ों के ही छोटे-छोटे अंश टेस्ट में पॉजिटिव निकल रहे हैं। ये संक्रामक विषाणु नहीं हैं। (इसलिए) यह वायरस का रीऐक्टिवेशन नहीं है, बल्कि ठीक होने की प्रक्रिया है।' 

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