काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) - Glaucoma in Hindi

Dr. Ajay Mohan (AIIMS)MBBS

June 28, 2017

August 16, 2023

काला मोतियाबिंद
काला मोतियाबिंद

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) क्या होता है?

काला मोतियाबिंद को ग्लूकोमा या काला मोतिया भी कहा जाता है। काला मोतियाबिंद आँखों में होने वाली एक गंभीर समस्या है। हमारी आँखों में ऑप्टिक नर्व (optic nerve) होती है, जो किसी भी वस्तु का चित्र दिमाग तक पहुँचाती है। ग्लूकोमा के दौरान हमारी आँखों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। लगातार बढ़ते दबाव के कारण हमारी ऑप्टिक नर्व नष्ट हो सकती है। इस दबाव को इंट्रा-ऑक्युलर प्रेशर (intra-ocular pressure) कहते हैं। यदि ऑप्टिक नर्व और आँखों के अन्य भागों पर पड़ने वाले इस दबाव को नियंत्रित न किया जाये तो व्यक्ति हमेशा के लिए अँधा हो सकता है।  

अंधेपन के प्रमुख कारकों में से ग्लूकोमा एक है। ये किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन बूढ़े लोगों में अधिकतर पाया जाता है। शुरुआत में ग्लूकोमा का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता। इसका असर बहुत धीमी गति से होता है। जब तक काला मोतिया गंभीर स्थिति में नहीं पहुँच जाता, तब तक व्यक्ति को अपनी दृष्टि में कोई विकार नज़र नहीं आता।  

ग्लूकोमा के कारण आँखों की खोई हुई रोशनी दोबारा वापस नहीं आ सकती। अतः यह ज़रूरी है कि आप नियमित रूप से अपनी आँखों की जाँच करवायें और इन पर पड़ने वाले दवाब का भी परीक्षण करवाते रहें। अगर ग्लूकोमा की पहचान शुरुआत में ही कर ली जाये तो दृष्टि को कमज़ोर होने से रोका जा सकता है। 

काला मोतियाबिंद का सही ढंग से निदान करने के लिए आपके डॉक्टर को थोड़ा ज़्यादा ध्यान देना पड़ेगा। आपको ग्लूकोमा हुआ है या नहीं, इस बात का पता लगाने के लिए डॉक्टर को आपकी आँखों पर पड़ने वाले दवाब की जाँच करनी होगी। अगर आपको ये बीमारी है तो आपको पूरी जिंदगी उसके उपचार की ज़रुरत पद सकती है।

भारत में काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) की स्तिथि 

ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि भारत में लगभग 40 साल या उस से ज़्यादा उम्र के 1 करोड़ से ज़्यादा लोग काला मोतियाबिंद से पीड़ित हैं। और यह सभी सही उपचार के बिना अपनी दृष्टि खो बैठेंगे। तकरीबन ३ करोड़ अन्य लोगों को प्राथमिक (क्रोनिक) ओपन-एंगल ग्लूकोमा है या होने का जोखिम है। कुल मिलकर इस आयुवर्ग के 31 करोड़ लोगों में से 4 करोड़ लोग ग्लूकोमा होने के खतरे के साथ जी रहे हैं।

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) के प्रकार - Types of Glaucoma in Hindi

ग्लूकोमा मुख्य रूप से पाँच तरह का होता है –

1. प्राथमिक (क्रोनिक) ओपन-एंगल ग्लूकोमा – Primary (or Chronic) Open-Angle Glaucoma

यह लोगों को प्रभावित करने वाला ग्लूकोमा का सबसे सामान्य रूप है। इसमें आँखों के तरल को बाहर निकालने वाली नलियाँ धीरे धीरे बंद हो जाती हैं। परिणामस्वरूप आँखों का तरल पदार्थ उचित मात्रा में बाहर नहीं निकल पाता और आँख के अंदरूनी हिस्से पर दबाव (इसे इंट्रा-ऑक्युलर प्रेशर - intraocular pressure या IOP भी कहा जाता है) बढ़ जाता है।  

2. एंगल-क्लोज़र (एक्यूट) ग्लूकोमा - Angle-closure (acute) Glaucoma

इस प्रकार के ग्लूकोमा को एक्यूट ग्लूकोमा (acute glaucoma) या नैरो एंगल ग्लूकोमा (narrow angle glaucoma) भी कहा जाता है। यह ओपन एंगल ग्लूकोमा से बहुत ज़्यादा अलग है क्योंकि इसमें आँखों पर दबाव बहुत तेज़ी से बढ़ता है। ऐसा तब होता है, जब आँखों के तरल को बाहर निकालने वाली नलियाँ बंद हो जाती हैं। एक बहुत ही साधारण टेस्ट के द्वारा ये पता लगाया जा सकता है कि आपका एंगल सामान्य यानि चौड़ा है या असामान्य यानि संकुचित।     

