ब्रेन ट्यूमर बच्चों को होने वाले सबसे आम कैंसरों में से एक है। अभी तक इस बीमारी से ग्रस्त होने वाले बच्चों को वयस्कों को दिए जाने वाले ट्रीटमेंट से ठीक करने की कोशिश की जाती है। केवल उनके ब्रेन कैंसर के इलाज के लिए कोई ट्रीटमेंट विकसित नहीं हो पाया है। हालांकि एक अध्ययन में नई उम्मीदें देने वाले परिणाम सामने आए हैं। दरअसल, जानी-मानी मेडिकल पत्रिका सेल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि मस्तिष्क के कैंसर बच्चों के शरीर में किस तरह का व्यवहार करते हैं। इस संबंध में किए गए अध्ययन के हवाले से शोधकर्ताओं ने कहा है कि इसके परिणाम बताते हैं कि कैसे इस बीमारी का इलाज करने में सफलता मिल सकती है।

अध्ययन में शोधकर्ताओं के समूह ने ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित 218 बच्चों की मॉलिक्लूयर डिटेल्स, वंशाणुओं का विश्लेषण, प्रोटीन और आरएनए ट्रांसक्रिप्शन की जांच की है, जिनसे इस प्रकार के कैंसरों को बढ़ने में मदद मिलती है। इस विश्लेषण में कई अलग तरह के प्रोटीनों की पहचान हुई है, जो अलग-अलग प्रकार के ब्रेन ट्यूमर्स द्वारा पैदा किए जाते हैं। इससे वैज्ञानिकों को मरीज (बच्चे) के ब्रेन कैंसर से पीड़ित होने और कुछ विशेष प्रकार के प्रोटीनों के बीच संबंध होने का पता चला है। इस पर अध्ययन के शोधकर्ताओं में से एक और अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के न्यूरोपैथलॉजिस्ट डॉ. श्रीराम वेनेटी ने कहा है, 'इस बड़ी खोज से बच्चे के ब्रेन ट्यूमर के खिलाफ लड़ाई को अलग ही लेवल पर लड़ा जा सकता है।'

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डॉ. श्रीराम की मानें तो यह अध्ययन बचपन में होने वाले ब्रेन ट्यूमर के बारे में मौजूदा जानकारी और समझ को बेहतर करने का काम करता है, जिसका इलाज काफी मुश्किल माना जाता है, और उस जटिल जीव विज्ञान पर से पर्दा उठाता है, जिसके कारण यह समस्या बढ़ती है। जानकारों का कहना है कि पेडियाट्रिक कैंसर के मामले में ठीक प्रकार से शोधकार्य नहीं किया गया है। इस कारण बच्चों से जुड़े ब्रेन ट्यूमर का इलाज अधिकतर वयस्कों के इलाज में प्रभावी पाए गए ट्रीटमेंट के आधार पर किया जाता है। हालांकि उनकी अपेक्षा बच्चों के ब्रेन ट्यूमर में म्यूटेशन कम देखने को मिलते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो यह जरूरी नहीं है कि वयस्क को होने वाले कैंसर म्यूटेशन के खिलाफ जो थेरेपी कारगर होती हैं, वे बच्चों के मामले में भी उतनी ही असरदार होंगी।

ऐसे में शोधकर्ताओं ने उन ट्यूमर्स की फंक्शनल मॉलिक्यूलर बायोलॉजी पर अध्ययन करने का फैसला किया, जिनमें आमतौर पर निम्न स्तर के परिवर्तन (लो-म्यूटेशन ट्यूमर्स) होते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस प्रकार के ट्यूमर्स का अध्ययन कर अलग-अलग प्रकार के ब्रेन कैंसर के बीच प्रोटियॉमिक समानताओं का पता चलने की संभावना ज्यादा होती है। इस बारे में अध्ययन से जुड़ी एक शोधकर्ता और माउंट सिनाई स्थित आइकान स्कूल ऑफ मेडिसिन की प्रोफेसर पेई वांग का कहना है कि बच्चों को होने वाले अलग-अलग ब्रेन कैंसर के बीच इन कनेक्शंस का पता लगाकर बेहतर इलाज का चयन करने में मदद मिल सकती है।

