कोविड-19 महामारी ने दुनियभर में एक करोड़ 80 लाख से ज्यादा लोगों संक्रमित किया है और इसके मृतक पीड़ितों का आंकड़ा सात लाख की तरफ बढ़ रहा है। हालांकि कुल संक्रमितों में से एक करोड़ 16 लाख से ज्यादा मरीज ऐसे भी हैं, जिन्होंने इस जानलेवा बीमारी को मात दी है। इनमें से कई लोग ऐसे हैं, जो इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट को लंबे वक्त तक याद रखने की वजह बन गए हैं। ऐसी ही एक सर्वाइवर हैं अमेरिका में रहने वालीं मायरा रामिरेज।

अमेरिका के शिकागो में रहने वाली मायरा रामिरेज को अप्रैल महीने के अंत में शिकागो के नॉर्थवेस्टर्न मेमोरियल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। उन्हें कोविड-19 के चलते बिगड़ी हालत में अस्पताल लाया गया था। वहां ले जाए जाने के कई दिनों बाद मायरा रामिरेज को ऐसी जानकारी दी गई कि कोविड-19 उनके लिए कभी न भूलने वाला अनुभव बन गई। दरअसल, जून 2020 को मायरा को बताया गया कि कोविड-19 की वजह से उनके दोनों फेफड़ों को ट्रांसप्लांट करना पड़ा था। कोविड-19 महामारी के इतिहास में यह पहली बार था, जब इस बीमारी से पीड़ित किसी व्यक्ति के दोनों फेफड़ों को हटाकर उन्हें नए फेफड़ों से रिप्लेस करना पड़ा था।

इस खबर के सामने आने के बाद पूरी दुनिया को यह पता चला कि सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस इससे संक्रमित हुए लोगों के साथ क्या कर सकता है। दुनियाभर में ऐसे लोगों की संख्या कम ही है, लेकिन यह इतना बताने के लिए काफी है कि कैसे इस वायरस ने इन लोगों के फेफड़ों को पूरी तरह खत्म कर दिया, जिसके बाद जिंदा बचने का एकमात्र उपाय केवल फेफड़ों का ट्रांसप्लांट ऑपरेशन ही है।

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आसान नहीं ट्रांसप्लांट करने का निर्णय लेना
फेफड़ों को ट्रांसप्लांट करने का फैसला लेना आसान नहीं होता है। जानकार बताते हैं कि अगर डॉक्टरों को किसी मरीज के फेफड़ों के बचने के थोड़े भी आसार दिखते हैं तो वे उन्हें नहीं बदलने की इच्छा दिखाते है। यह फैसला तभी लिया जाता है, जब फेफड़ों की हालत ऐसी हो जाए कि उन्हें शरीर से अलग किए बिना मरीज की जान नहीं बचाई जा सकती। मायरा रामिरेज का मामला ऐसा ही था, जिनके लंग ट्रांसप्लांट की नौबत कोरोना वायरस से संक्रमित होने की चलते आई थी। 

हालांकि, कोविड-19 के मरीज की हालत गंभीर होने के बावजूद लंग ट्रांसप्लांट का फैसला करना आसान नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह तो यही है कि अमेरिका में फेफड़ों के ट्रांसप्लांट काफी कम होते हैं। पिछले साल की ही बात करें तो उस दौरान पूरे अमेरिका में केवल 2,700 लंग ट्रांसप्लांट हुए थे। यह ऑपरेशन जल्दी से नहीं करने की एक वजह यह भी है कि जिस मरीज का ऑपरेशन होने वाला है, उसकी उम्र क्या है और उसकी स्वास्थ्य स्थिति किस तरह की है। 

मायरा रामिरेज के साथ अच्छी बात यह रही कि उनकी आयु 28 वर्ष थी और वे पहले से किसी अन्य गंभीर बीमारी से पीड़ित भी नहीं थीं। इसने ऑपरेशन के बाद उनकी जल्दी रिकवरी होने में अहम भूमिका निभाई है। जबकि अमेरिका में कोविड-19 के ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें मरीजों की हालत लंग ट्रांसप्लांट वाली ही है, लेकिन उम्र और पहले से किसी बीमारी से ग्रस्त होने के चलते उनका ऑपरेशन करने का फैसला लेने में डॉक्टरों का खासा सोच-विचार करना पड़ रहा है।