यदि आपके एक्वेस ह्यूमर फ्लूइड (aqueous humor fluid) का प्रवाह अचानक अवरुद्ध हो जाता है, तो द्रव की तेजी से निर्माण से दबाव में गंभीर, तेज और दर्दनाक वृद्धि हो सकती है। 

3. सामान्य तनाव ग्लूकोमा (Normal Tension Glaucoma)

सामान्य तनाव ग्लूकोमा (Normal Tension Glaucoma- NTG) को निम्न तनाव (low tension) या सामान्य प्रेशर ग्लूकोमा (normal pressure glaucoma) भी कहते हैं। यह विशेष काला मोतिया, ऑप्टिक नर्व पर बिना कोई प्रेशर डाले उसे नुकसान पहुँचाता है। 

4. सेकेंडरी ग्लूकोमा (Secondary Glaucoma)

सेकेंडरी ग्लूकोमा किसी भी ऐसी बीमारी के कारण हो सकता है, जिससे आँखों पर दबाव बढ़ता है। इसके परिणामस्वरूप ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त हो जाती है और आँखों की रोशनी भी जाती रहती है। काला मोतियाबिंद का प्रभाव हल्का या फिर गंभीर हो सकता है। इसका उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि यह ओपन एंगल ग्लूकोमा है या एंगल क्लोज़र ग्लूकोमा। 

यहाँ सेकेंडरी ओपन ग्लूकोमा के चार प्रकार दिए जा रहे हैं –

  1. पिगमेंटरी ग्लूकोमा (Pigmentary Glaucoma) – आइरिस (आँख का रंगीन हिस्सा) के पीछे वर्णक कण (pigment granules) मौजूद होते हैं। ये कण टूटकर आँख के अंदर एक तरल (fluid) पदार्थ उत्पन्न करते हैं। ये छोटे छोटे कण आँख के तरल को बाहर निकालने वाली नलियों की ओर बहते है और उसे धीरे धीरे बंद कर देते हैं। इससे आँखों पर दबाव बढ़ना शुरू हो जाता है।  
  2. सुडोएक्सफोलिएटिव ग्लूकोमा (Pseudoexfoliative Glaucoma) –  यह तब होता है, जब एक पपड़ीदार रूसी जैसा पदार्थ आँख के अंदर लेंस की ऊपरी परत से झड़ता रहता है। यह पदार्थ कॉर्निया और आइरिस के बीच मौजूद एंगल में जमा हो जाता है। इससे आँख की तरल निकासी प्रणाली अवरुद्ध हो जाती है और आँखों पर दबाव बढ़ना शुरू हो जाता है। 
  3. ट्रॉमेटिक ग्लूकोमा (Traumatic Glaucoma) – आँख की चोट इसकी मुख्य वजह है। यह आँख में लगने वाली चोट से हो सकता है - चाहे चोट बहरी हो या अंदरूनी। ट्रॉमेटिक ग्लूकोमा चोट लगने के तुरंत बाद भी हो सकता है या कई वर्षों बाद भी।  
  4. नोवास्कुलर ग्लूकोमा (Neovascular Glaucoma) – आइरिस और आँख की जल निकासी प्रणाली के ऊपर नयी रक्त वाहिकाओं का असामान्य रूप से उत्पन्न होना इस मोतियाबिंद का मुख्य कारण है। नोवास्कुलर ग्लूकोमा हमेशा अन्य समस्याओं, विशेष रूप से मधुमेह से जुड़ा रहता है। यह अपने आप कभी नहीं होता।   

5. जन्मजात ग्लूकोमा (Congenital Glaucoma)

इस मोतियाबिंद में आँख से असामान्य रूप से तरल पदार्थ निकलता है, जिसके कारण ट्रबेक्युलर तंत्र (trabecular meshwork) अवरुद्ध हो जाता है। जन्मजात ग्लूकोमा वंशानुगत दोष या गर्भावस्था के दौरान असामान्य विकास के कारण हो सकता है।

(और पढ़ें - गर्भधारण करने के तरीके)

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) के चरण - Stages of Glaucoma in Hindi

ग्लूकोमा के तीन चरण होते हैं -

1. आरंभिक चरण 

काला मोतियाबिंद के शुरुआती चरण में आमतौर पर दृष्टि में कोई परिवर्तन नहीं होते हैं। इस चरण में उच्च दबाव और क्षतिग्रस्त ऑप्टिक नर्व (optic nerve) आँखों की रोशनी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाते हैं। डॉक्टर आमतौर पर ग्लूकोमा ड्रॉप्स के द्वारा आँखों के दबाव को कम करने की कोशिश करते हैं।

