हाल में आई कुछ शोध आधारित रिपोर्टों के मुताबिक, कोविड-19 बीमारी से रिकवर होने के कुछ महीनों बाद इसके खिलाफ विकसित हुई इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता लुप्त हो जाती है। इस जानकारी ने वैज्ञानिकों और मेडिकल विशेषज्ञों के बीच बहस छेड़ दी है कि क्या वाकई में कोरोना वायरस के संक्रमण से उबरने के बाद इस वायरस को भविष्य में फैलने से रोकने के लिए दीर्घकालिक इम्यूनिटी हासिल करना मुश्किल है। समाचार एजेंसी पीटीआई ने देश के कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों से बातचीत के हवाले से बताया है कि इम्यून सिस्टम में कुछ विशेष सेल्स (कोशिकाएं) होते हैं, जो बाद में भी बीमारी से सुरक्षा देते हैं। यह सुरक्षा उन लोगों के लिए भी बनी रहती है, जिनके एंटीबॉडीज दिन-ब-दिन और हफ्ता-दर-हफ्ता कम होते जाते हैं। इन विशेषज्ञों की मानें तो यह दावा करना भी जल्दबाजी होगी कि समय के साथ कोविड-19 के एंटीबॉडीज का लेवल कम होता जाता है।

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पीटीआई की रिपोर्टे में पुणे स्थित इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ साइंस, एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) में प्रतिरक्षा विज्ञानी विनीता बल बताती हैं कि अभी यह दावा करना जल्दबाजी होगी कि जिन लोगों में नए कोरोना वायरस को ब्लॉक करने वाले एंटीबॉडीज (एनएबीएस) का स्तर कम होता जाता है, उनमें कोविड-19 फिर से फैल सकती है या नहीं। विनीता कहती हैं, 'यह बीमारी केवल छह-सात महीने पुरानी है। रिकवरी के बाद जो लोग वायरस से दूसरी बार संक्रमित पाए गए हैं, उनमें से ज्यादातर जनवरी में संक्रमित हुए लोग हैं।'

विनीता बल विज्ञान क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को लेकर बनाई गई प्रधानमंत्री की टास्क फोर्स की सदस्य रही हैं। उनका तर्क है कि दोबारा वायरस के संक्रमण के प्रभाव में आने का मतलब यह नहीं है कि जिन लोगों में एनएबीएस कम हो रहा है, वे कोविड-19 से ग्रस्त हो जाएंगे। विनीता की मानें तो इस बारे में कोई मजबूत राय बनाने के लिए कम से कम एक साल तक के पर्याप्त डेटा की जरूरत है।

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आईआईएसईआर की प्रतिरक्षा विज्ञानी ने यह भी कहा कि हाल में आई दो स्टडीज में कहा गया है कि कोरोना संक्रमण से रिकवर हुए मरीजों का एंटीबॉडी लेवल समय के साथ गिर सकता है, लेकिन इम्यून सिस्टम में और भी कई 'खिलाड़ी' (सेल्स) हैं, जो लोगों को दीर्घकालिक इम्यूनिटी दे सकते हैं। विनीता ने बताया, 'कुछ रिपोर्टों के मुताबिक टी सेल्स (जो संक्रमण और कोविड बीमारी से लड़ सकते हैं) सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं।'

वहीं, दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी के प्रतिरक्षा विज्ञानी सत्यजीत रथ का कहना है कि हाल के शोधों के परिणाम इस बात से संबंधित हैं कि शरीर का इम्यून सिस्टम सर्दी-जुकाम देने वाले कोरोना वायरसों से कैसे निपटता है।

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सत्यजीत का मत है कि अन्य प्रकार के कोरोना वायरस संक्रमणों की तरह कोविड-19 बीमारी में भी मरीजों का एंटीबॉडी लेवल हफ्तों और महीनों में नीचे चला जाता है। असिम्प्टोमैटिक मरीजों में ये एंटीबॉडी काफी कम बनते हैं, लेकिन इसके बावजूद वे नॉन-एंटीबॉडी आधारित प्रणाली से सुरक्षित रह सकते हैं। विनीता बल की तरह टी सेल्स का जिक्र सत्यजीत ने भी किया। उन्होंने कहा, 'कुछ साक्ष्य हैं जो बताते हैं कि विषाणु को विशेष रूप से मारने वाले टी सेल्स संक्रमित लोगों में सक्रिय होकर तेजी से बढ़ते हैं और वे भी रीइन्फेक्शन से बचा सकते हैं।' हालांकि सत्यजीत सफाई देते हुए कहते हैं कि इस संबंध में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है।


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