अमेरिका के सैन डिएगो कैलिफोर्निया स्थित स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआरआई) के वैज्ञानिक एड्स महामारी की वजह बने ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस यानी एचआईवी के खिलाफ एक नई वैक्सीन अप्रोच पर काम कर रहे हैं। इसके तहत अब एचआईवी के मरीजों के शरीर की मदद से ही इसे रोकने या खत्म करने वाली वैक्सीन बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इस बारे में मेडिकल पत्रिका नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, एसआरआई के वैज्ञानिकों ने एचआईवी संक्रमण से ग्रस्त मरीज के शरीर से ली गई कोशिकाओं की मदद से आनुवंशिक रूप से कृत्रिम इम्यून सेल्स तैयार किए हैं। शुरुआती एनीमल मॉडल के तहत किए परीक्षणों में मिली सफलता के बाद अब इन इंजीनियर्ड सेल्स से इन्सानों के लिए एचआईवी वैक्सीन विकसित की जाएगी।

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खबर के मुताबिक, एसआरआई के शोधकर्ताओं ने चूहों पर इस अप्रोच को आजमाकर देखा है जिसके परिणाम भी सकारात्मक मिलने का दावा किया गया है। नेचर कम्युनिकेशन की मानें तो नई वैक्सीन अप्रोच के तहत जेनेटिकली इंजीनियर्ड इम्यून सेल्स की मदद से चूहों में सफलतापूर्वक ऐसे एंटीबॉडी पैदा किए गए हैं, जिन्हें लेकर दावा है कि वे शरीर में तेजी से फैलने वाले एचआईवी को रोक सकते हैं। इन रोग प्रतिरोधकों को ब्रॉडली न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडीज (बीएनएबीएस या बीनैब्स) भी कहा जाता है। अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता और स्क्रिप्स रिसर्च के वैज्ञानिक जेम्स वोस ने अपने आधिकारिक बयान में इन परिणामों की पुष्टि की है।

इससे पहले वोस और उनकी सहयोगी टीम ने 2019 में दिखाया था कि इम्यून सिस्टम की प्रमुख रोग प्रतिरोधक कोशिका बी सेल के एंटीबॉडी जीन्स को चर्चित जीन एडिटिंग तकनीक क्रिस्पर की मदद से रीप्रोग्राम किया जा सकता है। उनका कहना है कि इससे एचआईवी को निष्प्रभावी करने वाले एंटीबॉडी बड़ी संख्या में विकसित किए जा सकेंगे। अब तक इस प्रकार के रोग प्रतिरोधक दुर्लभ एचआईवी/एड्स पीड़ितों में ही पाए गए हैं। नए अध्ययन में कहा गया है कि एचआईवी के इलाज के लिए अपनाई गई नई वैक्सीन अप्रोच के तहत कृत्रिम रूप से तैयार किए गए ऐसे बी सेल्स वैक्सीन के जरिए शरीर में रीइंट्रोड्यूस किए जाने के बाद मल्टीप्लाई होकर वायरस के खिलाफ रेस्पॉन्स दे सकते हैं। ये कोशिकाएं मेमरी सेल्स और प्लाज्मा सेल्स में मैच्योर हो सकती हैं, जो शरीर को किसी संक्रामक बीमारी से बचाने वाले दीर्घकालिक प्रोटेक्टिव एंटीबॉडी को उच्च स्तर पर पैदा करने का काम करते हैं।

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इसके अलावा, अध्ययन में चूहों पर किए ट्रायल से वैज्ञानिकों ने यह भी साबित किया है कि कृत्रिम जीन्स में सुधार कर वायरस के खिलाफ और ज्यादा प्रभावी एंटीबॉडी भी विकसित किए जा सकते हैं। ऐसा इम्यूनाइजेशन के तहत वायरस के खिलाफ रेस्पॉन्ड कर रहे बी सेल्स में होने वाले सामान्य प्रोसेस का इस्तेमाल करते हुए किया जा सकता है। इन जानकारियों पर बात करते हुए प्रोफेसर वोस का कहना है, 'यह पहली बार है जब बकायदा उपयुक्त एनीमल मॉडल के तहत करके दिखाया गया है कि संशोधित या मोडिफाइड बी सेल्स स्थायी कृत्रिम एंटीबॉडी रेस्पॉन्स पैदा कर सकते हैं।'

इस वैज्ञानिक प्रयास से वोस को उम्मीद है कि एक दिन इससे एचआईवी संक्रमण को रोका जा सकता है और उन लोगों का वास्तव में व्यावहारिक इलाज किया जा सकता है, जो पहले से एचआईवी/एड्स से ग्रस्त हैं। उन्होंने बताया है कि वैक्सीन बनाने के लिए इन्सानों के शरीर से ऐसे सेल्स को आसानी से उनके रक्त के जरिये प्राप्त किया जा सकता है। इसके बाद उन्हें लैब में कृत्रिम तरीके से तैयार करने की जरूरत होगी। बाद में उन्हें दोबारा मरीज के शरीर में डालने की जरूरत होगी। इसके लिए प्रोफेसर वोस और उनके सहयोगी इस तकनीक को और बेहतर करने के उपायों पर काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस अप्रोच के तहत उनका प्रयास न केवल एचआईवी संक्रमण का इलाज उपलब्ध कराना है, बल्कि इसके लिए अपनाई जाने वाली तकनीक को भी सस्ती बनाना है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसका लाभ ले सकें और उन्हें डेली एंटीवायरल थेरेपी से निजात मिल सके।

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गौरतलब है कि आज भी दुनियाभर में हर साल लाखों लोगों को एचआईवी, एड्स बीमारी का मरीज बना रहा है। बीते चार दशकों से करोड़ों लोगों की जान ले चुके इस वायरस के खिलाफ अब तक कोई भी कारगर वैक्सीन नहीं बन पाई है। जानकार बताते हैं कि एचआईवी का जो भी इलाज होगा, उसकी सफलता के लिए मरीज के शरीर में विशेष प्रकार के एंटीबॉडी का बनना जरूरी होगा। ऐसे रोग प्रतिरोधक, जो वायरस के खिलाफ बड़े पैमाने पर काम करते हुए उसके मल्टीपल स्ट्रेन को हरा सकें। देखना होगा कि एसआरआई का शोध अपनी नई वैक्सीन अप्रोच के साथ इस तरह का एंटीबॉडी इन्सानों के लिए बना पाता है या नहीं।

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