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इसके लिए वैज्ञानिकों ने सात अलग-अलग पेड्रियाट्रिक कैंसर के मामलों से प्राप्त ट्यूमर सैंपलों की जांच की। इसमें शोधकर्ताओं को सैंपलों के बीच उल्लेखनीय समानताएं देखने को मिलीं। मिसाल के लिए, टीम ने पेडियाट्रिक क्रैनियोफेरेन्जियोमा के दो विशिष्ट सबग्रुप्स की पहचान की। यह कैंसर का एक ऐसा प्रकार है, जिसका इलाज काफी मुश्किल माना जाता है। इन क्रैनियल ट्यूमर्स का उपसमूह एक बिल्कुल अलग प्रकार के ब्रेन ट्यूमर (बीआरएएफ (वी600ई) म्यूटेशन) से आश्चर्यजनक रूप से मिलता था। इस पर प्रोफेसर वांग ने कहा, 'इससे यह पता चला कि इन लो-ग्रेड ग्लियोमास के खिलाफ सफलतापूर्वक इस्तेमाल की गई कीमोथेरेपी कुछ क्रैनियोफेरेन्जियोमा के इलाज में भी मददगार हो सकती है।' इस जानकारी ने शोधकर्ताओं को एक विशेष प्रकार के ड्रग्स एमईके/एमएपीके इनहिबिटर्स का इस्तेमाल करने के लिए उत्साहित कर दिया है, जो खासतौर पर पेडियाट्रिक क्रैनियोफेरेन्जियोमा से जुड़े क्लिनिकल ट्रायलों में लो-ग्रेड ग्लियोमास के इलाज के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।

अध्ययन के दौरान मालूम चली एक और जानकारी के मुताबिक, ब्रेन ट्यूमर के एक प्रकार 'हाई-ग्रेड ग्लियोमा' में 'एच3के27एम' नामक जेनेटिक म्यूटेशन होता है। इस म्यूटेशन के चलते कैंसरकारी कोशिकाएं काफी ज्यादा आक्रामक हो जाती हैं। ब्रेन कैंसर में इस म्यूटेशन के होने पर बच्चे की लंबे समय तक जीने की संभावना बहुत कम हो जाती है। वहीं, इसी ब्रेन कैंसर टाइप से पीड़ित जिन बच्चों में यह म्यूटेशन नहीं देखने को मिलता, उनमें जीवित रहने की संभावना इस बात पर निर्भर करती है कि उनकी कैंसर सेल विशेष रूप से घातक हैं या नहीं। इन नॉन-म्यूटेड ग्लियोमास में दो प्रोटीनों की अधिकता प्रमुख भूमिका निभाती है। इनके नाम हैं आईडीएच1 और आईडीएच2। इन दोनों प्रोटीनों की मौजूदगी यह तय कर सकती है कि कैंसर एग्रेसिव होगा या नहीं।

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अध्ययन में प्राप्त एक और जानकारी के मुताबिक, बच्चों में ब्रेन कैंसर के तहत बनने वाले शुरुआती ट्यूमर्स फिर से उभरने वाले ट्यूमर्स से नाटकीय ढंग से अलग होते हैं। इससे यह संकेत गया है कि ऐसा होने पर बच्चों को एक बिल्कुल नए प्रकार के ट्रीटमेंट मेथड की जरूर होगी। वहीं, पेडियाट्रिक ब्रेन ट्यूमर्स के अंदर इम्यून मार्कर्स बनने से यह भी पता चला है कि इम्यूनोथेरेपी से मरीजों को तुरंत लाभ मिल सकता है, जो कि बच्चों के ब्रेन ट्यूमर्स में ज्यादा इस्तेमाल नहीं की जाती है। हालांकि इन तमाम खोजों पर प्रोफेसर वांग का कहना है, 'यह खोज पर आधारित अध्ययन था। हमें अपने कई अनुमानों की पुष्टि के लिए क्लिनिकल ट्रायल करने की जरूरत है। (हालांकि) यह सब काफी उत्साहजनक है और काफी ज्यादा भरोसेमंद है।'

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