2. मध्यम चरण

काला मोतिया के मध्यम चरण में दृष्टि का कमज़ोर होना शुरू हो जाता है। हालाँकि यह बहुत धीमी प्रक्रिया होती है, इसलिए व्यक्ति दृष्टि में होने वाले इस बदलाव को महसूस नहीं कर पाते।  

3. उच्च चरण

काला मोतियाबिंद के उच्च चरण में दृष्टि बहुत क्षीण हो जाती है। कुछ लोग तो अंधेपन के शिकार हो जाते हैं। ग्लूकोमा के अंतिम चरण में भी डॉक्टर आँखों में डालने वाले ड्रॉप्स का परामर्श देते हैं। हालाँकि कुछ परिस्थितियों में वे दबाव कम करने के लिए सर्जरी की सलाह देते हैं।

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) के लक्षण - Glaucoma Symptoms in Hindi

ग्लूकोमा के लक्षण उसके प्रकार पर निर्भर करते हैं, जो कि इस प्रकार हैं  
 
1. ओपन-एंगल (क्रोनिक) ग्लूकोमा (Open-angle glaucoma)

ओपन-एंगल मोतियाबिंद की शुरुआत में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। जैसे जैसे ये रोग बढ़ता है, आपकी परिधीय (साइड) दृष्टि में ब्लाइंड स्पॉट्स विकसित हो जाते हैं। ओपन-एंगल ग्लूकोमा से पीड़ित अधिकतर व्यक्ति अपनी दृष्टि में तब तक कोई परिवर्तन महसूस नहीं कर पाते, जब तक ये ग्लूकोमा गंभीर रूप से आँखों को नुकसान नहीं पहुँचा देता। 

2. एंगल- क्लोज़र ग्लूकोमा (Angle-closure glaucoma)

ऐसे व्यक्ति जिन्हे एंगल क्लोज़र ग्लूकोमा होने की सम्भावना होती है, उनमें सामान्य रूप से तब तक कोई लक्षण नज़र नहीं आते, जब तक ये गंभीर रूप से फैल नहीं जाता।  

एंगल क्लोज़र ग्लूकोमा के लक्षण निम्नलिखित हैं –

  1. आँखों या माथे में तेज़ दर्द होना 
  2. आँखें लाल होना 
  3. दृष्टि का कमज़ोर या धुंधला होना 
  4. रोशनी के चारों ओर रंग के छल्ले बने दिखना
  5. सिर दर्द (और पढ़ें – सिर दर्द के घरेलु उपाय)
  6. जी मिचलाना
  7. उल्टी

3. सामान्य तनाव ग्लूकोमा (Normal tension glaucoma)

"सामान्य तनाव मोतियाबिंद" से ग्रस्त लोगों की आँखों में दबाव सामान्य सीमा के भीतर ही होता है। इसमें ऑप्टिक तंत्रिका (optic nerve) की क्षति और ब्लाइंड स्पॉट्स (blind spots) जैसे लक्षण नज़र आते हैं। 

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) के कारण - Glaucoma Causes in Hindi

ग्लूकोमा के क्या कारण हैं?

ग्लूकोमा ऑप्टिक तंत्रिका (optic nerve) को होने वाले नुकसान का परिणाम  है। इसके कारण आपके दृश्य क्षेत्र में ब्लाइंड स्पॉट्स बनने शुरू हो जाते हैं। यह तंत्रिका क्षति आमतौर पर आँखों पर बढ़ते दबाव से संबंधित होती है।

यह नेत्र दबाव एक तरल (aqueous humor) के निर्माण के कारण होता है, जो आँखों से लगातार निकलता रहता है। यह द्रव आमतौर पर तरल आँख के लेंस और कॉर्निया के बीच बने कोण में एकत्र हो जाता है। जब द्रव अधिक होता है या द्रव निकासी प्रणाली ठीक से काम नहीं करती है, तो द्रव सामान्य रूप से बाहर नहीं निकल पाता और दबाव बढ़ने लगता है। ग्लूकोमा परिवार के एक सदस्य से दूसरे सदस्य में फैल सकता है। वैज्ञानिकों ने कुछ लोगों में, आँखों का दबाव और ऑप्टिक तंत्रिका क्षति (optic nerve damage) से संबंधित जीन की पहचान की है।

