कोविड-19 महामारी ने मेडिकल व स्वास्थ्य विज्ञान से जुड़े ऐसे कई शब्दों को आम लोगों की भाषा का हिस्सा बना दिया है, जिनमें से अधिकतर की जानकारी उन्हें कोरोना वायरस संकट से पहले या कम थी या बिल्कुल नहीं थी। क्वारंटीन, आइसोलेशन, एंटीबॉडी, इम्यून रेस्पॉन्स कुछ ऐसे ही शब्द हैं। लेकिन 'प्रशिक्षित रोग प्रतिरोधक क्षमता' यानी 'ट्रेंड इम्यूनिटी' एक ऐसा टर्म है, जिसकी जानकारी अभी भी ज्यादातर लोगों को नहीं है। इस रिपोर्ट में हम ट्रेंड इम्यूनिटी और इससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहुलओं पर बात करेंगे।

क्या है ट्रेंड इम्यूनिटी?
मानव रोग प्रतिरोधक प्रणाली या इम्यून सिस्टम मुख्यतः दो प्रकार से काम करता है- इननेट (प्राकृतिक) और अडैप्टिव (अनुकूलनीय)। इननेट इम्यूनिटी को रोगाणुओं और ऊतकों को होने वाली क्षति के खिलाफ इम्यून सिस्टम की गैर-विशेष प्रतिक्रिया के रूप में जाना जाता है। इसका मकसद शरीर को रोगाणुओं और ऊतकों को होने वाली क्षति से बचाना है। वहीं, अडैप्टिव इम्यूनिटी में श्वेत रक्त कोशिकाओं की भूमिका अहम होती है। आप इन कोशिकाओं को बी सेल और टी सेल के नाम से जानते हैं। अडैप्टिव इम्यून सिस्टम, जिसे एक्वायर्ड इम्यून सिस्टम भी कहते हैं, मुख्यतः दो प्रकार के रेस्पॉन्स होते हैं। एक है एंटीबॉडी मिडिएटिड इम्यून रेस्पॉन्स, जिसमें बी सेल किसी रोगाणु के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित करने का काम करती हैं। दूसरा है सेल मिडिएटिड इम्यून रेस्पॉन्स, जिसमें टी सेल संक्रमण पर सीधे हमला कर उसे खत्म करने का काम करती हैं।

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शरीर में किसी विषाणु के घुसने पर इननेट और अडैप्टिव इम्यूनिटी एक साथ सक्रिय होती हैं। हालांकि, इननेट की अपेक्षा अडैप्टिव इम्यून सिस्टम थोड़ा देरी से सक्रिय होता है, लेकिन विषाणुओं से विशेष और दीर्घकालिक सुरक्षा प्रदान करता है। पिछले कई दशकों से यह माना जाता रहा है कि बीमारियों के खिलाफ इम्यूनिटी को याद रखने की क्षमता यानी इम्यून मेमरी का संबंध केवल अडैप्टिव इम्यूनिटी से है। लेकिन हालिया शोधों में पता चला है कि इननेट इम्यून सेल्स यानी रोग प्रतिरोधक कोशिकाएं (खासतौर पर मोनोसाइट और मैक्रोफेज) विषाणु के प्रभाव के चलते पर्याप्त रूप से सक्रिय या कहें भड़कने के बाद अडैप्टिव इम्यूनिटी जैसी विशेषताएं विकसित कर सकती हैं।

इननेट इम्यून सिस्टम के अडैप्टिव फीचर्स विकसित कर रोगजनक रीइन्फेक्शन के खिलाफ दीर्घकालिक सुरक्षा प्रदान करने की इसी क्षमता को ट्रेंड इम्यूनिटी का नाम दिया गया है। मेडिकल विशेषज्ञों के मुताबिक, रोगाणु या विषाणु के प्रभाव में इननेट इम्यूल सेल्स में कई प्रकार के आनुवांशिक बदलाव होते हैं और उनमें अंदरूनी और बाह्य रूप से मेटाबॉलिक रीप्रोग्रामिंग देखने को मिलती है, जो ट्रेंड इम्यूनिटी पैदा होने की प्रमुख वजह बताई जाती है। अडैप्टिव इम्यून रेस्पॉन्स की तरह ट्रेंड इम्यूनिटी का संबंध रीइन्फेक्शन के खिलाफ रोग प्रतिरोधक प्रतिक्रिया देने से है। विशेषज्ञों के मुताबिक, आमतौर पर ट्रेंड इम्यूनिटी तीन महीनों से एक साल तक सुरक्षा देने के लिए जानी जाती है।

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ट्रेंड इम्यूनिटी की शुरुआत कब होती है?
किसी रोगाणु के शरीर में घुसने के बाद कई तरह के मेटाबॉलिक बदलाव देखने को मिलते हैं। मिसाल के लिए ग्लाइकोसिस, टीसीए साइकिल और फैटी एसिड मेटाबॉलिज्म। इन बदलावों के चलते शरीर में कुछ विशेष मेटाबोलाइट पैदा होते हैं जो बाद में कई एंजाइम की गतिविधियों को प्रभावित करते हैं। इन एंजाइम का संबंध एपिजेनेटिक (गैर-वंशाणुगत प्रभावों से संबंधित) रीमॉडलिंग प्रक्रियाओं से होता है। एंजाइम्स की गतिविधियों में होने वाले परिवर्तनों के चलते इननेट इम्यून रेस्पॉन्स से जुड़े कुछ विशेष वंशाणुओं के मेथिलेशन और एसिटिलेशन स्टेटस में बदलाव देखने को मिलता है। इस तरह इननेट इम्यूनिटी की मेमरी वजूद में आती है, जो विदेशी घुसपैठियों यानी वायरसों व अन्य प्रकार के रोगाणुओं से शरीर को दीर्घकालिक सुरक्षा प्रदान करती है। 

यह मेडिकल क्षेत्र का एक नया उभरता कॉन्सेप्ट है, जिस पर शायद आने वाले दिनों में और चर्चा सुनने को मिले। यह इम्यूनिटी शरीर के इम्यून सिस्टम को नुकसान पहुंचाने वाली कई स्थितियों से बचाव कर सकती है। इनमें कैंसर जैसी बीमारियों शामिल हैं। जानकारों का मानना है कि बीसीजी, खसरा और पोलियो से जुड़ी वैक्सीनों से ट्रेंड इम्यूनिटी को सक्रिय कर गंभीर संक्रामक रोगों से लड़ा जा सकता है, इनमें कोविड-19 भी शामिल है। इसके अलावा, कम वजन के साथ पैदा हुए नवजातों के बीमार पड़ने और मरने की दर को भी ट्रेंड इम्यूनिटी की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें 'ट्रेंड इम्यूनिटी' या प्रशिक्षित प्रतिरक्षा क्या है और कोविड-19 के दौर में इसे जानना क्यों जरूरी है? है

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