विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 6 अक्टूबर 2021 को मलेरिया की नई वैक्सीन आरटीएस, एस/एएस01 (RTS,S/AS01) का व्यापक रूप से इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी है। आरटीएस,एस हाल ही में लॉन्च किया गया एक टीका है, जो मलेरिया के फैलाव को रोकने में मदद करता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार सबसे पहले इस वैक्सीन को अफ्रीका के उन सभी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों को दिया जाना चाहिए, जहां प्लाज्मोडियम परजीवी का प्रसार अधिक है। बताते चलें कि घाना, केन्या और मालावी में चल रहे एक पायलट कार्यक्रम के दौरान इस वैक्सीन के नतीजे सफल पाए गए, जिसके बाद डब्ल्यूएचओ ने व्यापक स्तर पर इसका टीकाकरण शुरू करने की सिफारिश की थी।

डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल डी आर टेड्रोस अधनोम घेब्रेसस ने इसे एक ऐतिहासिक क्षण बताया। उन्होनें कहा कि “यह वैक्सीन मलेरिया के फैलाव को रोकने में विज्ञान की एक बड़ी उपलब्धि है और इससे बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार करने में भी काफी मदद मिलेगी”। आगे डायरेक्टर जनरल कहते हैं कि “मलेरिया रोकने के अन्य उपायों के साथ इस वैक्सीन का इस्तेमाल करके हर वर्ष लाखों बच्चों के जीवन को बचाया जा सकेगा।”

अफ्रीका के क्षेत्रीय डब्ल्यूएचओ जनरल डायरेक्टर मैट्शीडिसो मोइटी का कहना है कि “सदियों से मलेरिया ने उप-सहारा अफ्रीकी क्षेत्रों का शिकार किया है और इस कारण से यहां के लोगों ने काफी परेशानियों का सामना किया है। आगे डॉ. मैट्शीडिसो कहते हैं कि “हमने लंबे समय से मलेरिया की प्रभावशाली वैक्सीन का इंतजार किया है और अब पहली बार हमारे पास ऐसा टीका है जिसे मलेरिया की रोकथाम के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है”

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आरटीएस,एस मलेरिया वैक्सीन के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनुशंसा

यह डब्ल्यूएचओ के दो ग्लोबल एडवाइजरी बोर्डों की सलाह पर आधारित है, जिसमें एक प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ाने के लिए और दूसरा मलेरिया के प्रसार को रोकने के लिए है। मलेरिया के व्यापक प्रसार को नियंत्रण करने के संदर्भ में डब्ल्यूएचओ की सिफारिश करता है कि आरटीएस, एस/एएस01 मलेरिया वैक्सीन का उपयोग पी. फाल्सीपेरम के प्रसार को रोकने के लिए किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं इस वैक्सीन का इस्तेमाल सिर्फ उन क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के लिए ही किया जाना चाहिए जो मलेरिया के अधिक प्रसार वाले क्षेत्रों में रहते हैं। मलेरिया के प्रसार को कम करने और सहन करने की क्षमता को बढ़ाने के लिए आरटीएस,एस/एएस01 वैक्सीन को चाल अलग-अलग खुराकों में दिया जाना चाहिए और बच्चे की उम्र कम से कम 5 साल होनी चाहिए।

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मलेरिया की वैक्सीन बनने में इतना समय क्यों लगा?

मलेरिया एक प्रकार का परजीवी संक्रमण है, जो किसी भी वायरस या बैक्टीरिया से पूरी तरह से अलग होता है। परजीवी संक्रमण काफी घातक होते हैं और इनके लिए वैक्सीन बनाना काफी मुश्किल होता है। जैसा कि आप जानते हैं कि कोविड-19 संक्रमण के लिए वैक्सीन बनने में ज्यादा समय नहीं लगा लेकिन प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम मलेरिया का सबसे घातक परजीवी है और इसकी वैक्सीन बनाने में सालों लग गए।

एक कारक यह भी है कि मलेरिया का कारण बनने वाला प्लाज्मोडियम पैरासाइट बार-बार अपना रूप बदलने में सक्षम है, इस कारण से इसके लिए वैक्सीन बनाने का सफर थोड़ा मुश्किल रहा। यह पैरासाइट सिर्फ मानव शरीर में ही नहीं मच्छर के शरीर में भी अपने आप को बदलता रहता है और जिस कारण से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली हर बार इसकी पहचान करने में असफल रह जाती है।

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खुशखबरी! मलेरिया की वैक्सीन हुई लांच, WHO ने दी मान्यता के डॉक्टर
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