काला मोतियाबिंद के जोखिम उत्पन्न करने वाले अनेक कारक हैं –

  1. बुढ़ापा
  2. कुछ बीमारियाँ, जैसे – मधुमेह (शुगर) या हाइपोथायरायडिज्म (hypothyroidism).
  3. आँखों में लगने वाली चोट या  अन्य समस्याएँ
  4. आँख की सर्जरी 
  5. निकट दृष्टि दोष (मायोपिया- Myopia)
  6. डाइलेटिंग आईड्रॉप्स (dilating eyedrops)
  7. आँखों में अवरुद्ध या प्रतिबंधित जल निकासी
  8. कॉर्टिकॉस्टिरॉइड्स (corticosteroids) जैसी दवाएँ, (लम्बे समय से कॉर्टिकोस्टेरॉइड लेने के कारण मरीज़ों में ग्लूकोमा समेत कई समस्याओं के बढ़ने का खतरा होता है। कॉर्टिकॉस्टिरॉइड्स युक्त आईड्रॉप्स से जोखिम और बढ़ जाता है।)
  9. ऑप्टिक तंत्रिका (optic nerve) में होने वाले रक्त प्रवाह में कमी आना 
  10. हाई ब्लड प्रेशर

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) से बचाव - Prevention of Glaucoma in Hindi

ग्लूकोमा की रोकथाम कैसे करें?

नियमित रूप से आँखों का परीक्षण करवाते रहने से काला मोतिया से बचा जा सकता है।  

इससे बचाव के तरीके अभी तक ज्ञात नहीं हैं। लेकिन सही समय पर निदान से ग्लूकोमा की रोकथाम की जा सकती है। अगर इस बीमारी का पता आरम्भ में चल जाये, तो मोतियाबिंद से होने वाले अंधेपन को रोका जा सकता है। प्रारंभिक चरण में इसकी पहचान और लम्बे समय तक करवाया जाने वाला उपचार ज्यादातर लोगों की दृष्टि को बनाये रखता है। सामान्य तौर पर काला मोतियाबिंद की जाँच करवाते रहना चाहिए –

  1. 40 साल की उम्र से पहले, हर दो से चार साल में 
  2. 40 से लेकर 54 साल की उम्र तक, हर एक से तीन साल में 
  3. 55 से 64 साल की उम्र से, हर एक से दो साल में 
  4. 65 साल की उम्र के बाद, हर छह से 12 महीने में 

जिन लोगों को काला मोतियाबिंद होने का जोखिम ज़्यादा हो, उन्हें इससे बचने के लिए 35 वर्ष की आयु के बाद हर एक या दो साल में परीक्षण करवा लेना चाहिए। ग्लूकोमा होने का जोखिम होने के खतरा ज़्यादा कब और किसे होता है, इसके बारे में नीचे बताया गया है।

अगर आपको ग्लूकोमा होने का खतरा है तो चिकित्सा विशेषज्ञ आपकी जीवन शैली को बेहतर बनाने के लिए नियमित व्यायाम और पौष्टिक आहार की सलाह देते हैं। आपको शारीरिक, मानसिक और  भावनात्मक रूप से भी अपना ख्याल रखना चाहिए।

यहाँ आपको कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए – 

1. आँखों की नियमित जाँच – नियमित रूप से आँखों की जाँच करवाने से ग्लूकोमा को उसके शुरुआती चरण में ही पहचानकर उसका इलाज किया जा सकता है। 

2. प्रतिदिन व्यायाम करना –  दैनिक रूप से  व्यायाम करना हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है और साथ ही इससे इंट्राओक्युलर प्रेशर (ntraocular pressure- IOP) भी कम होता है। 

3. आँखों की सुरक्षा – आँखों में लगने वाली चोटों से ट्रॉमेटिक ग्लूकोमा (traumatic glaucoma) या सेकेंडरी ग्लूकोमा का खतरा बढ़ जाता है। अतः इन चोटों से आँखों को बचाकर रखने से काला मोतिया को रोका जा सकता है। 

4. आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल - डॉक्टर द्वारा बताये गए ड्रॉप्स को आँखों में नियमित रूप से डालें। 
5. अनुवांशिक कारकों की जानकारी - अपने परिवार के नेत्र स्वास्थ्य सम्बंधित इतिहास को जानें। 

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) का परीक्षण - Diagnosis of Glaucoma in Hindi

ग्लूकोमा का निदान कैसे किया जाता है?

