विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भले ही कोविड-19 के इलाज की खोज में इस्तेमाल हुई हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा के ट्रायल पर रोक लगा दी है, लेकिन भारत में इसका प्रयोग बतौर रोग-निरोधक ड्रग के रूप में होता रहेगा। केंद्र सरकार और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इस बारे में अपना रुख साफ कर दिया है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने कहा है कि कोविड-19 की रोकथाम के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसिन के साथ इस्तेमाल किया जाता रहेगा। वहीं, सरकार ने कहा है कि उसे अपने द्वारा किए गए अध्ययनों और विश्लेषण से इस ड्रग के इस्तेमाल को जारी रखने के पर्याप्त कारण मिले हैं।

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अंग्रेजी अखबार 'दि इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक, नीति आयोग के सदस्य डॉ. विनोद पॉल ने कहा है, 'हमने कई साल क्लोरोक्वीन इस्तेमाल की है। मेरे शिक्षक कहते थे कि जब कोई बच्चा बुखार से पीड़ित हो तो उसे क्लोरोक्वीन देनी चाहिए और तीन दिनों तक इंतजार करना चाहिए। एचसीक्यू को तो और भी सुरक्षित है, क्योंकि संधिवात गठिया रोग में भी यह लगातार इस्तेमाल होती रही है। यह कोशिकाओं में पीएच बढ़ाने के लिए जानी जाती है। जिंक के साथ मिल कर यह कोशिका में वायरस को घुसने से रोकती है। यह सही है कि यह (सार्स-सीओवी-2) एक नया वायरस है, लेकिन यह (एचसीक्यू) अन्य कोरोना वायरसों पर भी कारगर रही है। हमने इसके जैविक प्रभाव की गुणवत्ता और उपलब्धता के आधार पर ही यह फैसला किया है।'

कोविड-19 संकट से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित विशेष अधिकृत समूह के अध्यक्ष डॉ. पॉल ने बताया कि एचसीक्यू के प्रभाव से जुड़े साक्ष्यों की पूरी तरह से जांच की गई है। उन्होंने कहा कि पिछले हफ्ते कोविड-19 के खिलाफ लड़ रहे सबसे आगे की पंक्ति के लोगों को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने के लिए उन्हें (जिनमें लक्षण दिखें) एचसीक्यू दिए जाने का जो फैसला किया गया था, उससे पहले भी दवा से जुड़े प्रभावों की गहन जांच की गई थी। इस बारे में नीति आयोग के सदस्य ने कहा, 'भारत की अकादमिक और अनुसंधान बिरादरी ने एकसाथ इस ड्रग में विश्वास दिखाया है। प्रथम दृष्टया इस ड्रग के इस्तेमाल की संभावना नजर आती है। हम इसके प्रोटोकॉल को आगे बढ़ाते हुए इसमें बदलाव करते रहेंगे और थेरेपी तथा बतौर रोग-निरोधक इसे इस्तेमाल करते रहेंगे। इसके दुष्प्रभाव काफी कम हैं और सहनीय हैं।'

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वहीं, आईसीएमआर महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने भी डॉ. पॉल की बात पर सहमति जताई है। मंगलवार को प्रेस ब्रीफिंग के दौरान इस बारे में सवाल किए जाने पर उन्होंने कहा, 'यह नया वायरस है। हम नहीं जानते कि इस पर कौनसा ड्रग काम करेगा और कौनसा नहीं। इलाज और रोकथाम दोनों के लिए कई तरह के ड्रग्स का इस्तेमाल हो रहा है। क्लोरोक्वीन सौ सालों से इस्तेमाल हो रही है। एचसीक्यू और भी सुरक्षित है।'

डॉ. भार्गव ने आगे कहा, 'जैविक संभावना बताती है कि यह दवा एंटीवायरल हो सकती है। 'नेचर' पत्रिका में आंकड़े प्रकाशित हुए थे, जिनमें इसकी एंटीवायरल एक्टिविटी के बारे में बताया गया था। हमारी जांच में समान परिणाम आए थे। अमेरिकी सरकार ने इसे इस्तेमाल करना शुरू किया। सुरक्षा, उपलब्धता, जैविक गुणवत्ता और आंकड़ों के आधार पर हमें लगा कि यह एक काम की रोग-निरोधक दवा हो सकती है।' इसके साथ ही डॉ. भार्गव ने कहा कि मतली आने और कभी-कभी घबराहट होने के अलावा एचसीक्यू के कोई बड़े दुष्प्रभाव नहीं हैं।

उधर, डब्ल्यूएचओ की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार 'दि हिंदू' से बातचीत में कहा है कि डब्ल्यूएचो द्वारा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के ट्रायल पर रोक लगाए जाने का मतलब यह नहीं है कि भारत को इसका प्रयोग बतौर रोग-निरोधक बंद कर देना चाहिए। हालांकि, उन्होंने यह जरूर कहा कि इस ड्रग के इस्तेमाल से पहले भारत को इसके प्रभावों को लेकर कड़ी जांच करनी चाहिए।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें भारत में कोविड-19 की रोकथाम के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल जारी रहेगा, सरकार और आईसीएमआर ने दिए ये तर्क है

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