ऐसा ही एक मामला लेक ज्यूरिक के रहने वाले 62 वर्षीय ब्रायन कुन्स का है। कुछ ही दिन पहले हुए फेफड़ों के प्रत्यारोपण से पहले वे पिछले 100 सौ दिनों से लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे। कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आने से पहले वे इसे गंभीरता से नहीं लेते थे। लेकिन अब वे कहते हैं, 'अगर मेरी कहानी से किसी को सीख मिल सकती है तो वह यह है कि कोविड-19 कोई मजाक नहीं है।'

इन दोनों मरीजों के ऑपरेशन में शामिल रहे नॉर्थवेस्टर्न मेडिसिन हॉस्पिटल के डॉक्टर अंकित भारत कहते हैं कि कोविड-19 से जुड़े कुछ मामलों में डॉक्टर लंग ट्रांसप्लांट करने का फैसला लेने में काफी समय लगाते हैं। ऐसे में जब मामला उनके अस्पताल में आता है, तब तक मरीज की हालत बहुत ज्यादा खराब हो जाती है और ऑपरेशन की संभावना नहीं रह जाती। इसीलिए डॉ. भारत सलाह देते हुए कहते हैं कि कोविड-19 के मामले में लंग ट्रांसप्लांट के विकल्प पर जल्दी फैसला करने की जरूरत है, इससे पहले कि काफी देर हो जाए।

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जरा सी लापरवाही पड़ी भारी
लेकिन मायरा रामिरेज के मामले में देरी खुद उन्हीं की तरफ से हो गई। द न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) की रिपोर्ट के मुताबिक, दरअसल कोरोना वायरस से संक्रमित होने के वक्त वे एक ऑटोइम्यून से जुड़ी समस्या न्यूरोमाइलाइटिस ऑप्टिका से जूझ रही थीं। हालांकि उनका स्वास्थ्य ठीक था, लेकिन मेडिकशन के कारण उनका इम्यून सिस्टम कमजोर हो गया था, जिससे वे कोरोना वायरस संक्रमण के प्रति संवेदनशील बन गई थीं। 

अप्रैल महीने में वायरस की चपेट में आने के बाद उन्होंने हॉटलाइन पर बात की। एक बार वे अस्पताल में दिखाने के लिए घर से निकल भी गई थीं। लेकिन बीच रास्ते से वापस लौट गईं। वे अस्पताल में भर्ती होने के डर से वहां नहीं गईं। एनवाईटी से बातचीत में मायरा ने बताया कि लौटते वक्त उन्होंने अपनेआप से कहा था कि वे ठीक हो जाएंगी। वे ठीक तो हुईं, लेकिन डबल लंग ट्रांसप्लांट और हफ्तों अस्पताल में रहने के बाद।

अस्पताल की ओर जाते हुए बीच रास्ते से लौटने के बाद बीती 26 अप्रैल को रामिरेज के शरीर का तापमान 105 डिग्री पर पहुंच गया। वे अचानक इतनी कमजोर हो गईं कि ठीक से चल भी नहीं पा रही थीं। उनका एक मित्र उन्हें अस्पताल लेकर गया, जहां डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें वेंटिलेटर की जरूरत है। उस समय मायरा को उनकी बात समझ नहीं आई। वे बताती हैं कि उन्हें लगा कि डॉक्टर उन्हें कुछ दिन अस्पताल में रखेंगे और वे जल्दी ही सामान्य हो जाएंगी। लेकिन वे अगले छह हफ्तों तक वेंटिलेटर पर रहीं। अस्पताल में भर्ती होने के बाद मई महीना भी गुजर गया और पांच जून को मायरा के दोनों फेफड़े ट्रांसप्लांट कर दिए गए। इसके कई दिनों बाद उन्हें बताया गया कि उनके फेफड़े बदल दिए गए हैं। 

मायरा रामिरेज बीते हफ्ते ही अपने घर लौटी हैं। लेकिन वे अभी भी सांस की तकलीफ से गुजर रही हैं। उन्हें नहाने के लिए किसी की मदद चाहिए होती है और इसके बिना वे कुर्सी से नहीं उठ पाती हैं। मौत के मुंह से वापस आने के बाद मायरा रामिरेज कहती हैं कि शायद अब उन्हें जीने का मकसद मिल गया है। वे कहती हैं, 'शायद यह मकसद मेरे जैसी स्थिति से गुजर रहे लोगों की मदद करना है। युवा लोगों को यह समझाना है कि अगर ऐसा मेरे साथ हुआ है तो यह किसी के भी साथ हो सकता है।'

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