काला मोतिया का निदान करने के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञ आपकी आँख की अच्छी तरह से जाँच करेंगे।  वे आपकी आँख के तंत्रिका ऊतक को होने वाली क्षति के साथ साथ अन्य लक्षणों की जाँच करेंगे।

1. विस्तृत चिकित्सा इतिहास (Detailed Medical History)

डॉक्टर आपसे जानना चाहेंगे कि आप किस तरह के लक्षणों का सामना कर रहे हैं और आपके परिवार का पहले कभी इस समस्या से कोई सम्बन्ध रहा है या नहीं। वे आपका एक सामान्य स्वास्थ्य मूल्यांकन करने के लिए यह भी पूछेंगे कि क्या आपको मधुमेह (शुगर) या उच्च रक्तचाप जैसी कोई बीमारी है, जो आपके नेत्रों को प्रभावित कर सकती है। 
         

2. वे नीचे दिए गए परीक्षणों और प्रक्रियाओं में से एक या अधिक का उपयोग कर सकते हैं –

2.1. टोनोमेट्री परीक्षण (Tonometry test)

टोनोमेट्री आपकी आँखों के भीतर दबाव को मापता है। टोनोमेट्री के दौरान आँखों को सुन्न करने के लिए आईड्रॉप्स का उपयोग किया जाता है। उसके बाद चिकित्सक या तकनीशियन आँख के आंतरिक दबाव को मापने के लिए टोनोमीटर नामक उपकरण का उपयोग करता है। एक छोटे से उपकरण द्वारा या गर्म हवा के हल्के झोंके से आँख पर थोड़ा दबाव डाला जाता है।  

2.2 ऑप्थाल्मोस्कोपी परीक्षण (Ophthalmoscopy test)

यह  प्रक्रिया डॉक्टर को ग्लूकोमा के दौरान ऑप्टिक तंत्रिका की क्षति की जाँच करने में मदद करती है। आँख की पुतली (pupil) को फैलाने के लिए आईड्रॉप्स का उपयोग किया जाता है, ताकि चिकित्सक ऑप्टिक तंत्रिका के आकार और रंग की ठीक तरह से जाँच कर सकें।

 2.3. पेरीमेट्री परीक्षण (Perimetry test)

पेरीमेट्री एक दृश्य फ़ील्ड टेस्ट (visual field test) है, जो आपके दृष्टि क्षेत्र का पूरा नक्शा बनाता है। यह परीक्षण चिकित्सक को यह निर्धारित करने में सहायता करेगा कि आपकी दृष्टि काला मोतियाबिंद से प्रभावित है या नहीं। इस परीक्षण के दौरान आपको एकदम सामने देखने के लिए कहा जाएगा और आपको तब संकेत दिया जायेगा, जब एक चलता हुआ प्रकाश आपके परिधीय (या साइड) दृष्टि से गुज़रेगा। यह परीक्षण आपकी दृष्टि के मानचित्र को बनाने में मदद करता है।

2.4. गोनियस्कोपी टेस्ट (Gonioscopy test)

इस नैदानिक परीक्षण से यह निर्धारित करने में मदद मिलती है कि कॉर्निया और आइरिस के बीच का कोण खुला और छोड़ा है या संकीर्ण और बंद। परीक्षण के दौरान आँखों को सुन्न करने के लिए आईड्रॉप्स का उपयोग किया जाता है। कांटेक्ट लेंस (contact lens) को हाथ से पकड़कर धीरे से आँख में लगाया जाता है। इस कांटेक्ट लेंस में एक दर्पण होता है, जो डॉक्टर को दिखाता है कि आइरिस और कॉर्निया के बीच का कोण बंद और अवरुद्ध है (बंद कोण, एंगल क्लोज़र या एक्यूट ग्लूकोमा का संकेत होते हैं) या चौड़ा और खुला हुआ (ओपन एंगल (क्रोनिक) ग्लूकोमा का संकेत देते हैं)।

2.5. पाकीमेट्री टेस्ट (Pachymetry test)

पाकीमेट्री आपकी कॉर्निया की मोटाई को मापने का एक सरल व दर्दरहित परीक्षण है। इस जाँच के दौरान पाकीमीटर नामक उपकरण को कॉर्निया की मोटाई जानने के लिए धीरे से उसके सामने लगाया जाता है। पाकीमेट्री टेस्ट आपके निदान में सहायता कर सकता है, क्योंकि कॉर्नियल मोटाई (corneal thickness) में आँख के दबाव की रीडिंग को प्रभावित करने की क्षमता होती है। इस माप के द्वारा आपका डॉक्टर आपके आईओपी (IOP) की रीडिंग को बेहतर तरीके से समझकर आपका अच्छे तरीके से उपचार कर सकता है। इस प्रक्रिया के द्वारा दोनों आँखों को मापने में लगभग एक मिनट लगता है।

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) का इलाज - Glaucoma Treatment in Hindi

