कैंसर की जांच को लेकर वैज्ञानिक हर संभव विकल्प तलाशने में लगे हैं, ताकि इस घातक बीमारी की उचित समय पर जांच के साथ इलाज संभव हो सके। इसको ध्यान में रखते हुए ब्रिटेन के शोधकर्ताओं ने एक नई रिसर्च के जरिए ओरल कैंसर की जांच से जुड़ी अहम जानकारी का पता लगाया है। यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड के शोधकर्ताओं के अनुसार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के जरिए डॉक्टरों को सटीकता, स्पष्टता और निष्पक्षता सुनिश्चित करके ओरल कैंसर (मुंह का कैंसर) के रोगियों में जोखिम का अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि शोधकर्ता एआई और मशीन लर्निंग के उपयोग की जांच कर रहे हैं। यह कंप्यूटर एल्गोरिदम से जुड़ी रिसर्च है जो कि अनुभव के माध्यम से अपने आप सुधार करती है। यह ओरल कैंसर के शुरुआती स्टेज का पता लगाने में सुधार करने के साथ पैथोलॉजिस्ट के लिए भी सहायक होगी।

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शोधकर्ताओं का कहना है कि मुंह, जीभ, टॉन्सिल और ऑरोफरीन्जियल कैंसर समेत मुंह के कैंसर से पीड़ित लोगों की दर में पिछले 10 वर्षों में लगभग 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जांच से जुड़े साक्ष्यों से पता चलता है कि तंबाकू तबाना, शराब का अधिक सेवन, वायरस और बुढ़ापे के साथ-साथ पर्याप्त फल और सब्जियां नहीं खाने से बीमारी का खतरा बढ़ सकता है। यहां अहम बात यह है कि ओरल कैंसर (मौखिक कैंसर) का अक्सर देर से पता चलता है, जिसका मतलब है कि रोगी के जीवित रहने की दर कम हो जाती है।

वर्तमान में डॉक्टर, कैंसर की बीमारी में होने वाले शुरुआती परिवर्तनों का अनुमान लगाते हैं, जिसे ओरल एपिथेलियल डिसप्लेसिया यानी ओईडी के रूप में जाना जाता है। यहां स्कोर जानने के लिए मरीज के 15 अलग-अलग मानदंडों पर बायोप्सी का आकलन किया जाता है, जो कैंसर में विकसित होता है। ये स्कोर यह निर्धारित करता है कि क्या इलाज की आवश्यकता है और इलाज का तरीका क्या होना चाहिए। हालांकि, यह स्कोर सब्जेक्टिव होता है, जिसका मतलब है कि एक समान स्कोर वाले दो अलग-अलग व्यक्तियों का इलाज अलग-अलग तरीके से हो सकता है। उदाहरण के लिए, एक मरीज को सर्जरी और गहन उपचार की सलाह दी जा सकती है, जबकि दूसरे रोगी को अन्य बदलावों को देखने के लिए सिर्फ मॉनिटर किया जा सकता है। 

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शेफील्ड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ क्लीनिकल डेंटिस्ट्री के सीनियर क्लीनिकल लेक्चरर डॉ अली खुर्रम का कहना है, "ओईडी की सटीक ग्रेडिंग एक बड़ी क्लीनिकल ​​चुनौती है। यहां तक ​​कि अनुभवी पैथोलॉजिस्ट के लिए भी, क्योंकि यह बहुत सब्जेक्टिव यानी व्यक्तिपरक है। फिलहाल, एक बायोप्सी को पैथोलॉजिस्ट द्वारा अलग-अलग तरीके से वर्गीकृत किया जा सकता है। एक पैथोलॉजिस्ट एक ही बायोप्सी को एक अलग दिन में अलग-अलग ग्रेड कर सकता है।" वो आगे कहते हैं कि ओरल कैंसर की शुरुआती स्टेज का पता लगाने में सही ग्रेडिंग महत्वपूर्ण है। इससे उपचार से जुड़े फैसले लेने में मदद मिलती है। साथ ही एक सर्जन को यह निर्धारित करने में सहायता मिलती है कि घाव को मॉनिटर करना या फिर उसे सर्जरी के जरिये निकाल देना है। 

इसके साथ ही डॉ. अली खुर्रम कहते हैं कि डायग्नोसिस और इलाज को निर्देशित करने लिए सही मात्रा और ऑटोमेशन का उपयोग करना होगा। उन्होंने कहा कि अब तक इसकी जांच नहीं की गई है, लेकिन एआई में सटीकता, स्थिरता और निष्पक्षता सुनिश्चित करके ओरल कैंसर की जांच और प्रबंधन में बड़ा बदलाव लाने की क्षमता है। एआई एल्गोरिदम को प्रशिक्षित करने और जीवित रहने की दर के बीच सांख्यिकीय सहसंबंधों को जानने के लिए स्टोर किए गए ओईडी ऊतक नमूनों के साथ कम से कम पांच साल तक के फॉलोअप डेटा का इस्तेमाल किया जाएगा। ये एल्गोरिदम पैथोलॉजिस्टों को बायोप्सी के मूल्यांकन में सहायता करेंगे, जिससे उन्हें कोशिकाओं की ग्रेडिंग और रोगी के उपचार में सही निर्णय लेने में मदद मिलेगी।

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ब्रिटेन में वारविक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नासिर राजपूत के अनुसार, पायलट प्रोजेक्ट एक ऐसे उपकरण के विकास की दिशा में कदम बढ़ाएगा, जो मौखिक डिस्प्लेसिया में पूर्व-घातक परिवर्तनों की पहचान करने में मदद कर सकता है। साथ ही यह मौखिक कैंसर की शुरुआती स्टेज का पता लगाने के लिए भी महत्वपूर्ण है ।

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