आंध्र प्रदेश के इलुरु में अज्ञात बीमारी सामने आने के मामले में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने नई संभावना जताई है। उसने कहा है कि जिस पानी से लोग बीमार पड़े, वह किसी वायरस या पेस्टिसाइड (कीटनाशक) से दूषित हो सकता है। दरअसल, विजयवाड़ा स्थित एक बड़ी निजी लैब में पीने के पानी के नमूनों में उच्च मात्रा में पेस्टिसाइड मिलने की बात सामने आई है। इसके बाद एम्स ने बयान जारी कर वायरस या पेस्टिसाइड होने की आशंका जताई है। हालांकि एम्स ने अपनी एक अलग रिपोर्ट में कहा है कि जिन लोगों में अज्ञात बीमारी के लक्षण देखे गए हैं, उनके ब्लड सैंपलों में सीसा और निकल धातु के अवशेष पाए गए हैं। इन सैंपलों की एम्स के डॉक्टरों द्वारा की गई थी। उन्होंने पीड़ितों के खून में धातु अवशेष मिलने की पुष्टि की है। इस बीच, इस घटना से जुड़े मरीजों की संख्या 550 के पार (556) पहुंच गई है। हालांकि बताया गया है कि इनमें से 458 को डिस्चार्ज कर दिया गया है। बाकी 98 मरीजों का अभी भी इलाज किया जा रहा है।

खबर के मुताबिक, मरीजों में बच्चों की संख्या अच्छी खासी है, जिनमें से 45 की आयु 12 साल से भी कम है। इन सबमें ऐंठन, मतली और बेहोशी जैसे लक्षण दिखाई दिए हैं। अभी तक दर्ज किए गए मामलों में से केवल एक में मरीज की मौत हुई है। इस मरीज की उम्र 45 वर्ष बताई गई है, जिसने बीमार होने के बाद बीती पांच दिसंबर को दम तोड़ दिया था। इलुरु स्वास्थ्य संकट का पता चलने के बाद से ही आंध्र प्रदेश और दिल्ली के डॉक्टरों के अलावा केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए मेडिकल एक्सपर्ट इस बीमारी की पहचान करने में लगे हुए हैं। लेकिन अभी तक इसका पता नहीं चल पाया है।

हालांकि बीच-बीच में ऐसी रिपोर्टें सामने आ रही हैं, जिन्हें पढ़ कर लगता है कि शायद यह मामला पानी या किसी अन्य द्रव्य में दूषित पदार्थ मिलने से जुड़ा है। एम्स की रिपोर्ट से पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से कहा गया था कि मरीजों के सैंपल में केमिकल पदार्थ होने के संकेत मिले हैं। लेकिन इन रिपोर्टों की आधिकारिक पुष्टि भी नहीं हो रही है। तमाम कारणों के चलते यह घटना मेडिकल जानकारों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है।

इस बीच, सीएम जगन मोहन रेड्डी ने अधिकारियों को इसकी जांच करने के आदेश दिए हैं कि इलाके के रहने वाले लोगों में लीड और निकल के अवशेष कैसे पहुंच गए। उन्होंने इस घटना पर विस्तृत अध्ययन करने को भी कहा है। इस बारे में आंध्र सरकार द्वारा जारी किए गए आधिकारिक बयान में, 'सीएम रेड्डी ने जनस्वास्थ्य अधिकारियों और दूसरे विभागों से यह भी कहा है कि वे मामले की गहन जांच करें और बीमारी के कारणों का पता लगाएं।'

उधर, पीड़ितों की जांच में लगे अधिकारियों ने बताया है कि उनमें बेहोशी का लक्षण केवल एक बार दिखाई दिया है। साथ ही, बीमारी से जुड़े अलग-अलग मामलों में पानी का सोर्स एक नहीं था। इसके अलावा, पीड़ितों से जुड़े परिवारों में से किसी में भी एक से ज्यादा पीड़ित सामने नहीं आए हैं। इन बातों से यह संकेत गया है कि बीमारी एक इन्सान से दूसरे इन्सान के बीच नहीं फैलती है। सोमवार को यह जरूर कहा गया था कि इलुरु में रहने वाले लोग संभवतः विशेष केमिकल पदार्थ की चपेट में आए हैं। इस पर मामले की जांच में जुटे एक अधिकारी ने भी एनडीटीवी से बातचीत में कहा है, 'हमारे शुरुआती टेस्टों में (मरीजों में) हेवी मेटल होने की बात खारिज की गई थी। ऑर्गेनोक्लोरीन से भी इस प्रकार के न्यूरोलॉजिकल लक्षण पैदा हो सकते हैं।'

दो नहरों का पानी दूषित होने की आशंका
इस बीच, ताजा मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि इलुरु में पानी की उपलब्धता मुख्यतः दो नहरों पर निर्भर है। इनमें से एक राजमुंद्री से शुरू होती है और दूसरी विजयवाड़ा से निकलती है। बाद में ये दोनों मिलती हैं। खबर के मुताबिक, आंध्र प्रदेश के किसान खेतों में जिन पेस्टिसाइड और फर्टिलाइजर का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें इन्हीं नहरों में डंप कर दिया जाता है, जबकि इनसे इलुरु के हजारों लोगों को पीने का पानी मिलता है। जानकारी मिल रही है कि सरकार के अधिकारी और मेडिकल एक्सपर्ट इन नहरों से पानी के नमूने लेकर उन्हें पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वाइरोलॉजी और दूसरी लैबों में भेजेंगे ताकि पता चला सके कि क्या लोगों के अचानक बीमार होने के पीछे इन्हीं नहरों के दूषित पानी की भूमिका है।

उधर, स्थानीय लोगों से बातचीत में पता चला है कि इलुरु के घरों में पहुंच रहे पानी के रंग में बदलाव देखा गया था और उसका स्वाद भी अलग आ रहा था। इस बारे में एम्स ने अपनी शुरुआती सैंपल टेस्टिंग रिपोर्ट में बताया है, 'कुछ लोगों ने जानकारी दी है कि घर में सप्लाई होने वाला पानी गंदा हरे रंग का हो गया था।' वहीं, विजयवाड़ा स्थित लैब ने अपनी रिपोर्ट ने बताया है कि उन्हें पानी के सैंपल में जो कीटनाशक मिले हैं, उनमें डाइक्लोरोडिफेनिलडिक्लोरोथीन भी शामिल है। यह केमिकल कंपाउंड पानी में 14.21 और 15.23 मिलीग्राम प्रति लीटर (एमजी/एल) की मात्रा में मिला है, जबकि इसकी अधिकतम सीमा 0.0001 मिलीग्राम प्रतिलीटर है। इसके अलावा, आलक्लर नामक एक हर्बिसाइड भी 10.88 एमजी/एल और मेथॉक्सीक्लोर नाम का एक पेस्टिसाइड 17.64 एमजी/एल के साथ मिला है। इनका पानी में स्वीकार्य लेवल 0.001 है।

ऐप पर पढ़ें