काला मोतियाबिंद के कारण होने वाली क्षति को ठीक नहीं किया जा सकता है। अगर इसकी पहचान शुरुआती चरण में ही हो जाती है तो नियमित जाँच और उपचार से दृष्टि को होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है या रोका जा सकता है। काला मोतियाबिंद उपचार का लक्ष्य आँखों पर पड़ने वाले दबाव (intraocular pressure) को कम करना होता है। आपकी स्थिति के आधार पर आपके पास आईड्रॉप्स या सर्जरी (लेजर उपचार) के विकल्प शामिल हैं। 

1. आईड्रॉप्स (Eyedrops)

ग्लूकोमा का उपचार डॉक्टर द्वारा सामान्य रूप से आँखों में ड्रॉप्स डालने से शुरू किया जाता है। ये ड्रॉप्स आँखों की तरल निकासी प्रणाली को सुधारकर या आँखों द्वारा उत्पन्न किये जाने वाले तरल की मात्रा को कम कर देते  हैं।   इससे आँखों पर पड़ने वाला दबाव कम हो जाता है।

1.1 प्रोस्टाग्लैंडिंस (Prostaglandins)

आपकी आँखों से निकलने वाले तरल के बहाव को बढ़ा देते हैं, जिससे आँखों पर पड़ने वाला दबाव कम हो जाता है। उदाहरणों में लतानोप्रोस्ट (latanoprost- Xalatan) और बीमाटोप्रोस्ट (bimatoprost- Lumigan) शामिल हैं। 

1.2 बीटा ब्लॉकर्स (Beta blockers)
इससे आँखों में उत्पन्न होने वाले तरल की मात्रा कम हो जाती है, जिससे आँखों पर पड़ने वाला दबाव भी कम हो जाता है। उदाहरणों में टिमोलोल (timolol) (जैसे कि बेटिमोल - Betimol, टीमोप्टिक - Timoptic) और बेटेक्सोलोल (betaxolol) (जैसे कि बेटोप्टिक - Betoptic) शामिल हैं।   

1.3 अल्फा-एड्रेनेर्गिक अगोनिस्ट्स (Alpha-adrenergic agonists) 
ये आँख के लेन्स और कॉर्निया के बीच बनने वाले तरल पदार्थ (aqueous humor) के उत्पादन को कम करते हैं और आँख द्वारा तरल के बहाव को बढ़ा देते हैं। उदाहरणों में एपराक्लोनिडीन (आईओपिडीन)  apraclonidine (Iopidine) और ब्रिमोनिडाइन (अल्फ़ैगन) brimonidine (Alphagan) शामिल हैं।

1.4 कार्बोनिक एनहाइड्रस इन्हिबिटर्स  (Carbonic anhydrase inhibitors)

काला मोतियाबिंद के लिए इन दवाओं का इस्तेमाल बहुत कम ही किया जाता है। ये दवाएँ आपकी आँखों  में द्रव के उत्पादन को कम करती हैं। उदाहरणों में डोरोजोलामाइड (ट्रूस्पॉट) dorzolamide (Trusopt) और ब्रिनज़ोलामाइड (अजोप्ट) brinzolamide (Azopt).शामिल हैं।

2. खाने वाली दवाएँ (Oral medications)
अगर आईड्रॉप्स डालने से आँखों के दबाव को वांछित स्तर तक नहीं लाया जा सके, तो आपके डॉक्टर खाने वाली दवाइयों का परामर्श भी दे सकते हैं, आमतौर पर कार्बोनिक एनाहाइडस अवरोधक (carbonic anhydrase inhibitor)। उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें।

3. सर्जरी और अन्य उपचार

अगर आँखों की जलनिकासी प्रणाली  बंद हो जाये तो चिकित्सक तरल पदार्थ के लिए जल निकासी पथ बनाने या अत्यधिक तरल बनाने वाले ऊतकों को नष्ट करने के लिए सर्जरी और अन्य उपचारों  का सुझाव दे सकते हैं। ऐसी अनेक प्रकार की सर्जरी हैं, जो आपका डॉक्टर सुझा सकता है –

1. लेज़र थेरेपी (Laser Therapy)
2. शल्य चिकित्सा फ़िल्टरिंग (filtering surgery)
3. ड्रेनेज ट्यूब (Drainage tubes)
4. इलेक्ट्रोकॉटरी  (Electrocautery)

लेकिन एंगल-क्लोजर ग्लूकोमा के लिए अलग उपचार है। इस प्रकार के ग्लूकोमा में आँख के दबाव को कम करने के लिए जितनी जल्दी हो सके, तत्काल उपचार की आवश्यकता होती है। लेज़र पेरिफेरल इरिडोटमी (Laser Peripheral Iridotomy) नामक एक लेज़र प्रक्रिया भी की जा सकती है।

