यूं तो हमारे देश में स्वास्थ्य सुविधाओं के लाख दावे किए जाते हैं। अच्छे अस्पताल, बेहतर इलाज और सर्वेश्रेष्ठ चिकित्सा व्यवस्था, यह वो वादे हैं जिनका वचन सत्ता के शिखर तक पहुंचने की चाहत रखने वाला हर शख्स देता है। सत्ता के शिखर पर पहुंच जाने के बाद शायद अस्पताल, इलाज जैसे छोटे कार्य करने का वक्त हमारे नेताओं को नहीं मिलता। यही कारण है कि कस्मों-वादों से परे मौजूदा हालात हकीकत को मुंह चिढ़ाते हैं।

साल 2017 में उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के बाद अब राजस्थान के कोटा में स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत सरकार और उनके मुलाजिमों की लापरवाही को बयां कर रही है। मरते मासूम और बिलखते परिजन इस बात के गवाह हैं कि यह शासन-प्रशासन की लापरवाही व्यवस्था में वो बड़ी चूक है, जिसका खामियाजा सौ से ज्यादा बच्चों ने अपनी जान गंवा कर चुकाया है।

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कोटा में अब तक 100 से अधिक बच्चों की मौत
दरअसल, बच्चों की मौत का यह पूरा मामला कोटा के जेके लोन अस्पताल का है। जहां दिसंबर 2019 से लेकर (3 जनवरी 2020) अब तक 104 बच्चों की मृत्यु हो चुकी है। इसमें से 3 बच्चों की मौत तो साल के पहले (1 जनवरी 2020) दिन हुई। अस्पताल के डिप्टी सुपरिटेंडेंट गोपी कृष्ण शर्मा के मुताबिक दो नवजातों और एक अन्य (एक साल) बच्चे की बुधवार एक जनवरी को मौत हो गई। वहीं, गुरुवार यानी 2 जनवरी 2020 को एक महीने के बच्चे की निमोनिया से मौत हुई।

बच्चों की मौत की क्या है वजह?
कोटा में हुई सैकड़ों बच्चों की मौत सरकार और सिस्टम पर एक प्रश्नचिन्ह है। सवाल उठता है कि आखिर वह कौन सी वजह थी, जिसके कारण इतनी बड़ी संख्या में बच्चे काल के गाल में समा गए। तमाम रिपोर्ट और डॉक्टरों के बयानों के आधार पर समझा जा सकता है कि जेके लोन अस्पताल में बच्चों के मरने की कोई निश्चित वजह नहीं थी, बल्कि इस जनहानि के लिए अलग-अलग कारण हो सकते हैं, जैसे-

  • राजस्थान सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक अस्पताल के अंदर नवजात शिशुओं के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ इनक्यूबेटर (एक तरह की मशीन, जिसमें नवजात को रखा जाता है) ठीक से काम करने की स्थिति में नहीं थे, जिससे नवजात को बेहतर समावेश नहीं मिल सका।
  • वहीं 27 दिसंबर 2019 को सरकार द्वारा नियुक्त की गई एक कमेटी (सेक्रेटरी मेडिकल एजुकेशन एंड सीनियर्स डॉक्टर की एक टीम) अस्पताल पहुंची थी, जिसने पाया कि जो बच्चे पहले से बीमारियों के चलते जिंदगी से लड़ रहे थे, उन्हें अधिक ठंड में बचाना मुश्किल था।
  • सेक्रेटरी ऑफ मेडिकल एजुकेशन की तीन टीमों के हेड वैभव गलेरिया ने बताया कि जिन बच्चों की मृत्यु हुई है, वो सभी बच्चे आईसीयू (इंटेंसिव केयर यूनिट) में भर्ती थे और ज्यादातर बच्चों को गंभीर अवस्था में अस्पताल लगाया गया, जिससे उन्हें नहीं बचाया जा सका।
  • 27 दिसंबर को, राज्य के चिकित्सा शिक्षा सचिव के नेतृत्व में टीम को न्यूनेटल यूनिट (जहां नवजात को रखा जाता है) की इनक्यूबेशन यूनिट में कमियां मिलीं। यूनिट ठीक प्रकार से काम नहीं कर रही थी और अस्पताल में इस कमी के कारण एक साथ दो शिशुओं को एक इनक्यूबेटर में रखा गया था।

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सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट
सरकार द्वारा बनाई गई तीन सदस्यीय कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि बच्चों की मौत किसी एक वजह से नहीं हुई है। कमेटी के मुताबिक शायद ज्यादा ठंड अचानक से बच्चों में मौत की वजह बनी, क्योंकि अत्यधिक ठंड नवजात बच्चों के लिए घातक होती है। विशेष रूप से, जो बच्चे कम वजन (2.5 किलो से कम) के साथ पैदा हुए थे। उनमें मृत्यु का जोखिम अधिक था। इसलिए यह मौत का कारण बना।

फिलहाल बिगड़ते हालात को देखते हुए जेके लोन अस्पताल प्रशासन ने एक और नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU) शुरू करने का फैसला किया है। इसके अलावा 13 इन्फ्यूजन पंप भी इंस्टॉल किए जाएंगे। साथ ही अस्पताल में 40 वॉर्मर रिपेयर किए जाने की बात कही जा रही है।

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मौजूदा हालात और रिपोर्ट के आधार पर देखा जाए तो कोटा में बच्चों की मौत की मुख्य वजह प्रशासन की लापरवाही के रूप में सामने आई है। ठंड के बावजूद अस्पताल में नवजातों के लिए बेहतर विकल्पों को नहीं तलाशा गया। मासूम बच्चे बेमौत मरते रहे, लेकिन ना तो अस्पताल प्रशासन और ना ही सरकार ने इस ओर संज्ञान लिया। हालांकि, इतनी मौतों के बाद हालत पर काबू करने की कोशिश जरूर हो रही है, लेकिन हालात बदलेंगे या नहीं यह एक बड़ा सवाल है।

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