इसमें कोई शक नहीं कि व्यक्ति की याददाश्त, सोचने की क्षमता, चीजों पर फोकस करने की क्षमता और कई और संज्ञानात्मक कार्य ऐसे हैं जिनमें उम्र बढ़ने के साथ धीरे-धीरे कमी आना स्वाभाविक सी बात है। लेकिन डिमेंशिया के साथ ऐसा नहीं होता है। डिमेंशिया, धीरे-धीरे बढ़ने वाली और लंबे समय तक रहने वाली (क्रॉनिक) एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जो कई अलग-अलग प्रकार की बीमारियों और ब्रेन में लगने वाली चोट के कारण हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की मानें तो मौजूदा समय में दुनियाभर में करीब 5 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें डिमेंशिया की बीमारी है और अब हर साल करीब 1 करोड़ नए मामले सामने आ रहे हैं।

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डिमेंशिया के 9 प्रतिशत मामले कम उम्र में शुरू हो जाते हैं
दुनियाभर की बुजुर्ग आबादी में विकलांगता और जीवन की गुणवत्ता में कमी का एक अहम कारण डिमेंशिया की बीमारी है। WHO के आंकड़े बताते हैं कि डिमेंशिया के करीब 9 प्रतिशत मामले ऐसे हैं जो कम उम्र में ही (65 साल से कम उम्र के लोगों में) दिखने शुरू हो जाते हैं। लिहाजा इस बीमारी को रोकना जरूरी तो है लेकिन यह थोड़ा मुश्किल भी है क्योंकि इसका मतलब हुआ इससे जुड़े सभी तरह के जोखिम कारकों को कम करना। लेकिन अब एक नई स्टडी हुई है जिसमें यह बताया गया है कि अगर मिडलाइफ में (40-50 की उम्र के आसपास) व्यक्ति डाइट और एक्सरसाइज के जरिए हृदय की सेहत को बेहतर बनाकर रखता है तो उसे बाद में डिमेंशिया होने का खतरा कम हो जाता है।   

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पीएलओएस मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुई स्टडी
यूरोपीय देश फिनलैंड में 1449 लोगों पर एक लॉन्ग टर्म स्टडी की गई जिसमें यह बात सामने आयी कि जिन लोगों के मिडलाइफ में हृदय स्वास्थ्य के स्टैंडर्ड मेट्रिक्स का स्कोर बेहतर था खासकर व्यवहार से जुड़े कारक जैसे- धूम्रपान आदि के लिए उनमें बाद के जीवन में डिमेंशिया होने का खतरा कम था। स्वीडेन के स्टॉकहोम स्थित कैरोलिंस्का इंस्टिट्यूट के याजुन लियांग और उनके साथियों ने इस स्टडी को किया जिसके नतीजों को पीएलओएस मेडिसिन नाम के जर्नल में प्रकाशित किया गया। 

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जो हृदय के लिए खराब है वह ब्रेन के लिए भी उतनी ही खराब है
जो चीज आपके हृदय के लिए खराब है वह आपके ब्रेन के लिए भी उतनी ही खराब है और इसकी वजह से जीवन में आगे चलकर डिमेंशिया हो सकता है। पीएलओएस वन में प्रकाशित इस स्टडी के पीछे का विचार यही था जिसमें यह सुझाव दिया गया कि अगर कोई व्यक्ति जीवन के 40-50 साल की उम्र में और उसके बाद भी अगर अपनी हृदय संबंधी सेहत को बेहतर बनाकर रखता है तो उसे जीवन के बाद के सालों में डिमेंशिया होने का खतरा कम हो जाएगा। 

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व्यवहार संबंधी कारक और जैविक कारक- दोनों की जांच
स्टडी में शामिल 1449 प्रतिभागियों की सेहत की स्थिति को मिडलाइफ (1972-1987) और फिर लेट लाइफ (1998) तक फॉलो किया गया। इसके बाद डिमेंशिया फ्री जीवित बचे प्रतिभागियों को 2005 से 2008 तक फिर से फॉलो किया गया। प्रतिभागियों को हार्ट हेल्थ स्कोर देने के लिए 3 व्यवहार संबंधी कारक- स्मोकिंग, फिजिकल ऐक्टिविटी का लेवल और बॉडी मास इंडेक्स और 3 जैविक कारक- फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज, टोटल कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर की जांच की गई।

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व्यवहार संबंधी कारकों को कंट्रोल करने से डिमेंशिया का खतरा कम
अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि जिन प्रतिभागियों का हृदय संबंधी हेल्थ स्कोर मध्यम से लेकर आदर्श स्थिति में था, खासकर व्यवहार संबंधी कारकों के कारण, उनमें जीवन के बाद के सालों में डिमेंशिया विकसित होने का खतरा कम था। हालांकि बाद के सालों में लो ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल लेवल का संबंध डिमेंशिया के अधिक जोखिम से जुड़ा था। चूंकि इस स्टडी में प्रतिभागियों के डाइट संबंधी पैटर्न और कई दूसरे कारकों को ध्यान में नहीं रखा गया था लिहाजा इस स्टडी की अपनी कुछ सीमाएं हैं। बावजूद इसके स्टडी के नतीजे यह सुझाव देते हैं कि अगर मिड लाइफ में व्यक्ति हार्ट हेल्थ से जुड़े व्यवहार संबंधी कारक जैसे- स्मोकिंग, एक्सरसाइज और बीएमआई को कंट्रोल कर ले तो डिमेंशिया के खतरे को कम करने में काफी हद तक मदद मिल सकती है।

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