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) के जोखिम और जटिलताएं - Glaucoma Risks & Complications in Hindi

काला मोतिया के जोखिम उत्पन्न करने वाले करक इसके प्रकारों पर निर्भर करते हैं –

1) ओपन-एंगल ग्लूकोमा (Open-Angle Glaucoma)  के जोखिम कारक

  1. आँखों पर उच्च दबाव
  2. ग्लूकोमा रोग से मरीज़ के परिवार का कोई सदस्य भी बहुत पहले पीड़ित रह चुका है, इस बात की पुष्टि होना 
  3. आयु
  4. पतला कॉर्निया
  5. बढ़ी हुई कपिंग के साथ ऑप्टिक तंत्रिका का असामन्य होना (कप - यानि ऑप्टिक तंत्रिका के केंद्र में स्थित स्थान - का आकार सामान्य से बड़ा होता है)
  6. गंभीर निकट दृष्टि दोष
  7. मधुमेह (शुगर)
  8. नेत्र शल्य चिकित्सा (surgery)  या चोट
  9. उच्च रक्तचाप
  10. कॉर्टिकोस्टेरॉइड (corticosteroids) का उपयोग, (उदाहरण के लिए आईड्रॉप्स, गोलियाँ, इनहेलर और क्रीम)

2) एंगल-क्लोज़र ग्लूकोमा (Angle-Closure Glaucoma) के जोखिम कारक

  1. 40 वर्ष की आयु या उससे अधिक होना 
  2. ग्लूकोमा रोग से मरीज़ के परिवार का कोई सदस्य भी बहुत पहले पीड़ित रह चुका है, इस बात की पुष्टि होना 
  3. दीर्घ दृष्टि (farsightedness) कमज़ोर होना 
  4. नेत्र में चोट या नेत्र शल्य चिकित्सा (surgery)

3) सामान्य तनाव मोतियाबिंद (Normal-Tension Glaucoma) के जोखिम कारक

  1. हृदय सम्बंधित रोग (Cardiovascular disease)
  2. ग्लूकोमा रोग से मरीज़ के परिवार का कोई सदस्य भी बहुत पहले पीड़ित रह चुका है, इस बात की पुष्टि होना
  3. आँख पर कम दबाव

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) में परहेज़ - What to avoid during Glaucoma in Hindi?

काला मोतिया में बरती जाने वाली कुछ सावधानियाँ –

1) कैफीन की खपत

कॉफी कम मात्रा में पीयें।  कैफीन युक्त कॉफी का अत्यधिक सेवन करना ग्लूकोमा के रोगी के लिए उचित नहीं है।

2) धूम्रपान

वर्तमान समय में  धूम्रपान ग्लूकोमा को उत्पन्न करने वाले जोखिम से सम्बन्धित पाया गया है। काफी समय पहले किये गए किसी भी अध्ययन में ग्लूकोमा और धूम्रपान के बीच संबंध नहीं पाया गया है। (और पढ़ें: धूम्रपान छोड़ने के सरल तरीके)

3) फूंक मारकर बजाने वाले यन्त्र– इंट्राब्रिटल प्रेशर (Intraorbital Pressure IOP)  बढ़ाते हैं। 

यंत्रों को  फूंक मारकर बजाने के दौरान आईओपी (इंट्रा-ओक्यूलर प्रेशर) लगभग 20 सेकेंड्स के अंदर दोगुना हो सकता है, लेकिन तुरंत ही अपने आधारभूत स्थान (baseline) पर लौट आता है।

4) उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर)

अनुपचारित प्रणालीगत उच्च रक्तचाप (Untreated systemic hypertension) मोतियाबिंद के साथ जुड़ा हुआ है। ये दोनों आपस में अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। संभवतः उच्च रक्तचाप के कारण रक्त वाहिकाओं के साथ ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुँचता है। इसलिए यह सलाह दी जाती है कि उच्च रक्तचाप का इलाज करवा लिया जाये। 

5) योग

उलटी स्थिति में किये जाने वाले योग से कुछ लोगों में इंट्रा-ऑक्युलर दबाव (intraocular pressure) बढ़ जाता है, जिससे मोतियाबिंद की स्थिति बिगड़ सकती है।

6) हाई बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) और मोटापा 

अधिक वजन (मोटापा) उच्च आईओपी (इंट्रा-ओक्यूलर प्रेशर) के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन ग्लूकोमा के साथ इसका विरोधी संबंध है। एक उच्च बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) स्लीप एपनिया (sleep apnoea) से जुड़ा हुआ है।

7. स्लीप एपनिया (Sleep Apnoea)

