ह्यूमन इम्यूनोडेफिसेंसी वायरस (एचआईवी) एक गंभीर स्थिति है, जिसकी वजह से हर वर्ष कितने ही लोग मारे जाते हैं। साथ ही इस वायरस के संक्रमण से जुड़े हर साल लाखों नए मामले भी सामने आते हैं। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक एचआईवी संक्रमण के चलते बीते वर्ष लगभग हर 1.40 मिनट में एक नए संक्रमित मामले (बच्चा या 20 वर्ष से कम उम्र का युवा) का पता चला। यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि साल 2019 में एचआईवी संक्रमित बच्चों से जुड़े कुल 28 लाख (2.8 मिलियन) मामले सामने आए थे।

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बच्चों को बचाने के प्रयास कम - रिपोर्ट
यह रिपोर्ट बच्चों, किशोरों और एचआईवी से पीड़ित गर्भवती महिलाओं के लिए एक कमजोर एचआईवी प्रतिक्रिया के बारे में बताती है। साथ ही चेतावनी देती है कि एचआईवी के खिलाफ लड़ाई में बच्चों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। चूंकि बच्चों में संक्रमण की रोकथाम और बचाव के प्रयास कम हैं, इसलिए बच्चों की एक बड़ी आबादी संक्रमण की चपेट में आती है। 2019 में, दुनियाभर में आधे से थोड़े अधिक बच्चों को जीवन रक्षक उपचार (लाइफ सेविंग ट्रीटमेंट) की सुविधा मिली। जबकि माताओं (85 प्रतिशत) और एचआईवी से पीड़ित सभी वयस्कों (62 प्रतिशत) की तुलना में बच्चों के लिए किए गए ये प्रयास कम थे। लिहाजा बीते साल लगभग एक लाख, दस हजार (1,10,000) बच्चों की एड्स की बीमारी से मौत हो गई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि एचआईवी और एड्स के खिलाफ दशकों से चली आ रही लड़ाई में पहले के मुकाबले थोड़ा सुधार आया है। लेकिन बावजूद इसके दूरदराज के क्षेत्रों में बसी आबादी को संक्रमण से बचाने में एक बड़ा अंतर दिखाई देता है। विशेषकर बच्चों के साथ यह प्रयास कम है। आंकड़ों से पता चलता है कि मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में बाल चिकित्सा से जुड़ी एंटीरेट्रोवायरल ट्रीटमेंट प्रक्रिया सबसे अधिक थी, जहां 81 प्रतिशत बच्चों को उपचार मिला। इसके बाद ये आंकड़े गिरते दिखाई देते हैं, जैसे दक्षिण एशिया में 76 प्रतिशत, पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में 58 प्रतिशत, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 50 प्रतिशत है। लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में 46 प्रतिशत तो पश्चिम और मध्य अफ्रीका में यह आंकड़ा 32 प्रतिशत का है।

बड़ी संख्या में बच्चे एड्स से मर रहे हैं - यूनिसेफ
यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फोर के मुताबिक 'वैश्विक महामारी के चलते भी दुनिया एचआईवी को लेकर संघर्ष कर रही है। सैकड़ों-हजारों बच्चों को एचआईवी महामारी का कहर झेलना पड़ रहा है। वो इसलिए, क्योंकि एचआईवी संक्रमण से बचाव के लिए अब भी कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि बच्चे अब भी बड़ी संख्या में एचआईवी से संक्रमित हो रहे हैं, जिसके बाद वो एड्स से मर रहे हैं।'

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दूसरी ओर कोविड-19 महामारी ने हर जगह बच्चों, किशोरों और गर्भवती माताओं के लिए जीवन-रक्षक एचआईवी सेवाओं की पहुंच में एक बड़ा अंतर पैदा किया है। एचआईवी से ग्रसित 29 देशों को लेकर यूनिसेफ का हालिया सर्वे बताता है कि पहले की महामारी की तुलना में एक तिहाई एचआईवी से पीड़ित बच्चों, किशोरों और महिलाओं के इलाज में 10 फीसद की कमी दर्ज की गई है। अप्रैल और मई के महीनों में, आंशिक और पूरी तरह से लॉकडाउन के चलते बच्चों में एचआईवी उपचार और कुछ देशों में बच्चों में बीमारी से जुड़े वायरल लोड टेस्ट की संख्या में 50 से 70 प्रतिशत के बीच गिरावट दर्ज की गई। नए मरीजों के इलाज की प्रक्रिया में भी 25 से 50 प्रतिशत की गिरावट आई।

इसी प्रकार, प्रसव के दौरान दी जानी वाली स्वास्थ्य सुविधाएं और मातृ उपचार में भी 20 से 60 प्रतिशत की कमी आई है। मातृ एचआईवी परीक्षण और एआरटी को शुरू करने में भी 25 से 50 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसके साथ ही शिशु परीक्षण सेवाओं में भी लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।

यूनिसेफ की साल 2019 की रिपोर्ट से जुड़े कुछ अन्य तथ्य भी हैं जो कि इस प्रकार हैं -

  • बच्चों (0-9 वर्ष की आयु) से जुड़े एचआईवी के 1,50,000 नए मामलों का पता चला था। इसके बाद इस आयु वर्ग में कुल एचआईवी संक्रमित बच्चों की संख्या 11 लाख (1.1 मिलियन) हो गई।
  • किशोरों (10-19 आयु वर्ग के) में एचआईवी संक्रमण से जुड़े 1,70,000 नए मामले सामने आए, जिसके बाद संक्रमित किशोरों की कुल संख्या 17 लाख (1.7 मिलियन) हो गई।
  • 2019 में किशोरों (पुरुषों) 44 हजार की तुलना में युवा लड़कियों से संबंधित एचआईवी के 1,30,000 मामलों का पता चला। जबकि एड्स से मरने वाले बच्चे और किशोरों की कुल संख्या 1,10,000 थी। मरने वालों में 79,000 बच्चों की उम्र 0-9 वर्ष थी और 34,000 युवाओं की उम्र 10-19 साल के बीच थी।
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