कोविड-19 महामारी जब चीन की सीमा से बाहर जाकर अन्य देशों में फैलना शुरू हुई थी, उस समय हुए एक अध्ययन से पता चला था कि स्टेरॉयड के इस्तेमाल से कोरोना वायरस से मारे गए कई लोगों को बचाया जा सकता है। इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ हडर्सफील्ड के शोधकर्ताओं डॉ. हामिद मर्चेंट और डॉ. सैयद शहजाद हसन ने अपने नेतृत्व में हुए इस विश्लेषण आधारित अध्ययन के परिणामों के आधार पर कहा था कि डेक्सामेथासोन जैसे कॉर्टिकोस्टेरॉयड का इस्तेमाल करके कोविड-19 से जुड़े गंभीर श्वसन सिंड्रोम (एआरडीएस) के कारण हुई कई मौतों को रोका जा सकता था।

(और पढ़ें - कोविड-19: जॉनसन एंड जॉनसन 60,000 लोगों पर वैक्सीन आजमाएगी, आलोचना के बाद रूस ने भी तीसरे ट्रायल के लिए 40,000 लोगों को शामिल किया)

बीते अप्रैल महीने के मध्य में इन वैज्ञानिकों ने कोविड-19 से मारे गए कुछ मरीजों से जुड़े डेटा का विश्लेषण किया था। ये लोग उन संक्रमितों में शामिल थे, जिनका इलाज में कॉर्टिकोस्टेरॉयड का इस्तेमाल किया गया था। विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों को इस प्रकार के स्टेरॉयड दिए गए उनमें से 28 प्रतिशत की मौत हो गई थी, लेकिन जिन्हें इस तरह का इलाज नहीं दिया गया, उन मरीजों के समूहों में 69 प्रतिशत मारे गए थे। इस जानकारी को एक लंबी समीक्षा के बाद अब जाकर एक्सपर्ट रिव्यू ऑफ रेस्पिरेटरी मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

(और पढ़ें - कोविड-19: फ्रोजन फूड आइटमों में 21 दिनों तक बना रह सकता है नया कोरोना वायरस- अध्ययन)

हडर्सफील्ड के वैज्ञानिकों का यह निष्कर्ष इस मायने में काफी महत्वपूर्ण है कि उनके अध्ययन के दो महीनों बाद ऑक्सफोर्ट यूनिवर्सिटी के चर्चित 'रिकवरी' ट्रायल में भी यही बात सामने आई। परीक्षणों के परिणामों के आधार पर वैज्ञानिकों ने डेक्सामेथासोन को कोविड-19 के गंभीर मरीजों के इलाज में कारगर पाया और यूनाइटेड किंगडम की सरकार ने इस स्टेरॉयड को कोरोना वायरस के संक्रमितों को देने की मंजूरी दी। हालांकि तब तक इंग्लैंड समेत पूरे यूके में कोरोना वायरस कहर बरपा कर हजारों लोगों की मौत का कारण बन चुका था। यह बताता है कि अगर अप्रैल में ही डॉ. हामिद और डॉ. सैयद के विश्लेषण पर गौर किया गया होता तो शायद इंग्लैंड समेत पूरी दुनिया में कई जानें बचाई जा सकती थीं।

(और पढ़ें - कोविड-19 से पीड़ित बच्चों को होने वाला दुर्लभ सिंड्रोम कावासाकी नहीं है: अध्ययन)

लेकिन ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि कोविड-19 महामारी की शुरुआत में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह कह दिया था कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए स्टेरॉयड का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि डब्ल्यूएचओ की इस संबंध में दी गई चेतावनी के बावजूद दुनियाभर के मेडिकल रिसर्च संस्थानों ने आर्ड्स के लक्षणों के साथ होने वाली कोविड-19 की मृत्यु दर कम करने में स्टेरॉयड के फायदों का समर्थन किया है। इन संस्थानों में नेशनल हेल्थ कमीशन एंड स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ ट्रेडीशनल चाइनीज मेडिसिन, सर्वाइविंग सेप्सिस कैंपेन और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थान शामिल हैं। बाद में डेक्सामेथासोन के प्रभाव को स्वीकार करते हुए डब्ल्यूएचओ ने भी कहा कि यह स्टेरॉयड कोरोना वायरस की मृत्यु दर कम करने में कारगर है।

(और पढ़ें - डेक्सामेथासोन: वह दवा जिसे कोविड-19 के खिलाफ अब तक का 'सबसे बड़ा ब्रेकथ्रू' बताया गया है, जानें इसकी वजह)

क्या है डेक्सामेथासोन?
'यह एक तरह स्टेरॉयड है, जिसे 1960 से कई प्रकार की सूजन और जलन (इनफ्लेमेशन) को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। इनमें कई इनफ्लेमेटरी डिसॉर्डर और कुछ विशेष प्रकार के कैंसर रोगों में होने वाली सूजन भी शामिल हैं। यह दवा 1977 से ही डब्ल्यूएचओ की जरूरी दवाओं की सूची में अलग-अलग फॉर्म्युलेशन में शामिल है। फिलहाल यह पेटेंट (एकस्व) नहीं है और ज्यादातर देशों में आसानी से उपलब्ध है।'


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 की शुरुआत में आए इस अध्ययन के परिणामों को माना गया होता तो बच सकती थीं हजारों जानें है

ऐप पर पढ़ें