स्लीप एपनिया सिंड्रोम (एसएएस) ग्लूकोमा से जुड़ा है। इसमें नींद के दौरान बार-बार साँस लेने में बाधा आती है। कम नींद ले पाने के कारण मरीजों में क्रोनिक थकान, दिन में सोना और चेतना में कमी आ जाती है । (स्लीप एपनिया सिंड्रोम- एसएएस) उन पुरुषों के लिए अधिक घातक है, जो मोटे होते हैं, खर्राटे लेते हैं, अत्यधिक शराब पीते हैं और धूम्रपान करते हैं। (और पढ़ें: कम सोने के नुकसान)

8) अत्यधिक पानी पीना (Excessive Water Drinking)

कम समय अवधि (15 मिनट) पर अत्यधिक मात्रा में पानी (500 एमएल से 1 लीटर ) पीने के कारण आईओपी (इंट्रा-ओक्यूलर प्रेशर) में महत्वपूर्ण वृद्धि हो सकती है। ग्लूकोमा रोगियों को अधिक मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए।

9) शराब  (Alcohol)

शराब शुरू में आईओपी (इंट्रा-ओक्यूलर प्रेशर) को कम कर सकती है, लेकिन रोज़ाना शराब का सेवन आईओपी में मामूली वृद्धि का कारण बन सकता है। अतः हम शराब न पीने की की सलाह देते हैं।

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) में क्या खाना चाहिए? - What to eat during Glaucoma in Hindi?

ग्लूकोमा होने पर ये आहार खायें –

1) गहरे हरे, पीले और नारंगी फल और सब्ज़ियाँइन खाद्य पदार्थों में कैरोटेनॉयड्स ( carotenoids) होते हैं, जो ग्लूकोमा सहित कई गंभीर बीमारियों से बचाव कर सकते हैं। लुटेन (Lutein)और ज़ेक्सैथिन (zeaxanthin) विशेष रूप से आँखों की रोशनी के लिए महत्वपूर्ण हैं।

2) विटामिन सी भरपूर फल और सब्ज़ियाँ – इन खाद्य पदार्थों में हरी मिर्च, खट्टे फल, टमाटर, ब्रोकोली, स्ट्रॉबेरी, मिठाई, सफेद आलू (white potatoes) और पत्तेदार सब्ज़ियाँ शामिल हैं।

3) विटामिन ई युक्त खाद्य पदार्थ – इनमें अंडे, फल, गेंहू, हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, मेवे, अखरोट का तेल, वनस्पति तेल और साबुत अनाज शामिल हैं।

4) विटामिन ए युक्त खाद्य पदार्थ – लिवर (liver) ,शकरकंद (sweet potatoes), गाजर, आम, दूध, अंडे और जौ विटामिन ए से भरपूर होते हैं। (और पढ़ें – जौ के पानी के फायदे)

5) विटामिन डी से भरपूर भोजन –  मछली का तेल (cod liver oil), विटामिन जैसे पौष्टिक तत्वों से भरपूर दूध और अनाज, अंडे और जौ विटामिन डी के प्रमुख स्रोत हैं।

6) ज़िंक युक्त भोजन – इनमें सीप, लाल मांस, पॉल्ट्री, सेम, मेवे, कुछ समुद्री भोजन, साबुत अनाज, विटामिन जैसे पौष्टिक तत्वों से भरपूर नाश्ता अनाज और डेरी उत्पाद शामिल हैं।

7) ओमेगा-3 फैटी एसिड युक्त खाद्य पदार्थ – जंगली सालमन (Wild salmon) मछली, सार्डिन्स (sardines) मछली, अखरोट और फ्लैक्स का तेल इसके अच्छे स्रोत हैं।



संदर्भ

  1. National Health Service [Internet] NHS inform; Scottish Government; Glaucoma.
  2. National Eye Institute. Facts About Glaucoma. U.S. National Institutes of Health [Internet].
  3. American Academy of Ophthalmology. [Internet]. San Francisco, California, United States; What Is Glaucoma?.
  4. National Eye Institute. Glaucoma. U.S. National Institutes of Health [Internet].
  5. MedlinePlus Medical Encyclopedia: US National Library of Medicine; Glaucoma.

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) की ओटीसी दवा - OTC Medicines for Glaucoma in Hindi

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) के लिए बहुत दवाइयां उपलब्ध हैं। नीचे यह सारी दवाइयां दी गयी हैं। लेकिन ध्यान रहे कि डॉक्टर से सलाह किये बिना आप कृपया कोई भी दवाई न लें। बिना डॉक्टर की सलाह से दवाई लेने से आपकी सेहत को गंभीर नुक्सान हो सकता है।